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World Bicycle Day विशेष : आइआइटी कानपुर प्रतिदिन बचाता है आठ सौ लीटर पेट्रोल

छात्रों व प्रोफेसर समेत संस्थान से जुड़े आठ हजार लोग प्रतिदिन कैंपस में साइकिल से सफर करते हैं।

By AbhishekEdited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 01:58 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2019 01:58 PM (IST)
World Bicycle Day विशेष : आइआइटी कानपुर प्रतिदिन बचाता है आठ सौ लीटर पेट्रोल
World Bicycle Day विशेष : आइआइटी कानपुर प्रतिदिन बचाता है आठ सौ लीटर पेट्रोल

कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। दुनिया को उम्दा तकनीक देने वाला आइआइटी कानपुर पर्यावरण को लेकर भी सचेत है और प्रोफेसर व छात्र समेत संस्थान से जुड़े आठ हजार लोग कार व बाइक की बजाय कैंपस में साइकिल से चलते हैं। क्लास में जाने से लेकर कैंटीन और प्ले ग्राउंड तक की दूरी साइकिल से तय करते हैं। ऐसे में एक छात्र व प्रोफेसर प्रतिदिन औसतन पांच किलोमीटर साइकिल चलाते हैं। इस तरह रोजाना ये सभी 40 हजार किमी की दूरी साइकिल से तय कर करीब आठ सौ लीटर पेट्रोल की बचत कर रहे हैं। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के साथ आइआइटी करीब 56000 रुपये का ईंधन रोजाना बचा रहा है। आइआइटी में प्रवेश लेने वाले छात्र छात्राओं को यह निर्देश हैं कि वह कैंपस में साइकिल का ही इस्तेमाल करेंगे।

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साइकिल क्लब से जुड़े छात्र व प्रोफेसर

11 नवंबर 2009 को 'बम्पी टे्रल साइकिलिस्ट' क्लब बनाया गया। इस क्लब से छात्र व प्रोफेसर दोनों जुड़े हैं। 50 वर्षीय प्रो. जयदीप दत्ता परिसर के अलावा कानपुर की सड़कों पर भी साइकिल से सफर करते हैं। प्रो. डीपी मिश्रा, प्रो. के मुरलीधर, प्रो. टीवी प्रभाकर, प्रो. संजय मित्तल, प्रो. नलिनी नीलकंठन, प्रो. पी. सुन्मुगराज समेत कई प्रोफेसर व कर्मचारी कैंपस में कहीं भी आने-जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। डीन ऑफ रिसोर्सेज एंड एल्युमिनाई प्रो. बीवी फणि बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के चलते पक्षियों की चहचहाट व हरियाली मन मोह लेती है।

हालैंड में प्रत्येक घर में दो से तीन साइकिलें होतीं

प्रो. जयदीप दत्ता बताते हैं कि हमारे देश में साइकिल चलाने में लोग हिचकते हैं, जबकि हालैंड में यह घर-घर की सवारी है। वहां प्रत्येक घर में दो से तीन साइकिलें मिल जाएंगी। कम दूरी तय करने में लोग साइकिल का इस्तेमाल करते हैं।

पेट्रोल जलने से पर्यावरण व मनुष्य दोनों को खतरा

पर्यावरणविद् व आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी बताते हैं कि पेट्रोल जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रो कार्बन व पार्टिकुलेट मैटर निकलते हैं। जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं। इसके अलावा सर्दी के मौसम में एयरोसोल बनने का भी यह बड़ा कारण होता है। जो सांस के द्वारा हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। पार्टिकुलेट मैटर का मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर व उससे कम होना चाहिए। आइआइटी में इससे कम मात्रा पाई गई है, जबकि कानपुर में इसकी मात्रा कहीं अधिक है।

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