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दिल्ली एनसीआर को प्रदूषण बचाने के लिए हरियाणा की पराली प्रबंधन करेगा आइआइटी कानपुर

हरियाणा की संस्था ने किया संपर्क, कृषि एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों से भी बातचीत हो चुकी है।

By AbhishekEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 06:21 PM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 06:21 PM (IST)
दिल्ली एनसीआर को प्रदूषण बचाने के लिए हरियाणा की पराली प्रबंधन करेगा आइआइटी कानपुर
दिल्ली एनसीआर को प्रदूषण बचाने के लिए हरियाणा की पराली प्रबंधन करेगा आइआइटी कानपुर

कानपुर, जेएनएन। दिल्ली, एनसीआर, उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों को वायु प्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए अब हरियाणा में पराली प्रबंधन का काम आइआइटी द्वारा किया जाएगा। इसके लिए हरियाणा की एक सामाजिक संस्था ने आइआइटी से संपर्क किया है और हरियाणा के कृषि एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों से भी बातचीत हो चुकी है।

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वायु प्रदूषण को हानिकारक स्थिति तक पहुंचाने के लिए वाहनों से निकलने वाले धुएं, औद्योगिक इकाइयों के साथ कूड़ा और फसलों के अवशेष प्रमुख कारण हैं। इसे लेकर आम लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसके साथ ही कई सामाजिक संस्थाएं अपने-अपने स्तर से प्रयास करने में जुटी हैं। इसी के चलते एक संस्था ने पराली प्रबंधन के लिए आइआइटी कानपुर से भी संपर्क किया है। 26 नवंबर को दोबारा मीटिंग होनी है। सब ठीक रहा तो इसी बैठक में एमओयू साइन हो सकता है।

कृषि अवशेष से बनेगी जैविक खाद

आइआइटी के सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग ने कृषि अवशेष और घरेलू कचरे से जैविक खाद बनाने की तकनीक इजाद की। इसके लिए प्लांट लगाकर 1500 घरों से निकलने वाले कचरे को 10-15 दिन में ही खाद के रूप में बदल दिया गया। इसमें सूखी और गीली दोनों खाद शामिल हैं। उन्नत भारत अभियान के तहत इन्हें कानपुर के सात गांवों में वितरित भी किया जा चुका है। पीलीभीत की बड़ी जोत वाले किसान प्रोजेक्ट में जुटे अधिकारियों से मिले और उन्हें आमंत्रित किया। आइआइटी के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि आइआइटी ने फसलों के अवशेषों को बहुत ही कम समय में जैविक खाद के रूप में विकसित करने की तकनीक इजाद की है। किसानों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। कई संस्थानों की ओर से तकनीक के प्रदर्शन को लेकर आमंत्रण मिल रहा है। हरियाणा से भी बातचीत चल रही है।

बीटेक छात्र ने अपनी कंपनी तैयार की

शोध में लगे बीटेक के छात्र हरि शंकर ने अपनी कंपनी तैयार की। उन्होंने आइआइटी में चल रहे प्रोजेक्ट के साथ काम करना शुरू कर दिया। इससे संस्थान के गार्डन में लगने वाली लाखों रुपये की खाद व कीटनाशकों का खर्च न के बराबर हो गया। आइसीएआर अटारी के निदेशक डॉ. अतर सिंह के मुताबिक कृषि अवशेष मिट्टी के लिए फायदेमंद होते हैं। इन्हें जलाने पर पोषक तत्व जल जाते हैं।


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