पहरुआ पुलिस की सद्भावना और एकता, कानपुर का सर्वधर्म द्वार आपसी सद्भाव प्रेम का देता है संदेश
कानपुर शहर महज एक नाम नहीं है यह पहचान है भाईचारे सद्भाव और तहजीब का। आज हम कानपुर के ऐसे ही रंग से आपको परिचित कराने जा रहे हैं। जहां पुलिस ने कई साजिशों को नाकाम किया। शहर के सौहार्द को बिगड़ने नहीें दिया।
कानपुर, जागरण संवाददाता। गंगा और यमुना का दोआब अपना कानपुर, यानी देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का उद्गम क्षेत्र। भाईचारा और सद्भाव तहजीब की खास पहचान वाला कानपुर, जिसकी गंगा-जमुनी चादर को दागदार बनाने की बार-बार साजिशें हुईं। कानपुर की पुलिस ने साजिशों को नाकाम कर नकाब के पीछे छुपे चेहरों को बेनकाब किया। साथ दिया शहर के अमन पसंद लोगों ने। जन-जन की पहरुआ (पहरेदार) पुलिस के साथ मिलकर परेड चौराहा पर सद्भावना पुलिस सहायता केंद्र और नवीन मार्केट में शिक्षक पाक में एकता पुलिस चौकी की नींव बुलंद कर सामाजिक तानेबाने पर बुनी मजबूत चादर पेश कर दी। सद्भाव व एकता की यही चादर कई सालों से शहर पर शांति व अमन का साया बनाए हुए है। कई बार साजिशों की आहट आते ही नाकाम करने में भी यही काम आई। पढ़िये शिवा अवस्थी की रिपोर्ट।
शहर में सद्भाव व एकता की अलख जगाने वाली कानपुर पुलिस की इस कहानी को जानने के लिए कुछ साल पीछे चलना होगा। बात वर्ष 2001 की है। परेड स्थित यतीमखाना चौराहा पर विवाद के बाद तत्कालीन एडीएम सीपी पाठक घटनास्थल पर पहुंचे, तभी पथराव शुरू हो गया। नवीन मार्केट, परेड मुर्गा मार्केट समेत आसपास हिंसक भीड़ भड़क उठी और आगजनी की। बवाल के बीच अचानक एक गोली एडीएम पाठक को लगी और उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। तब प्रशासन व पुलिस कर्मियों में दंगाइयों को लेकर तीव्र आक्रोश दिखा, लेकिन शासन-प्रशासन ने धैर्य व समझ-बूझ से काम लिया। आम लोगों के बजाय सीधे दंगाइयों पर शिकंजा कसा। शहर में अमन-चैन लौटा और मिश्रित आबादी की सीमा वाले परेड चौराहा पर यतीमखाना पुलिस की देखरेख में सद्भावना पुलिस सहायता केंद्र खोला गया। इससे कुछ ही दूर नवीन मार्केट स्थित शिक्षक पार्क की दीवार से सटा एकता पुलिस सहायता केंद्र अस्तित्व में आया। सद्भावना और एकता सहायता केंद्र के पीछे मकसद शहर की मिश्रित आबादी वाले सामाजिक ताने-बाने की मजबूती का संदेश दूर तक पहुंचाना था। पुलिस को मालूम है कि चंद शातिर लोग शहर के आम लोगों को भड़काकर बवाल करते हैं।
ऐसे में शांतिप्रिय आम लोगों के सहयोग से पुलिस ने बदमाशों पर शिकंजा कसा। सद्भावना व एकता सहायता केंद्र बने जहां पुलिस हर पल मुस्तैद रहती और बवाल करने वालों पर शुरुआती दौर में ही रोका जा सके। पुलिस के प्रयास काफी हद तक सफल रहे। वर्ष 1992 और उसके बाद जरा-जरा सी बात पर सिहर उठने वाला शहर का यह हिस्सा काफी शांत रहा। 2001 के बाद इसमें और कमी आई। इसी साल तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार ने मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों के साथ नई बस्तियों में 110 पुलिस चौकियां भी सृजित की थीं। फिर सद्भावना और एकता सहायता केंद्रों पर पुलिस की गतिविधियां बढ़ीं। 2016-17 में सद्भावना सहायता केंद्र का जीर्णोद्धार कराया गया और कमरा बनाकर सुविधाएं बढ़ाई गईं। वहीं, एकता पुलिस चौकी का भवन शिक्षक पार्क में अब बनकर तैयार है। दोनों केंद्रों से जुड़े इलाके मिश्रित आबादी वाले हैं। यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों पुलिसकर्मियों की तैनाती है।
