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गांधी जयंती पर विशेषः कानपुर ने देखा है एक अनजान नौजवान से अाजादी की उम्मीद बनते बापू को

कानपुर को क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था, लेकिन इतिहास इन तथ्यों से भी भरा पड़ा है कि गली-गली में गांधीवादी विचारधारा उतनी ही गहराई से समाई हुई थी।

By Edited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 01:43 AM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 01:07 PM (IST)
गांधी जयंती पर विशेषः कानपुर ने देखा है एक अनजान नौजवान से अाजादी की उम्मीद बनते बापू को
गांधी जयंती पर विशेषः कानपुर ने देखा है एक अनजान नौजवान से अाजादी की उम्मीद बनते बापू को

कानपुर (जितेंद्र शर्मा) । मैं कानपुर हूं। मुझे क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था, लेकिन इतिहास इन तथ्यों से भी भरा पड़ा है कि मेरी गली-गली में गांधीवादी विचारधारा उतनी ही गहराई से समाई हुई थी। अगले वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। सारा हिंदुस्तान उनकी स्मृतियों को सहेजने और याद करने में जुटा है। चुनिंदा बुजुर्गो के संस्मरण हैं तो कही, सुनी और पढ़ी बातों का लंबा सिलसिला।

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यहां मैं कानपुर, कहना चाहता हूं कि मैंने गांधी को देखा है। एक-दो बार नहीं सात बार। यह यात्रा एक अनजान नौजवान से बापू के रूप में आजादी की सबसे बड़ी उम्मीद बनते देखा है। लंबा वक्त भले ही गुजर गया हो, लेकिन गांधीजी और मेरे रिश्ते की कहानी आपको इतिहासकारों की किताबों में मिल जाएगी, तिलक हाल परिसर में ही बनी अशोक लाइब्रेरी में पढ़ सकते हैं या सिविल लाइंस स्थित जेएन रोहतगी के आवास पर जाकर महसूस कर सकते हैं।


फिल्मी अंदाज में हुई रिश्ते की शुरुआत
खैर, अब कहानी सुनिए, हमारे रिश्ते की शुरुआत किसी 'फिल्मी अंदाज' में हुई। वह 16 दिसंबर 1916 का दिन था। पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन पर शहरवासियों की भीड़ जमा थी। यह सभी लोग उस दौर के बहुत बड़े नेता और स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के स्वागत में पहुंचे थे। दोपहर लगभग दो बजे ट्रेन स्टेशन पर रुकी। तिलक ट्रेन से उतरे तो लोगों ने उन्हें फूल-मालाओं से लाद दिया। पीछे की बोगी से एक नौजवान ऊंची धोती, लंबा कोट और गुजराती गोल टोपी धारण किए उतरता है।

निगाहें किसी को ढूंढ रही थीं तभी एक शख्स आगे बढ़ कहता है- 'वेलकम मिस्टर गांधी।' जी हां, यह दक्षिण अफ्रीका से लौटकर देश को जानने-पहचानने निकले मोहन दास करमचंद गांधी ही थे और स्वागत करने वाले थे महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी। अनजान से गांधी विद्यार्थी जी के साथ प्रताप प्रेस पहुंचे और रात्रि विश्राम वहीं किया। ऐसी रही महात्मा गांधी से मेरी पहली मुलाकात।


फिर जगाने आए स्वदेशी की अलख
पहली मुलाकात उदासी-उबासी भरी रही हो, लेकिन चार साल बाद ही गाधीजी फिर आए। इलाहाबाद से लौटते वक्त उन्होंने कुछ वक्त मुझे भी दिया। मेस्टन रोड पर स्वदेशी भंडार का उद्घाटन किया और मेरे बाशिंदों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया। तब तक गांधी जी चंपारण से सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर देश भर में छा चुके थे। उसी साल अक्टूबर में बापू को देखने का सौभाग्य फिर मिला। तब तक वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू कर चुके थे।


चार साल पहले गोपनीय सी यात्रा पर आए गांधी की इस बार जागरण यात्रा थी। स्टेशन पर 25 हजार लोग एकत्र हुए। उन्हें जुलूस के रूप में परेड मैदान लेकर पहुंचे। तब गांधीजी के विचारों को मैंने पहली बार जनसभा में सुना। अपने भाषण से उन्होंने ¨हदू-मुस्लिम एकता और असहयोग आंदोलन को स्वदेशी की भावना से जोड़ा। ब्रिटिश व्यवस्था में पदों पर बैठे लोगों से पद छोड़ने का आह्वान किया। प्रेरित होकर मन्नीलाल अवस्थी ने केके कॉलेज के प्राचार्य और डॉ. मुरारीलाल रोहतगी ने कानपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट का पद छोड़ दिया था।


जब आजादी से जोड़ दी खादी
शायद बापू ने मेरे बाशिंदों में कुछ जज्बा देखा हो या कुछ और, साल भर के भीतर ही 8 अगस्त 1921 को वह फिर आए। इस बार वह खादी को आजादी के आंदोलन से जोड़ने की मंशा से आए थे। नौ अगस्त को मारवाड़ी विद्यालय में कपड़ा व्यापारियों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने कहा था कि खादी आजादी के साथ ही आर्थिक लाभ भी दिलाएगी। इस यात्रा में बापू ने महिलाओं की एक सभा को भी संबोधित किया था।


सरोजनी नायडू को सौंपा कांग्रेस अध्यक्ष का पद
23 दिसंबर 1925 को गांधी जी महत्वपूर्ण यात्रा पर आए। उन्होंने कांग्रेस के 40वें अधिवेशन में कांग्रेसियों को आजादी के आंदोलन की रूपरेखा समझाई। साथ ही सरोजनी नायडू को कांग्रेस अध्यक्ष का पद सौंपा। इसके बाद लंबा वक्त मुझे बापू का इंतजार करना पड़ा। वह फिर 22 सितंबर 1929 को आए तो छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने को प्रयासरत दिखे। डीएवी कॉलेज और क्राइस्ट चर्च कॉलेज में सभाएं कर छात्रों को आत्मसंयम के साथ राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने के लिए कहा। यहीं पहली बार गांधी जी ने हरिजन उत्थान का एजेंडा रखा।


..और बापू से मेरी आखिरी मुलाकात
22 जुलाई 1934 को आए महात्मा गांधी से यह मेरी आखिरी मुलाकात थी। 26 जुलाई तक रहे और कांग्रेस कार्यालय तिलक हाल का उद्घाटन किया। वह 30 हरिजन बस्तियों में भी गए और लोगों से मुलाकात की। यहां एक बात और बताना चाहूंगा कि बापू की स्मृतियां डॉ. जेएन रोहतगी के बंगले का एक कमरा आज भी सहेजे हुए है। पहली बार जरूर प्रताप प्रेस में रुके, लेकिन उसके बाद हर बार बापू रोहतगी जी के घर ही रुके।


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