Janmashtami 2022:'इंकलाबी' मौलाना मोहानी के दिल में बसते थे बांके बिहारी, हज के बाद मथुरा में देते थे हाजिरी
Janmashtami 2022 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शायर व पत्रकार मौलाना हसरत मोहानी की शायरी में कृष्ण प्रेम की झलक दिखती थी। मक्का से हज कर लौटते तो वह कान्हा के दर्शन को मथुरा में भी हाजिरी देते थे। उनके झोले में हमेशा वह साथ बांसुरी रखते थे।
कानपुर, [मोहम्मद दाऊद खान]। Janmashtami 2022: हसरत की भी कबूल हो मथुरा में हाजिरी, सुनते हैं आशिकों पे तुम्हारा करम है खास... ये मशहूर शायरी उन्नाव के मोहान में जन्मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शायर व पत्रकार मौलाना हसरत मोहानी की है। कानपुर उनकी कर्मस्थली रहा है।
आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जिस मोहानी की कलम से इंकलाब की चिंगारी निकलती थी उन्हीं के दिल में बांके बिहारी की छवि बसती थी। जन्माष्टमी में वे मथुरा-वृंदावन की कुंज गलियों में कृष्ण के प्रेम में लीन होकर घूमते थे। वह अपने झोले में हमेशा एक बांसुरी भी रखते थे। 'तोसे प्रीत लगाई कन्हाई, पनिया भरन जाय न देहें श्याम भरे पिचकारी' और 'पैगाम ए हयात ए जावेदां था, हर नगमा ए कृष्ण बांसुरी का...' जैसी शायरी उनके कृष्ण प्रेम की गवाह हैं।
मौलाना हसरत मोहानी का पूरा नाम सय्यद फजल-उल-हसन था। उनका जन्म एक जनवरी 1875 में उन्नाव के मोहान में हुआ था। मोहान उनकी जन्मस्थली और कानपुर उनकी कर्मस्थली रहा। आजादी के आंदोलन में उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा गढ़ा था। लखनऊ स्थित मौलवी अनवार के बाग में उनकी मजार है। मौलाना हसरत मोहानी गंगा-जमुनी तहजीब का संगम थे। वे अरब से हज कर लौटते तो वापसी में मथुरा भी जाते थे।
मक्का, मथुरा और मास्को को जीवन में मानते थे सबसे महत्वपूर्ण
कानुपर इतिहास समिति के महासचिव अनूप शुक्ला बताते हैं कि मौलाना हसरत मोहानी को मुरली मनोहर से अगाध प्रेम था। यह उनकी शायरी में भी झलकता है। वे बताते हैं कि उनके जीवन में तीन 'म' बहुत महत्वपूर्ण थे। एक मक्का, दूसरा मथुरा और तीसरा मास्को। भारत सरकार ने वर्ष 2014 में मौलाना हसरत मोहानी की स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया।
'मेरा मजहब फकीरी है'
मोहानी के श्रीकृष्ण प्रेम पर सवाल भी उठते थे। हालांकि वह उसका जवाब भी उतनी ही सरलता से देते थे। एक शख्स ने मजहब का हवाला दिया तो मोहानी ने कविता के जरिये जवाब देकर कहा था 'मेरा मजहब है फकीरी और इंकलाब, मैं सूफी मोमिन हूं और साम्यवादी मुसलमान।'
मुरलीधर पर मौलाना की शायरी
मोपो रंग न डार मुरारी, बिनती करत हूं तिहारी।
मथुरा कि नगर है आशिकी का, दम भरती है आरजू उसी का।
मन तोसे प्रीत लगाई कान्हाई, काहू और की सूरत अब काहे को आई।
मोसे छेर करत नंदलाल, लिए ठारे अबीर गुलाल।
हसरत की भी कुबूल हो मथुरा में हाजिरी।
पनिया भरन के जाय न देहें, श्याम भरे पिचकारी।