Kanpur Shaernama Column: यहां तो गुरु ने ही दे दिया दांव.., गच्चा खा गए माननीय
कानपुर शहर की राजनीतिक हलचल लेकर आाता है शहरनामा कालम। सियासत में दिलचस्पी रखने वाले उनको वहां देख हैरान थे कुछ ने सवाल किए तो नेताजी ने रहस्यमयी मुस्कान बिखेर दी। विधानसभा चुनाव की दस्तक के साथ टिकट के दावेदारों ने परिक्रमा शुरू कर दी है।
कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। कानपुर शहर में राजनीतिक हलचल अब तेज हो गई हैं, यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में सभी दल जुट गए हैं और संगठन मजबूती पर ध्यान तेजी से दिया जा रहा है। अब ऐसे में निश्चित है कि राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं भी तेज हो गई हैं, जिन्हें एक बार फिर लेकर आया है शहरनामा कालम...।
माननीय खा गए गच्चा
जिला पंचायत के चुनाव में पार्टी के फैसले से समर्थक को अध्यक्षी न दिला पाने से मायूस माननीय ने ब्लाक प्रमुखी के लिए टिकट तय करने का हक मिलने पर रिस्क न लेते हुए जिताऊ पर ही दांव लगाया। प्रतिष्ठा वाली सीट पर नीला परचम थामने वाले को पार्टी में शामिल कराकर टिकट थमाया और जिता लिया। खूब वाहवाही बटोरी, मगर प्रमुख बनते ही नेताजी ने रंग दिखा दिया। नीले परचम वाली पार्टी के जिला स्तरीय कार्यक्रम में वह शिद्दत से बंदोबस्त देखने में लगे थे। सियासत में दिलचस्पी रखने वाले उनको वहां देख हैरान थे, कुछ ने सवाल किए तो नेताजी ने रहस्यमयी मुस्कान बिखेर दी। उसमें साफ संदेश था कि सियासी शतरंज में माननीय गच्चा खा गए। सबसे मजे की बात यह कि कार्यक्रम में माननीय की सीट से नीले परचम वाले दल का प्रत्याशी भी तय किया गया, जो टिकट मिलने पर माननीय से ही मुकाबिल होगा।
गुरु ने दिया दांव
कभी कहावत थी गुरु गुड़ रहे और चेला हो गए शक्कर। अब गुड़ के गुणों और कीमत ने कहावत को उलट दिया कि गुड़ हुआ गुरु, चेला रह गया शक्कर। सियासत में भी यही फिट बैठता है। सरकार में ओहदेदार के दरबार में खास रुतबा रखने वाले नेताजी जिला पंचायत के मुखिया बनने की ख्वाहिश पाले थे। मौका आया तो आरक्षण ने पानी फेर दिया। तब ओहदेदार ने प्रमुखी की तसल्ली देकर उनकी पत्नी को टिकट दिलवाया। नेताजी ने ओहदेदार का क्षेत्र में तमाम जगह लाव लश्कर के साथ स्वागत कराया। स्वागत में भीड़ देख ओहदेदार का माथा ठनका कि जब कुछ नहीं है, तब यह जलवा। कहीं उनके लिए ही खतरा न बन जाए, सो गुपचुप दूसरे दल के प्रत्याशी को समर्थन देकर प्रमुखी दिला दी। दांव को समझने के बाद नेताजी अब उस घड़ी को कोस रहे, जब उनके जेहन में ओहदेदार का स्वागत करने का ख्याल आया।
अरमान पर फिरा पानी
विधानसभा चुनाव की दस्तक के साथ तमाम दलों में टिकट के दावेदारों ने बड़े नेताओं की परिक्रमा शुरू कर दी है। महंत जी की सरकार से पहले सत्ता में रहे दल के पूर्व शहर सदर कैंट से अपनी दावेदारी के लिए लखनऊ के आए दिन चक्कर लगा रहे हैं। उनकी पार्टी मुखिया से भेंट हुई तो चुनाव लडऩे की इच्छा जानकर उन्होंने पूछ लिया कि सरकार रहते कितना 'बनायाÓ। इस सवाल से बचे तो पूछ लिया- वोटर कितने बनाए। वह सफाई दे नहीं पाए थे कि शहर से लखनऊ की दूरी पूछकर कहा कि पास है तो क्या हर दिन चेहरा दिखाने आाओगे। मुखिया के इस रुख से पूर्व सदर को यह समझ आ चुका था कि उनके अरमान पूरे होने से रहे। 2014 में पूर्व सदर के छिपे विरोध के चलते ही शहर से एक बालीवुड स्टार के चुनाव लडऩे से इन्कार की कसक अब भी मुखिया को है।
साहब की एकांत हाजिरी
व्यवस्था में परिवर्तन के साथ सत्ता में आई संस्कारों वाली पार्टी के नेता भी सत्ता पाकर तमाम वही कृत्य कर रहे हैं जिनको खत्म करने का वादा करके सरकार बना पाए थे। ये कोई लांछन नहीं बल्कि कड़वी हकीकत है जिससे शहर के आला अफसर तकरीबन हर माह रूबरू होते हैं। दरअसल वंचितों, शोषितों के अधिकारों को संरक्षित करने को वाली संस्था के एक सदस्य का तय अंतराल में शहर का दौरा होता है। दौरे के दौरान तमाम विभागों के अधिकारियों की हाजिरी अनिवार्य है। खास बात यह कि महोदय तमाम अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद अकेले में बुलाकर भी रिपोर्ट लेते और इसी लम्हे से बचने की जुगत में अधिकारी रहते। न बच पाने की सूरत में हाजिरी से पहले जेब हल्की कर लेते। वापसी पर साथी अधिकारियों के पूछने पर कोई दुखी होकर चूना लगने तो कोई चहकते हुए बताता कि उसने कितनी बचत कर ली।