ऋषि दीक्षित, कानपुर : जीएसवीएम मेडिकल कालेज के नेत्र रोग विभाग में स्टेम सेल के रिसर्च में अप्रत्याशित सफलता मिली है। जन्मजात और गंभीर बीमारियों के कारण क्षतिग्रस्त और खराब हो चुकी रेटिना की वजह से आंखों की रोशनी गवां चुके चार मरीजों में नई उम्मीद जगाई है।
मरीजों में प्लेसेंटा अवशेष से स्टेम सेल निकालकर आंखों की रेटिना में प्रत्यारोपित करके रोशनी वापस लाने में कामयाबी मिली है। चार माह के रिसर्च की विस्तृत रिपोर्ट केंद्र सरकार के इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) को भेजी है। रिसर्च प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाएं-संसाधन जुटाने को अनुदान मांगा है।
2022 में शुरू की रिसर्च, कुछ महीनों में ही मिली सफलता
मेडिकल कालेज के नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में आसपास के 15-20 जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों तक के मरीज आते हैं। उसमें बड़ी संख्या में ऐसे मरीज भी होते हैं, जिनकी आंखों की रोशनी जन्मजात कारणों या गंभीर बीमारियों की वजह से चली जाती है। ऐसे मरीजों की समस्या को देखते हुए जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला की सलाह पर नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. परवेज खान ने स्टेम सेल पर रिसर्च के लिए एथिक्स कमेटी से अनुमति लेकर जुलाई 2022 से रिसर्च शुरू किया।
उन्होंने अब तक रेटिना खराब हुए 10 मरीजों की रेटिना में पहले बोन मैरो, उसके बाद गर्भनाल रक्त यानी काड ब्लड और प्लेसेंटा अवशेष से स्टेम सेल निकालने के बाद आपरेशन थियेटर में सर्जरी करके रेटिना में प्रत्यारोपित किया। उसमें पाया गया कि बोन मैरो और काड ब्लड के मरीजों में लाभ नहीं हुआ, जबकि जिन चार मरीजों की आंखों की रेटिना में प्लेसेंटा अवशेष डाले थे, उनकी रोशनी आने लगी। फिलहाल मरीजों के एक-एक आंख में ही प्लेसेंटा अवशेष प्रत्यारोपित किए गए हैं।
इन मरीजों को हुआ फायदा
बाराबंकी निवासी 40 वर्षीय महिला उषारानी, मध्य प्रदेश के रीवा निवासी मुकेश कुमार और बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी बच्ची सुहानी प्रवीन काे जन्मजात नेत्र दिव्यांगता थी। यहां भटकते हुए दिखाने आए थे। जब आंखों के रेटिना का चेकअप किया तो वह खराब थे, जिससे रोशनी नहीं थी। उन्नाव निवासी सिपाही मो. असीम खान जो सीतापुर में तैनात हैं। उन्हें रेटिना की लाइलाज बीमारी हीरोड मैक्यूलर डिजनरेशन थी, कई वर्षों से ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था। इन सभी मरीजों में प्रत्यारोपित करने के एक से चार माह में अप्रत्याशित परिणाम मिले हैं।
मुकेश को थी जन्मजात समस्या
मध्यप्रदेश के रीवा के मुकेश कुमार ने बताया कि उन्हें जन्मजात समस्या थी, कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। कई जगह इलाज कराया, लेकिन निराशा मिली। अखबार की खबर से जानकारी मिलने पर यहां इलाज के लिए आए थे। दो माह में आंखों से दिखाई पड़ने लगा है। रोजमर्रा के काम आसानी से कर लेते हैं।
आसिम की आंखों की रोशनी खत्म होने लगी थी
उन्नाव के सीतापुर में सिपाही पद पर तैनात असीम खान ने बताया कि आंखों की गंभीर और लाइलाज बीमारी हो गई थी। आंखों की रोशनी तेजी से कम होने लगी थी। ठीक से दिखाई नहीं पड़ने से नौकरी पर संकट आने लगा था। कई जगह भटकने पर आराम नहीं मिला। यहां आपरेशन के बाद आंख की रोशनी बढ़ी है।
परवेज खान बोले- देश में इस तरह की अब तक कोई रिसर्च नहीं
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के नेत्र रोग के विभागाध्यक्ष प्रो. परवेज खान बताते हैं कि प्लेसेंटा अवशेष से स्टेम सेल निकालकर आंखों की क्षतिग्रस्त व खराब रेटिना में प्रत्यारोपित करने पर जुलाई 2022 से रिसर्च कर रहे हैं। आपरेशन थियेटर में सर्जरी करके डाला जाता है। अब तक चार मरीजों में डाले गए हैं, जिससे अप्रत्याशित परिणाम मिले हैं। देश में अभी तक इस प्रकार का कोई भी रिसर्च नहीं किया गया है। इसकी सफलता को देखते हुए वृहद पैमाने पर रिसर्च के लिए केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजी है। उसमें सुविधाएं और संसाधन मुहैया कराने के लिए अनुदान मांगा है।

क्या है प्लेसेंटा अवशेष
मां के गर्भ में शिशु प्लेसेंटा के कवच में सुरक्षित रहता है।प्रसव के उपरांत नवजात के साथ प्लासेंटा और उसकी परतों बाहर आ जाती हैं।इन अवशेषों को एकत्र करके उससे स्टेम सेल निकाली जाती हैं। इसे ही सर्जरी के उपरांत रेटिना पर प्रत्यारोपित किया जाता है।