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आइआइटी करेगा गंगा की मानीट¨रग

जागरण संवाददाता, कानपुर: एनजीटी की सख्ती के बावजूद गंगा में प्रदूषण कम नहीं हो रहा है। गं

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 03:02 AM (IST)Updated: Sat, 17 Feb 2018 03:02 AM (IST)
आइआइटी करेगा गंगा की मानीट¨रग
आइआइटी करेगा गंगा की मानीट¨रग

जागरण संवाददाता, कानपुर: एनजीटी की सख्ती के बावजूद गंगा में प्रदूषण कम नहीं हो रहा है। गंगा में हानिकारक तत्व और रसायनों की मात्रा बढ़ती जा रही है। इसे देखते हुए उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) आइआइटी के साथ मिलकर गंगा के प्रदूषण पर काम करेंगे। आइआइटी की लैब में गंगाजल की जांच होगी। उसके आधार पर कार्ययोजना तैयार की जाएगी।

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फर्रुखाबाद, कन्नौज और कानपुर को मिलाकर यूपीपीसीबी के15 से अधिक मानीटरिंग स्टेशन हैं। यह अप और डाउन स्ट्रीम दोनो में लगे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय समय पर गंगाजल के नमूने लेता है। इसमें पानी का रंग, पीएच वैल्यू, डिसाल्वड ऑक्सीजन, बीओडी के आंकड़े निकाले जाते हैं। हालांकिप्रदूषण विभाग के लिये गए नमूने की जांच विभाग के पास बने लैब में होती है। कई बार मेटल और बैक्टीरिया के भी होने की आशका रहती है। इस स्थिति में जांच कराना मुश्किल रहता है।

मानीट¨रग पर बनी सहमति

पिछले दिनों लखनऊ में सीपीसीबी व यूपीपीसीबी के अधिकारियों की हुई बैठक में आइआइटी के वैज्ञानिकों को मानीटरिंग में शामिल करने पर सहमति बनी।

क मिकल लैब में जांचे जाएंगे नमूने

आइआइटी कानपुर के केमिकल लैब में गंगा के नमूनों की जांच की जाएगी। यह समस्या उत्तराखंड के बाद से शुरू हो जाती है। उत्तराखंड से गंगा फर्रुखाबाद पहुंची हैं। यहा उत्तराखंड से आई रामगंगा नदी से मिलान होता है। फर्रुखाबाद में उप्र के पश्चिमी हिस्से से बह कर आई काली नदी गंगा में मिलती है। कानपुर से ही गंगा इलाहाबाद, वाराणसी, बिहार से होकर कोलकाता पहुंची है। इलाहाबाद और वाराणसी में काफी संख्या में श्रद्धालु और विदेशी पर्यटक आते हैं। उन शहरों में गंगा की स्वच्छता को लेकर फर्रुखाबाद से ही गंगा की धारा पर नजर रखी जाएगी।

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अतिसूक्ष्म पदार्थ की हो सकेगी पड़ताल

य पीपीसीबी के सहायक वैज्ञानिक एचसी जोशी के मुताबिक गंगा में आंखों से न दिखाई देने वाले अतिसूक्ष्म पदार्थ रहते हैं। इसमें फैक्टरियों से निकलने वाले मेटल खासकर जिंक, आर्सेनिक, फ्लोराइड रहते हैं। कीटनाशक, बैक्टरिया, वायरस का भी पता नहीं चल पाता है।

आइआइटी की लैब में कई मशीनें

आइआइटी की लैब में डबल एएस मशीन और इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप हैं। डबल एएस से कीटनाशक, मेटल का पता चलता है, जबकि इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से बैक्टीरिया, वायरस की जानकारी मिलती है।

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यूपीपीसीबी व सीपीसीबी के अधिकारियों की लखनऊ में हुई बैठक में आइआइटी को गंगा की मानीट¨रग के लिए शामिल किया गया है। उनकी लैब में नमूने भेजे जाएंगे। वह स्वयं सैंपलिंग कर जांच कर सकेंगे।

-कुलदीप मिश्र, क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड


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