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शहर बढ़ रहा कैंसर के अनचाहे रिकार्ड की ओर

टीबी की बीमारी और प्रदूषण के मामले में शहर अव्वल पायदान पर पहले से शुमार है। अब कैंसर में भी धीरे-धीरे कानपुर के नाम अनचाहा रिकॉर्ड दर्ज होता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 10:33 AM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 11:07 AM (IST)
शहर बढ़ रहा कैंसर के अनचाहे रिकार्ड की ओर
शहर बढ़ रहा कैंसर के अनचाहे रिकार्ड की ओर

ऋषि दीक्षित, कानपुर : टीबी की बीमारी और प्रदूषण के मामले में शहर अव्वल पायदान पर पहले से शुमार है। अब पान मसाला और तंबाकू पदार्थो के सेवन के मामले में नंबर वन होने के साथ ही मुख कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब शहर के नाम एक और अनचाहा रिकार्ड दर्ज होगा।

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कानपुर महानगर पान मसाला एवं तंबाकू से जुड़े पदार्थो के उत्पादन में भारत की नहीं विश्व में नंबर वन है। यहां अरबों रुपये का कारोबार होता है। सरकार भी जीएसटी एवं आयकर के रूप में भारी-भरकम राजस्व वसूलती है हालांकि कारोबार का साइड इफेक्ट मुख कैंसर के रूप में सामने आ रहा है। सरकार को भले ही अरबों रुपये की आय हो, लेकिन इसका तीन गुना धन मुख कैंसर के इलाज में खर्च करना पड़ता है। मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट के शोध में यह आंकड़े सामने आए हैं।

हर साल बढ़ रहे मरीज

जेके कैंसर संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक साल दर साल कैंसर मरीजों की संख्या में तेजी बढ़ रही है। इसमें मुख कैंसर के मरीज सर्वाधिक हैं वहीं महिलाओं में सर्वाधिक होने वाले सर्विक्स कैंसर (बच्चेदानी का मुख कैंसर) के रोगियों की संख्या घटी है।

नेपाल तक से इलाज को आते मरीज

सूबे के एकमात्र राजकीय जेके कैंसर संस्थान में महानगर, आसपास के 22 जिलों से मरीज इलाज को आते हैं। इसके अलावा दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार प्रांत के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी इलाज के लिए पहुंचते हैं।

हर साल मुख कैंसर के दो हजार नए मरीज

जेके कैंसर संस्थान के पूर्व निदेशक एवं कैंसर विशेषज्ञ डॉ.अवधेश दीक्षित बताते हैं कि महानगर व आसपास की 50 फीसद आबादी पान मसाला या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रही है। इसकी वजह से हर साल मुख कैंसर की चपेट में दो हजार कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं। इसकी वजह पान मसाले में इस्तेमाल होने वाला गैम्बियर यानी नकली कत्था है।

यह है प्री कैंसर स्टेज

लगातार 10-15 वर्ष तक पान मसाले के सेवन से मुंह के अंदर की ओरल कैविटी लाइन क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिसे बकल म्यूकोसा कहते हैं। मुंह के अंदर भूरे व सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं। मुंह खोलने में दिक्कत होती है। इसे ही प्री कैंसर स्टेज कहते हैं। लापरवाही बरतने से छाला व घाव हो जाता है, जो कैंसर बन जाता है।

निजी क्षेत्र में भी खुले कैंसर संस्थान

मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दो कैंसर संस्थान निजी क्षेत्र में भी खुल गए हैं। उनमें रोज की ओपीडी में 150 मरीज इलाज को पहुंच रहे हैं वहीं जेके कैंसर संस्थान में 200-250 मरीज आते हैं।

वर्ष 2017 में चिह्नित मरीज

मुख कैंसर : 4800

स्तन कैंसर : 2300

सर्विक्स कैंसर : 2100

गाल ब्लॉडर कैंसर : 1100

लंग्स का कैंसर : 1200

प्रोस्टेट का कैंसर : 720

सीएमएल कैंसर : 745

सॉफ्ट टिश्यू : 470

बच्चों में कैंसर : 358

पुराने मरीज : 32000

नये मरीज 13793

वर्ष 2015 : नये मरीज 9704

ओरल कैंसर के 3075

वर्ष 2016 : नये मरीज 10850

ओरल कैंसर के 3600

(ये आंकड़े सरकारी अस्पताल के हैं जबकि निजी अस्पतालों में भी मरीजों का इलाज चल रहा है)

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''महानगर में मुख कैंसर के मरीजों की सर्वाधिक संख्या का जिक्र शोधपत्रों के जरिये विभिन्न मंचों पर किया गया है। संस्थान के आंकड़े हर वर्ष 30 फीसद ओरल कैंसर के नए मरीज सामने आने की पुष्टि करते हैं। - डॉ.एमपी मिश्र, निदेशक, जेके कैंसर संस्थान।


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