नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए आंख का काम करेगी आइआइटी में बनी देश की पहली छड़ी, कीमत भी कम
आइआइटी के छात्रों ने नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए खास तरह की पावरफुल सेंसर वाली सेंस थ्री स्टिक बनाई है।
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। नेत्र दिव्यांग अब बेधड़क होकर चल सकेंगे, आइआइटी कानपुर के छात्रों ने पावरफुल सेंसर युक्त ऐसी स्टिक बनाई है, जो उनके लिए आंख का काम करेगी। यह छड़ी न केवल राह में आने वाली बाधाओं की जानकारी देगी बल्कि किस राह में रुकावट नहीं है, यह भी बताएगी।
देश की पहली खास छड़ी
यह देश की पहली छड़ी है, जो छह मीटर पहले से ही नेत्र दिव्यांगों को सचेत करने लगेगी। वह रुकावट या बाधा के जितना पास होते जाएंगे, स्टिक में बीप और कंपन उतना ही तेज होता जाएगा। छड़ी घुमाने से यह भी पता चल जाएगा कि किधर रुकावट है, किधर नहीं। इस छड़ी को तैयार करने में दो साल लगे हैं। सेंस थ्री स्टिक बनाने के लिए ऐसे एलगोरिदम का प्रयोग किया गया है, जो आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस युक्त पावरफुल सेंसर से मिले संकेत के आधार पर गणना करता है। सेंसर इस गणना के आधार पर ही कंपन और बीप के जरिए चेतावनी देता है।
इस तरह करेगी काम
आइआइटी कानपुर के प्रो. जे रामकुमार व अमनदीप सिंह के निर्देशन में डिजाइन प्रोग्राम के छात्र अनुभव मिश्र और अभिषेक वर्मा ने यह स्टिक तैयार की है। प्रो. जे रामकुमार ने बताया कि स्टिक की खासियत इसका पावरफुल और अल्ट्रासोनिक सेंसर है, जो बाधा आने पर कंपन करने लगता है। अभी केवल ऐसी ही स्टिक हैं, जो एक-दो मीटर की दूरी तक ही काम करती हैं। छात्रों की बनाई स्टिक पूरे कमरे को कवर करने में सक्षम है। इसमें चार्जेबल बैटरी लगाई गई है, जो चार्ज होने पर पांच घंटे चलती है। स्टिक का सिस्टम कंट्रोल करने वाला हार्डवेयर और अल्ट्रासोनिक सेंसर, दोनों आइआइटी कानपुर में ही बनाए गए हैं। इनका पेटेंट करा लिया गया है।
150 नेत्र दिव्यांगों पर परीक्षण
सेंस थ्री स्टिक का नेत्र दिव्यांगों पर सफल परीक्षण किया गया है। दिव्यांग स्कूलों के विद्यार्थियों को जब यह स्टिक दी गई तो उन्हें चलने में बहुत सहूलियत महसूस हुई। वह स्टिक की सहायता से कमरे के अंदर आसानी से चले। अभ्यास के बाद सड़क पर चलने में भी स्टिक बेहद मददगार साबित हुई है। इसकी कीमत सामान्य दिव्यांग स्टिक की तुलना में करीब एक हजार रुपये अधिक आएगी।