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'मैनचेस्टर' का बोझ संभालने में 'कानपुर' फेल

बढ़ती आबादी, उसके अनुपात में विकास और विकास के अनुपात में पर्यावरण प्रबंधन, तीनों की समग्र रूपरेखा किसी भी शहर को स्मार्ट या बदसूरत बनाती है। जब 'पूरब के मैनचेस्टर' थे, स्मार्ट शहरों में गिनती होती थी और 'कानपुर' बन गए दुनिया भर में सबसे गंदे होने का धब्बा लग गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Jun 2018 09:58 AM (IST)Updated: Fri, 01 Jun 2018 09:58 AM (IST)
'मैनचेस्टर' का बोझ संभालने में 'कानपुर' फेल
'मैनचेस्टर' का बोझ संभालने में 'कानपुर' फेल

जागरण संवाददाता, कानपुर : बढ़ती आबादी, उसके अनुपात में विकास और विकास के अनुपात में पर्यावरण प्रबंधन, तीनों की समग्र रूपरेखा किसी भी शहर को स्मार्ट या बदसूरत बनाती है। जब 'पूरब के मैनचेस्टर' थे, स्मार्ट शहरों में गिनती होती थी और 'कानपुर' बन गए दुनिया भर में सबसे गंदे होने का धब्बा लग गया। अनदेखी और आबादी के अनुसार संसाधनों का प्रबंधन न करना भारी पड़ रहा है और विदेश ही नहीं हम देश और प्रदेश के अन्य शहरों से पिछड़ते जा रहे हैं। संसाधन का प्रबंधन नहीं करने का असर पर्यावरण पर पड़ा और अब हम जहरीली हवा, गंदी गंगा और गर्म हो रही धरती के बीच जीने को मजबूर हैं। वहीं धरती भी पुकार कर रही है उसे बोझ से निजात मिले। सवा सौ साल में 25 गुना बढ़ी आबादी

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वर्ष 1891 में कानपुर नगर की जनसंख्या 1.88 लाख थी, आज करीब 47 लाख है। वर्ष 2011 की जनगणना के हिसाब से भारत के 640 जिलों में सर्वाधिक आबादी में कानपुर 32वें नंबर है।

प्यास बुझाने के इंतजाम नहीं कर पाए

वर्ष 1892 में बने भैरोघाट पंपिंग स्टेशन से 25 करोड़ और वर्ष 1896 में बने लोअर गंगा कैनाल से पांच करोड़ लीटर पेयजल मिलता है। इसके बाद 2001 में बना गुजैनी वाटर व‌र्क्स 2.8 करोड़ लीटर, वर्ष 2005 में बना गंगा बैराज वाटर प्लांट 3.5 करोड़ लीटर और 165 नलकूप से रोज 12 करोड़ लीटर यानी कुल 18.3 करोड़ लीटर पानी ही मिल रहा। शहर की जरूरत 54 करोड़ लीटर है और कुल सप्लाई 43.3 करोड़ लीटर। इसमें भी सवा सौ साल पुरानी व्यवस्था का योगदान 25 करोड़ लीटर का है।

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.. और धरती का सीना चीरा जाने लगा

सरकारी तंत्र पानी सप्लाई में फेल हुआ और धरती की सीना चीरकर पानी निकाला जाने लगा। बीस सालों में भूजल स्तर में दस मीटर तक की गिरावट आई है। मानसून से तुलना करें तो केवल पिछले साल के मुकाबले ही 65 सेमी भू-जल स्तर गिरा। शहर में 25 लाख सबमर्सिबल रोज 30 करोड़ लीटर से अधिक पानी खींच रहे हैं। पानी सप्लाई न होने पर 11898 सरकारी हैंडपंप लगाने पड़े और इससे चार करोड़ लीटर पानी खींचा जा रहा।

------------------ खींच नहीं पाए सीवर लाइन

सत्ता का दबाव और पैसों की चाहत ने शहर में डेढ़ सौ से अधिक अवैध कालोनियां खड़ी कर दी। इसमें शहर का एक तिहाई का हिस्सा रहता है। न तो सीवर लाइन है और ड्रेनज सिस्टम। नतीजा, लोगों ने सोख्ता टैंक बनवाकर निस्तारण शुरू कर दिया। जहां सीवर लाइन वहां निस्तारण ठीक नहीं है। शहर से 42 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है लेकिन संसाधन 17 करोड़ लीटर को ही ट्रीट कर पा रहे हैं। और गंदा हुआ भू-जल, गंदी हुई गंगा

इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि भू-जल तेजी से दूषित होने लगा। सीवेज से भू-जल में आर्सेनिक और नाइट्रेट की मात्रा बढ़ रही है। साथ ही गंगा में सीवर निस्तारण होने लगा और अब तक करीब करीब 1350 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद गंगा को साफ करना मुश्किल हो रहा।

------------- हर तरफ धुआं धुआं, फिर भी सीट की मारामारी

आबादी बढ़ी तो परिवहन के साधन भी छोटे पड़ गए। शहर की सड़के 16 लाख से अधिक वाहनों से अटी पड़ी हैं। देश में 12 फीसद जनसंख्या के पास वाहन हैं और कानपुर में यह आंकड़ा 34 फीसद हो जाता है। 47 लाख की आबादी वाले शहर में 16 लाख से अधिक वाहन रोज दौड़ते हैं। सरकारी तंत्र आबादी के अनुसार पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं करा पाया और रेल से लेकर बस तक के लिए मारामारी है। अंदाजा लगा सकते हैं कि 29 मार्च 1930 को कन्नौैज से आई पहली रेल का सफर आज 380 ट्रेनों तक पहुंच गई है। लेकिन रेलवे स्टेशन पर भीड़ बता रही है कि इंतजाम नाकाफी है।

दस साल पहले रोडवेज के बेड़े में 600 बसें थी, जो अब 1400 से अधिक हो गई हैं लेकिन अधिकतर रूटों पर जनता एक अदद सीट के लिए तरस रही है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी से हाईवे पर वाहनों का दबाव बढ़ रहा है तो सिटी ट्रांसपोर्टेशन की कमी से शहर में। कानपुर की कोई सड़क ऐसी नहीं है, जहां जाम न लग रहा हो।

हर साल बढ़े इतने वाहन

2012 77145

2013 79797

2014 94672

2015 97914

2016 102468

2017 114515


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