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सुखदेव ने पत्र भेजकर महात्मा गांधी से की थी क्रांतिकारियों पर रहम की प्रार्थना, जानें- वजह

स्वाधीनता संग्राम के दौरान कई ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें दुभाग्यवश जेल में समय गुजारना पड़ा। उस समय वे अपनी बातें पहुंचाने के लिए एक-दूसरे को पत्राचार किया करते थे। जागरण डॉट कॉम आपके लिए लेकर आया है शहीद सुखदेव का वो पत्र जो उन्हाेंने महात्मा गांधी के नाम लिखा था।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Sat, 18 Sep 2021 08:49 PM (IST)Updated: Sat, 18 Sep 2021 08:49 PM (IST)
सुखदेव ने पत्र भेजकर महात्मा गांधी से की थी क्रांतिकारियों पर रहम की प्रार्थना, जानें- वजह
शहीद सुखदेव आैर महात्मा गांधी की खबर से संबंधित सांकेतिक फोटो।

कानपुर, [महात्मा गांधी को लिखा गया पत्र]  पांच मार्च, 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के बीच राजनीतिक समझौता हुआ। जिसे गांधी-इरविन समझौते के रूप में जाना जाता है। इसका एक बिंदु यह भी था कि  हिंसा के आरोपियों को छोड़ सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा। इस समझौते के बाद सुखदेव ने गांधी जी के नाम ‘एक खुली चिट्ठी’ लिखी। जिसके जवाब में गांधी जी ने भी खत लिखा था। दोनों ही पत्र 'हिंदी नवजीवन’ में भी प्रकाशित हुए थे। 

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परम कृपालु महात्मा जी,

ताजा खबरों से मालूम होता है कि समझौते की बातचीत की सफलता के बाद आपने क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं को फिलहाल अपना आंदोलन बंद कर देने और आपको अपने अहिंसावाद को आजमाकर देखने का आखिरी मौका देने के लिए कई प्रकट प्रार्थनाएं की हैं। वस्तुत: किसी आंदोलन को बंद करना केवल आदर्श या भावना से होने वाला काम नहीं है। भिन्न-भिन्न अवसरों की आवश्यकताओं का विचार ही अगुवा लोगों को उनकी युद्धनीति बदलने के लिए विवश करता है।

माना कि सुलह की बातचीत के दरम्यान आपने इस ओर एक क्षण के लिए भी न तो दुर्लक्ष्य किया, न इसे छिपा ही रखा कि यह समझौता अंतिम समझौता नहीं होगा। मैं मानता हूं कि सब बुद्धिमान लोग बिल्कुल आसानी से यह समझ गए होंगे कि आपके द्वारा प्राप्त तमाम सुधारों का अमल होने पर भी कोई यह न मानेगा कि हम मंजिले मकसूद पर पहुंच गए हैं। संपूर्ण स्वतंत्रता जब तक न मिले तब तक अविराम लड़ते रहने के लिए महासभा लाहौर के प्रस्ताव से बंधी हुई है। उस प्रस्ताव को देखते हुए मौजूदा सुलह और समझौता सिर्फ कामचलाऊ युद्ध विराम है जिसका अर्थ यही होता है कि आने वाली लड़ाई के लिए अधिक बड़े पैमाने पर अधिक अच्छी सेना तैयार करने के लिए यह थोड़ा विश्राम है। इस विचार के साथ ही समझौते और युद्धविराम की शक्यता की कल्पना की जा सकती है और उसका औचित्य सिद्ध हो सकता है।

किसी भी प्रकार का युद्ध विराम करने का उचित अवसर और उसकी शर्तें ठहराने का काम तो उस आंदोलन के अगुवा लोगों का है। लाहौर वाले प्रस्ताव के रहते हुए भी आपने फिलहाल सक्रिय आंदोलन बंद रखना उचित समझा है तो भी वह प्रस्ताव तो कायम ही है। इसी तरह ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी’ के नाम से ही साफ पता चलता है कि क्रांतिवादियों का आदर्श जनसत्तावादी प्रजातंत्र की स्थापना करना है। यह प्रजातंत्र मध्य का विश्राम नहीं है। उनका ध्येय जब तक प्राप्त न हो और आदर्श सिद्ध न हो तब तक वे लड़ाई जारी रखने के लिए बंधे हुए हैं परंतु बदलती हुई परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार वे अपनी युद्धनीति बदलने को तैयार अवश्य होंगे। क्रांतिकारी युद्ध जुदा-जुदा मौकों पर जुदा-जुदा रूप धारण करता है। कभी वह प्रकट होता है, कभी गुप्त, कभी केवल आंदोलन का रूप होता है और कभी जीवन-मरण का भयानक संग्राम बन जाता है। ऐसे में क्रांतिवादियों के सामने अपना आंदोलन बंद करने के लिए विशेष कारण होने चाहिए परंतु आपने ऐसा कोई निश्चित विचार प्रकट नहीं किया। निरीह भावपूर्ण अपीलों का क्रांतिवादी युद्ध में कोई विशेष महत्व नहीं होता, हो नहीं सकता।

