टरकाने से भी नहीं बनी बात, अब सफलता के लिए जुटे तन मन से Kanpur News
28 फरवरी से शुरू हो रहे बिठूर गंगा उत्सव को लेकर हुई खींचतान को पेश करती खबर।
कानपुर, जेएनएन। लंबी जद्दोजहद के बाद आखिर बिठूर गंगा उत्सव होने जा रहा है। इसके आयोजन को लेकर नेताओं से लेकर अधिकारियों तक में काफी खींचतान चलती रही, तब जाकर इस पर मुहर लगी। इस उत्सव को लेकर अब तक क्या हुआ, इसी को रियल जर्नलिज्म के तहत गंगा तीरे कॉलम के जरिये हकीकत बताती श्रीनारायण मिश्र की रिपोर्ट।
बिठूर गंगोत्सव पर सरकारी उबासी
कला, साहित्य, संस्कृति का विषय छेड़कर काहे बोर करते हो भइया। सरकारी अफसर हैं, कुछ बजट रिलेटेड 'विकासपरक' मुद्दों पर बात करो। बिना बजट का बोङ्क्षरग विषय धर दिया है तो उबासी आएगी ही, कोई इंटरेस्टै नहीं आता है। बिठूर महोत्सव ऐसी ही सरकारी उबासी का विषय है, जिस पर जाने क्यों कुछ लोग सरकार को उकसा देते हैं और सरकार उसे अफसरों के मत्थे मढ़ देती है। बहुत टरकाया, बात नहीं बनी तो चलो खैर, नवंबर में न सही मार्च में ही बिठूर गंगा उत्सव मना डालते हैं। आगे की तैयारी कुछ इस अंदाज में होती है, 'ऐसा करो फलां साहब, तीन दिन में यह कार्यक्रम खत्म करना है, अरे बड़ा प्रेशर है भाई।' जवाब मिलता है, 'हां साहब कर रहे हैं, अब कोई बजट तो है नहीं, फिर भी विभागों से कह दिया है। इसी बहाने इंडस्ट्री वालों को भी टटोल लेंगे।' यों उत्सव की तैयारी चल रही है।
लोकल वालों का खराब स्टैंडर्ड
लो जी बिठूर गंगा उत्सव की गाड़ी आगे चल पड़ी। 'फलां साहब' साहब ने बजट प्रबंधन का इंतजाम साहब के कान में फूंक दिया। 'देखो ऐसा करो कि कलाकार स्टैंडर्ड बुलाना। कुछ काम माध्यमिक व बेसिक शिक्षा वालों को भी दे देना। स्कूली बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम करा देंगे। तीन दिन का मामला है।' जवाब मिला, 'जनाब फिल्म इंडस्ट्री से कई लोगों को बुला रहे हैं। अच्छे नामी कलाकार हैं। इससे कार्यक्रम में चार चांद लग जाएंगे। पब्लिक भी अच्छी आएगी।' अगला सवाल, 'वो वीआइपी इंतजाम का क्या हुआ?' जवाब आया 'सब दुरुस्त है जनाब, वीआइपी के लिए अच्छे इंतजाम हैं। उसके बाद स्टाफ और फैमिली का भी इंतजाम करवा दिया गया है। बाकी पब्लिक पीछे बैठ जाएगी।' विधायक जी तुनके 'अजी स्थानीय कलाकारों को भी तो मौका मिले?' साहब बोले 'एक तो समय कम है, ऊपर से स्टैंडर्ड भी मेंटेन रखना है। गलत मैसेज नहीं जाना चाहिए।'
तमाशबीन दुकानें सजा के बैठ गए
अब सब काम अफसर ही तो करेंगे नहीं। कुछ काम तो दूसरों को मिलेगा। इसी बहाने चेहरा चमकाने का मौका तो मिलना ही चाहिए। सो बिठूर महोत्सव के लिए तमाशबीन भी दुकानें सजा कर बैठ गए। साहब के दरबार में अपना वर्षों का अनुभव गिनाया। कवि सम्मेलन से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विशेषज्ञ पहुंचे तो कई साहेबान बताने लगे कि जब वे संचालन करते हैं तो जनता कुर्सी से चिपक जाती है। साहब ने सबके चेहरे गौर से देखे, अंदाज लगाया कि किसके चेहरे पर 'विचारधारा' की चमक है। फिर फलां साहब से मुखातिब हुए। 'भई फलां साहब यह लोग बड़े अनुभवी हैं, इनके अनुभव का भी फायदा उठाइए। आप मीटिंग में आइए, वहीं सब तय हो जाएगा।' यह फरमान देकर साहब विचार मग्न हो गए। अब उनके विचार में माइक तैर रहा था, जिसमें वह धड़ल्ले से संस्कृति प्रेम बोल रहे हैं और पब्लिक तालियां पीट रही है।
माया महाठगिनी हम जानी
यह कहावत माया के लिए जितनी सटीक है। उतनी ही फिट सत्ता पर भी बैठती है। अहहा! सत्ता का स्वाद कितना मधुर होता है। विपक्ष में जो बातें उपद्रव लगती हैं, वह सत्ता में आते ही 'संस्कार' बन जाती हैं। कानून तोडऩा जहां दंडनीय माना जाता है, वहीं सत्ता में यह प्रतिष्ठा का पर्याय बन जाता है। जिसे इन बातों पर यकीन न हो तो जरा भाजपाइयों के चार पहिया वाहनों पर नजर डाल ले। नेताजी छोटे हैं या बड़े, यह बात अहम नहीं है। अहमियत की बात यह है कि उनकी गाड़ी पर उनके नाम और तस्वीर के साथ कितना बड़ा पोस्टर है। उनके हूटर से कितने हट्र्ज की आवाज आती है। चैतू की बाइक में टेढ़े शीशे की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी उनकी गाड़ी देखकर तत्काल साइड पकड़ लेते हैं या नहीं। यही जलवा सत्ता में रहकर दिखाने वाले मौजूदा विपक्षी अब इसे अनाचार कहते हैं। कहते हैं कि आरटीओ से लेकर पुलिस तक लाचार है। इनके खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं की जाती। अमां छोड़ो भी, सत्ता इसी का नाम है।