आइआइटी बना रहा नष्ट होने वाली पॉलीथिन
मैटेरियल साइंस एंड इंजीनिय¨रग विभाग ने हर्बल तरह से तैयार किया पॉलीमर, मजबूती के लिए किया जा रहा शोध
जागरण संवाददाता, कानपुर : धरती पर बढ़ रहे पॉलीथिन के खतरे को रोकने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। आइआइटी कानपुर ने ऐसा पॉलीमर खोजा है, जिससे अपने आप नष्ट होने वाली पॉलीथिन बनाई जा सकती है। यह पॉलीमर पेड़ों की छाल, गोबर, गोंद, पत्तियों और पेड़ों के दूध से तैयार हुआ है। मैटेरियल साइंस एंड इंजीनिय¨रग विभाग की लैब में पॉलीमर से कृत्रिम पॉलीथिन विकसित की गई है। अभी इसमें सामान्य पॉलीथिन जैसी मजबूती नहीं है लेकिन जल्द ही उसमें कुछ तत्व मिलाकर प्राकृतिक पॉलीथिन बनाने की तैयारी चल रही है। प्रो. विवेक वर्मा की देखरेख में छात्र इस पर काम कर रहे हैं।
180 दिनों में बन जाएगी खाद
सामान्य पॉलीथिन मिट्टी और पानी के संपर्क में आने के बाद भी नष्ट नहीं होती है। जिसके चलते मृदा और जल प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। अगर उसे जलाकर नष्ट किया जाता है तो वायु प्रदूषण की आशंका रहती है। प्राकृतिक पॉलीथिन 180 दिनों में अपने आप नष्ट होकर खाद का रूप ले लेगी। विशेषज्ञों के मुताबिक बारिश के दिनों में यह काफी तेजी से नष्ट होगी।
यूरोपीय देश भी बना रहे नष्ट होने वाली पॉलीथिन
आइआइटी विशेषज्ञों की मानें तो यूरोपीय देश भी नष्ट होने वाली पॉलीथिन पर काम कर रहे हैं। वहां पर पानी, जूस और शराब खास तरह के पैक में आने लगी हैं, जो कुछ दिनों बाद नष्ट हो जाता है। हालांकि इसका दाम काफी महंगा रहता है।
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मैटेरियल साइंस एंड इंजीनिय¨रग विभाग की ओर से अपने आप नष्ट होने वाली पॉलीथिन तैयार की जा रही है। कई शोध चल रहे हैं। यह खोज पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काफी लाभकारी साबित होगी।
-प्रो. अभय करंदीकर, निदेशक आइआइटी कानपुर