आपने समझौते के बाद अपना आंदोलन बंद किया है और फलस्वरूप आपके सभी कैदी रिहा हुए हैं पर क्रांतिकारी कैदियों का क्या? 1915 ईसवी से जेलों में पड़े हुए गदर पार्टी के सभी 20 कैदी सजा की मियाद पूरी हो जाने पर भी अब तक जेलों में हैं। मार्शल कानून के बीसों कैदी आज भी जिंदा कब्रों में दफनाए पड़े हैं। यही हाल बब्बर अकाली कैदियों का है। देवगढ़, काकोरी, मछुआ बाजार और लाहौर षड्यंत्र के कैदी अब तक जेल की चहारदीवारी में बंद पड़े हुए बहुतेरे कैदियों में से कुछ हैं। बहुसंख्यक क्रांतिवादी भागते फिरते हैं और उनमें कई तो स्त्रियां हैं। सचमुच आधा दर्जन से अधिक कैदी फांसी पर लटकने की राह देख रहे हैं। उन सबका क्या? लाहौर षड्यंत्र केस के सजायाफ्ता तीन कैदी, जो सौभाग्य से मशहूर हो गए और जिन्होंने जनता की बहुत अधिक सहानुभूति प्राप्त की है, वे कुछ क्रांतिवादी दल का बड़ा हिस्सा नहीं हैं। उनका भविष्य ही उस दल के सामने एकमात्र प्रश्न नहीं है। सच पूछो तो उनके फांसी चढ़ जाने से ही अधिक लाभ होने की आशा है। यह सब होते हुए भी आप उन्हें अपना आंदोलन बंद करने की सलाह देते हैं। वे ऐसा क्यों करें? आपने किसी निश्चित वस्तु की ओर निर्देश नहीं किया है। ऐसी दशा में आपकी प्रार्थनाओं का यही मतलब होता है कि आप इस आंदोलन को कुचल देने में नौकरशाही की मदद कर रहे हैं और आपकी विनती का अर्थ उनके दल को द्रोह, पलायन और विश्वासघात का उपदेश करना है। यदि ऐसी बात नहीं है तो आपके लिए उत्तम तो यह था कि आप कुछ अग्रगण्य क्रांतिकारियों के पास जाकर उनसे सारे मामले के बारे में बातचीत कर लेते। अपना आंदोलन बंद करने के बारे में पहले आपको उनकी बुद्धि की प्रतीति करा लेने का प्रयत्न करना चाहिए था। मैं नहीं मानता कि आप भी इस प्रचलित पुरानी कल्पना में विश्वास रखते हैं कि क्रांतिकारी बुद्धिहीन हैं, विनाश और संहार में आनंद मानने वाले हैं। मैं आपको कहता हूं कि वस्तुस्थिति ठीक इसकी उल्टी है। वे सदैव कोई भी काम करने से पहले उस पर खूब सूक्ष्म विचार कर लेते हैं और इस प्रकार वे जो जिम्मेदारी अपने माथे लेते हैं, उसका उन्हें पूरा-पूरा ख्याल होता है और क्रांति के कार्य में वे रचनात्मक अंग को अत्यंत महत्व देते हैं हालांकि मौजूदा हालत में अपने कार्यक्रम के संहारक अंग पर डटे रहने के सिवा और कोई चारा उनके लिए नहीं है।

उनके प्रति सरकार की मौजूदा नीति यह है कि लोगों की ओर से उन्हें अपने आंदोलन के लिए जो सहानुभूति और सहायता मिली है, उससे वंचित करके उन्हें कुचल डाला जाए। ऐसी दशा में उनके दल में मतभेद और शिथिलता पैदा करने वाली कोई भी भावपूर्ण अपील एकदम बुद्धिमानी से रहित और क्रांतिकारियों को कुचल डालने में सरकार की सीधी मदद करने वाली होगी। इसलिए हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि या तो आप कुछ क्रांतिकारी नेताओं से बातचीत कीजिए- उनमें से कई जेलों में हैं और उनके साथ सुलह कीजिए या ये सब प्रार्थनाएं बंद रखिए। कृपा कर हित की दृष्टि से इन दो में से कोई एक रास्ता चुन लीजिए और सच्चे दिल से उस पर चलिए। अगर आप उनकी मदद न कर सकें तो मेहरबानी करके उन पर रहम करें। उन्हें अलग रहने दें। वे अपनी हिफाजत खुद ही अधिक अच्छी तरह कर सकते हैं। वे जानते हैं कि भावी राजनैतिक युद्ध में सर्वोपरि स्थान क्रांतिकारी पक्ष को ही मिलने वाला है। लोक समूह उनके आस-पास इकट्ठे हो रहे हैं और वह दिन दूर नहीं है जब ये जनसमूह को अपने झंडे तले जनसत्तावादी प्रजातंत्र के उम्दा और भव्य आदर्श की ओर ले जाते होंगे अथवा अगर आप सचमुच ही उनकी सहायता करना चाहते हों तो उनका दृष्टि बिंदु समझने के लिए उनके साथ बातचीत करके इस सवाल की पूरी तफसील से चर्चा कर लीजिए।

आशा है आप कृपा करके उक्त प्रार्थना पर विचार करेंगे और अपने विचार सर्वसाधारण के सामने प्रकट करेंगे।

आपका 

अनेकों में से एक

(इस पत्र के जवाब में गांधी जी द्वारा लिखित 

खत पढ़िए अगले अंक में)


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