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Kanpur Dakhil Daftar Column: अपनी गलती और साहब को दोष, बहुत काम किया है अब बचा लीजिए

कानपुर में प्रशासनिक महकमों का दाखिल दफ्तर कालम। एक साहब काफी दुखी हैं क्योंकि उन्हें मलाईदार पद नहीं मिला है। वहीं अनुदान घोटाले में एक अफसर तो इतना घबरा गए कि जनप्रतिनिधि को फोन करके कहा- भाईसाहब बचा लो नहीं तो निपट जाऊंगा।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 03:04 PM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 03:04 PM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column: अपनी गलती और साहब को दोष, बहुत काम किया है अब बचा लीजिए
कानपुर में प्रशासनिक महकमे की हलचल दाखिल दफ्तर।

कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। कानपुर शहर में प्रशासनिक अमले की हलचल रहती है और चर्चाएं भी बहूत होती हैं लेकिन सुर्खियां नहीं बन पाती हैं। ऐसी ही चर्चाओं काे चुटीले अंदाज में लेकर आता है दाखिल दफ्तर कालम। आइए, पढ़ते हैं बीते सप्ताह प्रशासनिक गलियारों में रही हलचल की खबरें...।

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टूटा ख्वाब और घूस की रकम भी न मिली

भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग के एक साहब आजकल परेशान हैं। पहले कई अहम पदों पर रहे साहब दुखी हैं, क्योंकि उन्हें मलाईदार पद भी नहीं मिला और घूस में जो रकम दी थी, वह भी वापस नहीं मिली। हुआ यह कि साहब जब अच्छे पद पर नहीं होते तो बीमार होने का नाटक करते हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने शासन में मजबूत पकड़ रखने वाले एक नेता जी से संपर्क साधा और मन की बात बता दी। नेता जी भी बड़े ताव से बोले, यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। चलो आपको कुर्सी मिल गई। मुझे क्या मिलेगा। साहब ने उनसे कुर्सी दिलवाने की कीमत पूछ ली। नेता जी ने जो रकम बताई, साहब ने उन्हें दे दी। नेता जी अचानक गायब हो गए और साहब का सपना भी टूट गया। कुछ दिनों बाद जब वह मिले तो उन्होंने साहब को देखकर सिर झुका लिया।

सब स्वार्थ के रिश्ते हैं

सड़कों का निर्माण कराने वाले एक साहब आजकल काम कम, प्रवचन ज्यादा देते हैं। साहब के पास अगर कोई बैठ गया तो समझो उसे महात्मा गांधी के संदेश के साथ ही स्वामी विवेकानंद और दयानंद सरस्वती के उपदेश साहब अच्छे से सुनाएंगे और चाय भी पिलाएंगे। एक दिन साहब ने अपने पास आए एक ठेकेदार को ज्ञान देना शुरू किया। ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा दी और बोले, जीवन में किसके लिए भ्रष्टाचार करते हो। यहां न कोई बेटा है और न ही कोई पत्नी। सब स्वार्थ के रिश्ते हैं। प्रवचन चल ही रहा था कि तभी उनके पास किसी उच्चाधिकारी का फोन आया और वहां से एक मोबाइल की डिमांड हुई। साहब ने शाम तक मोबाइल खरीद कर भेजने की बात कही। फोन कटा तो तत्काल ठेकेदार से बोले, यार 20 से 25 हजार रुपये का मोबाइल बड़े साहब को दे आओ। ठेकेदार बोला, साहब ईमानदारी कहां है।

बहुत काम किया है, बचा लीजिए

अनुदान घोटाले में एक और अफसर का निलंबन हो गया। निलंबन का आदेश आते ही वे अफसर भी घबरा गए, जिनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए डीएम ने संस्तुति कर रखी है। एक अफसर तो इस कार्रवाई से इतना परेशान हो गए कि उन्होंने एक जनप्रतिनिधि को फोन कर दिया और बोले, भाईसाहब बचा लो नहीं तो निपट जाऊंगा। आपने जब भी कहा, काम किया। आज तक कोई बात नहीं टाली। जनप्रतिनिधि महोदय एक कार्यकर्ता के यहां दावत खा रहे थे। मोबाइल का स्पीकर आन था। कार्यकर्ता भी साहब की बातें सुन रहे थे। जनप्रतिनिधि महोदय बोले, यार डीएम ईमानदार हैं। उनकी संस्तुति के बाद तो कार्रवाई होनी ही है। शासन में पैरवी तो कर दूंगा, लेकिन कोई फायदा नहीं होगा। इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया और कार्यकर्ताओं से बोले, यार अधिकारी तो काम का है, लेकिन भ्रष्टाचार का मामला है, पैरवी कर तो दूं पर काम नहीं आएगी।

अपनी गलती और साहब को दोष

एथलेटिक्स, ओलिंपिक आदि खेलों में भारत ज्यादा से ज्यादा मेडल जीते, इसके लिए अब ब्लाक स्तर पर भी प्रतिभाओं को निखारने का प्रयास चल रहा है। इसीलिए मिनी स्टेडियम बनाए जाने हैं। कल्याणपुर ब्लाक के मकसूदाबाद गांव में भी एक स्टेडियम बन रहा है। स्टेडियम के निर्माण में बड़ा भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। भ्रष्टाचार करने वाली एजेंसी के अधिकारी अपनी गलती मानने के बजाय अब जांच अधिकारियों पर ही दबाव बनाने का आरोप लगा रहे हैं और अधिकारियों के पास यह संदेश भिजवा रहे हैं कि अगर ठेकेदार या अधिकारी पर मुकदमा हुआ तो प्रोजेक्ट फंस जाएगा। इसलिए जो गलतियां हुईं उसे भूल जाएं और शांति से काम करने दें। इस बात की जानकारी जब विभाग की मुखिया को हुई तो प्रोजेक्ट बंद होने का भय उन्हें भी सताने लगा और अब वह भी रिपोर्ट पर चुप्पी साध गई हैं, जबकि मामला बड़ा है और दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।


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