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Kanpur Dakhil Daftar Column : विभाग का ध्यान आजकल काम पर कम...लेकिन गिफ्ट पर ज्यादा

कानपुर शहर में प्रशासनिक महकमे की गतिविधियों और चर्चाओं को लेकर आया है दाखिल दफ्तर कालम। परेशान साहब ज्योतिषियों की चौखट पर पहुंचे हैं। साहब रात दिन प्रार्थना करते थे कि उनका तबादला फिर पुराने प्राधिकरण में ही हो जाए।

By Akash DwivediEdited By: Published: Tue, 31 Aug 2021 11:01 AM (IST)Updated: Tue, 31 Aug 2021 11:01 AM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column : विभाग का ध्यान आजकल काम पर कम...लेकिन गिफ्ट पर ज्यादा
दाखिल दफ्तर में हैं कानपुर में प्रशासनिक महकमे की सुर्खियां।

कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। कानपुर शहर में प्रशासनिक महकमे में होने वाली हचलच की खासा चर्चा रहती है, विभागीय अफसरों के बीच क्या चल रहा है, यह जानने के लिए हर कोई बेताब रहता है। ऐसी ही चर्चाओं को दाखिल दफ्तर कालम चुटीले अंदाज में लेकर एक बार फिर आया है...।

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भाई मिठाई नहीं, गिफ्ट दिलाओ : सड़कों के निर्माण से जुड़े एक विभाग का ध्यान आजकल काम पर कम गिफ्ट पर ज्यादा है। साहब ने जब कार्यभार संभाला तो उन्होंने अधीनस्थों को स्पष्ट बताया कि वे उनकी इच्छा के अनुरूप काम करेंगे और उनके हिस्से की मलाई में कोई कमी भी नहीं होनी चाहिए। अधीनस्थ भी खुश कि साहब उनका हिस्सा ईमानदारी से देंगे, लेकिन सिर मुड़वाते ही ओले पड़ गए। साहब ने उन्हेंं बताया कि जेब खाली है तो अधीनस्थों ने आनन फानन में साहब को 10 लाख रुपये का इंतजाम करा दिया। अब साहब हर काम में उनसे पहले ही अपने हिस्से की मलाई रखवा ले रहे हैं। उन्हेंं मिठाई खाने का शौक है तो अधीनस्थ इतने डिब्बे उनके पास भिजवा रहे हैं कि साहब परेशान हो गए हैं। एक अधीनस्थ से उन्होंने कह दिया यार इतनी मिठाई आ रही है कि अब खा नहीं पा रहा हूं। भाई मिठाई नहीं, कोई गिफ्ट दिलाओ।

कार्रवाई करा देना पर ठेका नहीं दूंगा : विकास कार्य कराने वाले विभाग के एक अधिशासी अभियंता महोदय थोड़ा बड़बोले किस्म के हैं। साहब की सबसे बड़ी खासियत है काम की और गुणवत्ता से समझौता नहीं करना। यही वजह है कि वे किसी अफसर या जनप्रतिनिधि का दबाव नहीं मानते। पिछले दिनों एक जनप्रतिनिधि महोदय ने अपने प्रतिनिधि को साहब के पास भेजा। प्रतिनिधि ने करोड़ों रुपये का टेंडर खुद के आदमी को देने के लिए पैरवी की। पहले तो अधिशासी अभियंता ने मना किया। नियम और कानून बताए, लेकिन प्रतिनिधि महोदय कहां सुनने वाले, उन्हेंं तो इस बात का गुमान था कि वे तो देश की सबसे बड़ी पंचायत के सदस्य के प्रतिनिधि हैं। इसी गुमान में उन्होंने अधिशासी अभियंता को तबादला कराने की धमकी तक दे दी। अब अधिशासी अभियंता भी गुस्से में आ गए और उन्होंने प्रतिनिधि महोदय को कुर्सी से उठाया और बोले जाओ भाई तबादला नहीं कार्रवाई करा देना पर ठेका नहीं दूंगा।

जीरो टालरेंस की नीति धरी रही : गांवों में विकास कराने वाले एक विभाग के बड़े साहब जीरो टालरेंस की नीति पर काम करने का दावा तो खूब करते हैं, लेकिन कई जगहों पर उनकी यह नीति काम नहीं आ रही है, क्योंकि कुर्सी बचाने के चक्कर में साहब भी कुछ मुद्दों पर समझौता कर लेते हैं। जरा सी अनियिमतता पकड़ में आई तो समझो साहब ने दोषी के विरुद्ध कार्रवाई कर दी, लेकिन हाल ही में कुछ ऐसे मामले पकड़ में आए हैं, जिनमें साहब की जीरो टालरेंस की नीति धरी की धरी रह गई। गांवों में बिना वर्क आर्डर के ही विकास कराने के मामले में जब साहब से कार्रवाई के लिए कहा गया तो उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी। इसी बीच पता चला कि जिन्होंने बिना वर्क आर्डर के काम कराया हैं और जिन्होंने किया है, वे दोनों एक विधायक जी के खासमखास हैं। विधायक जी नाराज हो जाएंगे, इसलिए कार्रवाई रुक गई।

गलती करने वाले को ही जांच : स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को स्वावलंबी बनाने के लिए बैंक में सखी बनाया जा रहा है। सामुदायिक शौचालय का केयर टेकर और राशन का वितरण करने समेत कई जिम्मेदारियां दी जा रही हैं, लेकिन इस कार्य में भी खेल हो रहा है। कुछ समूहों को ही ये काम दिए जा रहे हैं। यह मामला उठा तो जांच के लिए मुख्य विकास अधिकारी ने कमेटी का गठन कर दिया, लेकिन कमेटी में अब उसी विभाग के अधिकारी को जांच कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया, जिस पर अनियिमतता का आरोप लगा था। अब स्थिति यह है कि कमेटी तो बन गई, लेकिन जांच दो कदम भी आगे नहीं बढ़ रही है। ऐसे में इस बात की चर्चा है कि आखिर भ्रष्टाचार पर त्वरित कार्रवाई करने वाले साहब ने आरोपित को ही जांच टीम का मुखिया कैसे बना दिया। मुखिया बना दिया तो अब जांच क्यों पूरी नहीं करा रहे हैं।


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