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Kanpur Shaernama Column: गुरु गुड़ और चेला शक्कर, सियासी हैसियत की ले रहे थाह...

कानपुर में राजनीतिक हलचल का शहरनामा कालम है। दूसरे प्रदेशों के चुनावी समर में सारथी रहे नेताजी अब विधानसभा चुनाव में अपने लिए संभावना तलाशने लगे हैं। शहर में आजकल सरकार को हर मौके पर घेरने का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 11 Jul 2021 01:48 PM (IST)Updated: Sun, 11 Jul 2021 01:48 PM (IST)
Kanpur Shaernama Column: गुरु गुड़ और चेला शक्कर, सियासी हैसियत की ले रहे थाह...
कानपुर शहर की राजनीतिक हलचल का कालम शहरनामा।

कानपुर, राजीव द्विवेदी। कानपुर शहर में राजनीतिक हलचल ज्यादा रहती है, इस समय तो जिला पंचायत चुनाव और ब्लाक प्रमुख चुनाव के बाद राजनीतिक सक्रियता ज्यादा बढ़ गई है। इन दिनों अब नेताओं में विधानसभा चुनाव को लेकर सक्रियता बढ़ गई है। इसी हलचल को लेकर आया शहरनामा कॉलम...।

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सियासी हैसियत की ले रहे थाह

विपक्ष में रहते हुए भी समाजवादी सरकार में सत्तासुख का आनंद लेने वाले और कभी लगातार अजेय रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी ने बीते चुनाव में शिकस्त के बाद से शहर की सियासत से खुद को सिकोड़ लिया। राष्ट्रीय भूमिका मिलने पर दूसरे प्रदेशों के चुनावी समर में सारथी रहे नेताजी विधानसभा चुनाव से विरक्ति की बातें भले करें, पर अब संभावना तलाशने लगे हैं। उनको पता है, विपक्ष के वोट के बिखराव के बीच महंत के सेनानियों से पार नहीं पाया जा सकता, इसलिए पुराने रिश्तों की थाह ले रहे, हाल में उनको मौका भी मिला। सपा मुखिया के जन्मदिन पर उनको बधाई देने गए। अब उनके शुभचिंतकों को खुशफहमी का बुखार चढऩे लगा है कि बीते चुनाव में गठबंधन से समाजवादियों की चुनौती नहीं रही तो इस बार संबंधों का लिहाज रहेगा। समाजवादियों से अमेठी और रायबरेली जैसी रियायत मिल जाएगी तो नेताजी को दुश्वारी पेश न होगी।

गुरु गुड़, चेला शक्कर

इम्यूनिटी के हिमायती भले न माने, मगर कहावत यही है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के अंतिम परिणाम ने इसको चरितार्थ भी किया। जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए भाजपा प्रदेश नेतृत्व द्वारा प्रत्याशी तय करने से मन मसोस कर रह गए सबसे कम उम्र के माननीय ने ब्लाक प्रमुख चुनाव में जलवा दिखा ही दिया। विधानसभा चुनाव में सीधा असर रहने से पार्टी नेतृत्व ने ब्लाक प्रमुख प्रत्याशी के टिकट विधायकों की सहमति पर तय किए। परिणाम आए तो बहन जी की सरकार में मंत्री रहे और अब भगवाधारी माननीय अपना एक ही प्रत्याशी जिता पाए तो कम उम्र के माननीय उनके यहां अपने दो समर्थकों जिता लाए। उप चुनाव में विधानसभा पहुंचे माननीय को भी एक से संतोष करना पड़ा तो सरकार के दिग्गज ओहदेदार अपने प्रतिनिधि की पत्नी को भी न जिता पाए। कम उम्र के माननीय क्षेत्र में शत-प्रतिशत परिणाम लाए, तीनों ब्लाक पर अपने समर्थकों को जिता लाए।

जश्न के बाद बैठा झाग

कोरोना की आफत के बीच दालों के दाम में इजाफा होने पर पिछले दिनों सरकार ने नियंत्रण के लिए स्टाक की सीमा तय कर दी। आढ़तियों की सहूलियत के लिए समयावधि भी निर्धारित कर दी कि वे स्टाक को व्यवस्थित कर लें। सरकारी आदेश के बाद से ही जमाखोरी करने वालों में खलबली सी मची थी। योगी सरकार के तेवरों से वाकिफ कारोबारियों को संबंधित विभाग के अधिकारियों की हिदायतें डरा रही थी। व्यापारी सियासत करने वालों को ताने मिलने लगे कि वे राहत नहीं दिला पा रहे। इसी दरम्यान इंटरनेट मीडिया पर फर्जी आदेश वायरल हुआ कि स्टाक सीमा खत्म हो गई। ज्यादातर व्यापारी संगठनों ने जश्न मनाया, मिठाई बंट गई। कुछ ने श्रेय लेते हुए अखबारों में खबर छपवा ली। दूसरे रोज ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि पत्र भ्रामक था, आदेश वापस नहीं लिया गया। उसके बाद श्रेय लेने वाले कारोबारियों से मुंह चुराते घूम रहे।

टिकट की ख्वाहिश के लिए कसरत

शहर में भगवा दल से मुकाबिल दलों के सदर आजकल शिद्दत से सरकार को हर मौके पर घेरने का बहाना ढूंढ़ ही लेते है। कोरोना की दूसरी लहर मंद पडऩे के बाद घरों से निकले इन सभी सदर में बड़ा मददगार साबित करने की होड़ मची। कभी मंदिर तो कभी महंगाई जैसे मुद्दों पर मुखर होकर सड़कों पर दिख रहे हैं, पर भीतर की खबर यह है कि सभी टिकट के लिए अपना बायोडाटा समृद्ध करने में लगे हैं। यह साबित करने में लगे हैं कि वे जनता के मुद्दों को उठाकर कितनी शिद्दत से पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ाने में लगे हैं। कोई दीदी का साथ पाकर कैंट में हाथ थामना चाह रहा तो कोई वहीं पर साइकिल की सवारी का ख्वाहिशमंद है। तो दीदी के दल के ही पंडित जी फिर एक बार उसी सीट पर टिकट की ख्वाहिश रखते हैं जहां से एक बार शिकस्त खा चुके हैं।


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