सद्भावना पुलिस सहायता केंद्र के पास 22 साल से चाय की दुकान लगा रहे प्रदीप मिश्रा बताते हैं कि उनकी तीन पीढ़ियां इस चौराहे से जुड़ी हैं। पिताजी श्याम किशोर ने युवा अवस्था में ही दुकान संभालने का हुनर सिखा दिया। शहर का माहौल चंद साजिश रचने वाले, बाहरी लोग खराब करते हैं, जिनका कोई निजी मकसद होता है। अफवाहों पर ही लोग लड़ने लगते हैं, जबकि चंद्रेश्वर हाता से लेकर यतीमखाना तक दोनों वर्गों के हजारों लोग हैं, जिनमें सद्भाव और आपसी प्रेम ही मिसाल है। यहां दोनों तबके के लोग हर रोज एक-दूसरे के साथ उठते-बैठते हैं। यतीमखाना चौकी इंचार्ज नसीम अख्तर बताते हैं, दो साल से उनकी यहां तैनाती है। अब युवा वालंटियर बनाए जा रहे हैं, जिनकी 18 से 30 साल के बीच उम्र है। अक्सर ऐसे युवाओं को ही बरगलाकर माहौल खराब किया जाता है। सिपाही उमेश उपाध्याय का कहना है कि यहां सब एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। माहौल खराब करने वाले आते हैं और अपना काम करके चले जाते हैं। उनके बहकावे में लोगों को नहीं आना चाहिए। वैसे, धीरे-धीरे युवा यह बात समझ रहे हैं।
अब दोमंजिला होगा सद्भावना केंद्र भवन, रहेगी पुलिस और पीएसी
पुलिस के मुताबिक, परेड चौराहा का सद्भावना पुलिस सहायता केंद्र काफी कारगर रहा है। इसलिए अब यहां दोमंजिला बनाया जाएगा। नई सड़क पर उपद्रव के बाद यह फैसला पुलिस अफसरों ने लिया है। दो मंजिला भवन के ऊपरी हिस्से में पीएसी और नीचे पुलिस के जवान रहेंगे, जिससे किसी भी बवाल या गड़बड़ी की आशंका पर फौरन कार्रवाई की जा सकेगी।
अब जहां सद्भावना केंद्र, कभी वहां था तांगा स्टैंड व चूनी-भूसी की दुकानें
कारोबारी सलीम भाई बताते हैं, परेड चौराहा पर जहां सद्भावना पुलिस सहायता केंद्र हैं, वहां और उसके आसपास कभी चूनी-भूसी की तमाम दुकानें थीं। इनमें पूरे शहर से हर वर्ग के लोग खरीदारी करने आते थे। पास में ही तांगा स्टैंड था, जिसमें लादकर यह सामान भेजा जाता था। घर-घर बकरियों, गायों और भैसों का पालन होने के कारण लोगों को इसकी जरूरत थी। समय बदला और शहरी इलाकों में पशुपालन को कम तरजीह दी जाने लगी। वर्ष 1999 और 2000 के आसपास एक-एक कर सभी दुकानें बंद हो गईं। तांगा की जगह लोडर और पिकअप चलने लगे।
दर्शनपुरवा में चौक व प्रवेश द्वार से सर्वधर्म सद्भाव का संदेश
डिप्टी का पड़ाव से जरीब चौकी चौराहा तक दायीं ओर ज्यादातर मोहल्ले समुदाय विशेष के ही तो बायीं ओर भी मिश्रित आबादी है। जरीब चौकी चौराहे से सटा दर्शनपुरवा क्षेत्र भी मिश्रित आबादी का है। यहां से पार्षद रहे आशुमेन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं, अक्सर शहर का माहौल बिगड़ता था, लेकिन दर्शनपुरवा हमेशा शांत रहा। इसके बाद मन में सभी धर्मों की एकता पर कुछ करने का ख्याल आया। 12 अगस्त, 2000 को सर्वधर्म चौक की स्थापना कराई थी। उनके क्षेत्र में सभी वर्ग के लोग रहते हैं, लेकिन कभी माहौल नहीं बिगड़ा। सबका मानना है कि पूजा-पाठ की पद्धति भले अलग-अलग है, लेकिन ईश्वर एक है। इसके बाद 03 अप्रैल, 2010 को सर्वधर्म सद्भाव प्रवेश द्वार का लोकार्पण वर्तमान के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। पिता वीरेंद्र सिंह से लेकर वह 50 साल तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। भाई असित कुमार सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने वर्ष 1983 में पुरस्कृत किया था। उन्होंने कई लोगों की बदमाशों से जान बचाई थी। सद्भाव और एकता के लिए लोगों के बीच लगातार काम कर रहे हैं। कारोबारी सुरपाल सिंह बताते हैं, दर्शनपुरवा में शीतला मंदिर और उसके ठीक सामने मस्जिद अपने आप में मिसाल है। भले यहां ताजिया जुलूस के दौरान पोस्टर फाड़कर पिछले वर्षों में माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया गया था, लेकिन लोगों की एकजुटता से वह स्थिति ज्यादा देर तक टिक नहीं सकी थी।
टाटमिल चौराहा पर मंदिर-मस्जिद का एक प्रवेश द्वार
टाटमिल चौराहा पर हनुमान मंदिर और मस्जिद का प्रवेश द्वार एक ही है, जो सद्भाव की बड़ी मिसाल है। यहां दोनों वर्गों के लोग आते हैं। आरती होती है तो अजान भी सुनाई पड़ती है। पुजारी बताते हैं, मंदिर के रास्ते से ही आगे मस्जिद मिलती है। कई वर्षों से दोनों वर्ग के लोग आते हैं। उनमें प्रेम और सद्भाव दिखता है।
बोले जिम्मेदार : कानपुर मजबूत सामाजिक तानाबाना वाला शहर है। यहां के सद्भाव और एकता की मिसाल दूर-दूर तक दी जाती है। पुलिस-प्रशासन भी आपसी भाईचारा बनाए रखने के लिए तत्पर है। -विशाख जी, जिलाधिकारी, कानपुर नगर।