सिखों की शहादत को यादगार बनाएगा सिक्का, नजर आएंगे कूका आंदोलन के प्रणेता सतगुरु राम सिंह
अंग्रेजों ने धार्मिक सुधार की मुहिम चलाने वाले 66 नामधारी सिखों को तोप के सामने खड़ा करके उड़ा दिया था।
कानपुर, बृजेश दुबे। धार्मिक सुधार के कूका आंदोलन को फिरंगी सरकार के प्रति सशस्त्र आंदोलन में बदलने वाले सतगुरू राम सिंह कूका के जन्म के दो सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में केंद्र सरकार दो सौ रुपये मूल्य वर्ग का स्मारक सिक्का जारी करने जा रही है। स्मारक सिक्का कभी प्रचलन में नहीं आएगा।
कोलकाता टकसाल ने तैयार किया सिक्का
200 रुपये मूल्य वर्ग का स्मारक सिक्का 35 ग्राम और 44 मिमी व्यास का होगा। इस सिक्के में 50 फीसद चांदी, 40 फीसद तांबा और पांच-पांच फीसद निकल व जस्ता धातु है। यह सिक्का कोलकाता टकसाल ने तैयार किया है। इसके साथ ही सरकार दस रुपये के मूल्य वर्ग में प्रचलन योग्य द्वि-धात्विक सिक्का भी जारी करेगी। इस सिक्के का वजन 7.71 ग्राम और व्यास 27 मिमी है।
200 रुपये के तीन सिक्के
200 रुपये मूल्य वर्ग का यह तीसरा स्मारक सिक्का है। इससे पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे की 200वीं जयंती और पाइका विद्रोह के 200वें साल के उपलक्ष्य में इस मूल्य वर्ग का सिक्का जारी किया गया था।
सिख धर्म से संबंधित जारी होने वाला पांचवां सिक्का
सिक्कों के संग्राहक बीकानेर के सुधीर लूणावत बताते हैं कि सिख धर्म से संबधित जारी होने वाला यह पांचवां सिक्का होगा। इसके पहले गुरुता गद्दी के तीन सौ वर्ष, कूका आंदोलन के 150 वर्ष, गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व और गुरु नानकदेव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर भारत सरकार स्मारक सिक्का जारी कर चुकी है।
जानें-क्या था कूका अांदोलन
कूका आंदोलन की शुरूआत 1840 में भगत जवाहरमल ने की थी। तब यह आंदोलन समाज में फैले मांसाहार, नशा, जीव हत्या, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ और महिला अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा था। उनके शिष्य बालकदास जी के साथ गुरु रामसिंह कूका ने इस आंदोलन की बागडोर संभाली। वर्ष 1872 में जब अंग्रेजों ने गो-हत्या के लिए बूचडख़ाने खोले तब सामाजिक सुधार का यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का आंदोलन बन गया। बूचडख़ानों पर हमला बोलकर बंद करा दिया गया। गुस्साई फिरंगी सरकार ने कूका आंदोलन को बढ़ाने में लगे 66 नामधारी सिखों को एक-एक कर तोप में बांधकर उड़ा दिया था। अंत में बचे 12 वर्षीय बच्चे को अंग्रेजों ने छोड़ दिया। उसने कहा, मुझे भी तोप से बांधों और अंग्रेजों ने उसे भी उड़ा दिया। गुरु रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया था। वहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली थी।