फिर दौड़ने लगेंगे घुटने, आइआइटी में खोजे गए मालीक्यूल का चूहे और बकरियों पर ट्रायल सफल
गठिया के इलाज के लिए आइआइटी ने मालीक्यूल खोजने के बाद जीएसवीएम मेडिकल कालेज के साथ कार्टिलेज के टिश्यू पर ट्रायल के लिए हाथ मिलाया है। पहले चरण में तीन साल तक चूहे और बकरियों पर लैब ट्रायल सफल रहा है।
कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। बस कुछ समय का इंतजार और है, उसके बाद लाइलाज गठिया के इलाज की खुशखबरी सामने आ सकती है। तब बढ़ती उम्र के साथ घुटने के दर्द की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। आइआइटी कानपुर मेें शरीर में बनने वाले हानिकारक केमिकल से घुटने के कार्टिलेज के टिश्यू एवं संरचना को नुकसान से बचाने के लिए गोपनीय मालीक्यूल ढूंढ़ निकाले गए हैं। इसी तरह मधुमेह की दवा मेटफारमिन का सेवन भी कार्टिलेज पर दुष्प्रभाव डालती है। अब आइआइटी ने मालीक्यूल को कार्टिलेज के टिश्यू पर ट्रायल करने के लिए जीएसवीएम मेडिकल कालेज से हाथ मिलाया है।
आइआइटी के बायोलाजिकल साइंस एवं बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. धीरेंद्र एस कट्टी के मार्गदर्शन में उनके रिसर्च स्कालर डा. अर्जित भट्टाचार्य ने कुछ मालीक्यूल तैयार किए हैं, जो आस्टियो आर्थराइटिस यानी कार्टिलेज की समस्या में कारगर साबित हो सकते हैं। उन्होंने पहले चरण वर्ष 2019 से बकरी और चूहों के जोड़ों के कार्टिलेज पर मालीक्यूल के प्रभाव पर अध्ययन किया। तीन साल के लैब ट्रायल के परिणाम बेहतर आने से विशेषज्ञ उत्साहित हैं। अब आइआइटी के विशेषज्ञों ने मेडिकल कालेज के आर्थोपेडिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. प्रग्नेश वाष्र्णेय के साथ गठिया के इलाज के लिए मालीक्यूल का ट्रायल शुरू किया है। इस शोध को मेडिकल कालेज की एथिक्स कमेटी से मंजूरी मिल गई है।
कार्टिलेज क्षतिग्रस्त होने की यह है वजह
शरीर में बनने वाले हानिकारक केमिकल इटोकाइन, फ्री रेडिकल और मेटालो-प्रोटीनेस एंजाइम्स कार्टिलेज की संरचना के लिए हानिकारक होते हैं। इनकी अधिकता से कार्टिलेज को क्षति पहुंचाने लगती है, जिससे जोड़ों की समस्या होती है। मधुमेह पीडि़तों का ब्लड शुगर कम करने के लिए चलाई जाने वाली मेटफारमिन दवा भी नुकसान पहुंचाती है।
ऐसे किया जा रहा है शोध
सर्जरी के उपरांत निकलने वाले मानव घुटने के कार्टिलेज के टिश्यू मेडिकल कालेज से आइआइटी के विशेषज्ञों को मुहैया कराए जा रहे हैं। आइआइटी में विशेषज्ञ इस टिश्यू को प्रयोगशाला में टिश्यू कल्चर विधि से लैब में विकसित करेंगे। उसके बाद तैयार किए गए गोपनीय मालिक्यूल का उस पर परीक्षण करेंगे कि यह किस हद तक केमिकल के प्रभाव को कम करता है, घुटने के कार्टिलेज को रीजनरेट करने में कितना सहायक है।
-अभी तक लैब टेस्टिंग के रिजल्ट बहुत ही अच्छे मिले हैं। मेडिकल कालेज से कार्टिलेज के टिश्यू मुहैया होने के साथ उस पर भी काम शुरू हो गया है। तीसरे चरण में गठिया से पीडि़त मरीजों पर सीधे परीक्षण किया जाएगा। -डा. अर्जित भट्टाचार्य, रिसर्च स्कालर, आइआइटी कानपुर।
-अब तक 10 केस पर ट्रायल हो चुका है। यह रिसर्च प्रोजेक्ट पांच साल तक चलेगा। इस प्रोजेक्ट में वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कालेज एवं आस्ट्रेलिया के विशेषज्ञ भी सहयोग कर रहे हैं। -डा. प्रगनेश वाष्र्णेय, असिस्टेंट प्रोफेसर, आर्थोपेडिक विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।