जिंदगी के अंधेरे को चीर खींच दी लंबी लकीर
पांच साल की उम्र में आंखों की रोशनी जाने के बाद अर्जुन अवॉर्डी अंकुर धामा ने इच्छाशक्ति को ताकत बना लिया।
जागरण संवाददाता, कानपुर : पांच साल की उम्र में आंखों की रोशनी जाने के बाद अर्जुन अवॉर्डी अंकुर धामा ने इच्छाशक्ति को ताकत बना लिया। चुनौतियों को मात देकर उस लक्ष्य को भेदा जिसकी कल्पना में सामान्य व्यक्ति अपनी उम्र गुजार देते हैं। एक साल इलाज कराने के बाद जब लाभ नहीं हुआ तो छह वर्ष की उम्र में स्पेशल स्कूल में पढ़ाई शुरू की, फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उन्होंने स्कूल से लेकर दिल्ली के टॉप कालेज में शुमार सेंट स्टीफन्स कॉलेज से हिस्ट्री ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की।
आइआइटी में रविवार को मनाए गए अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने पहुंचे अंकुर धामा ने बताया कि खुद को साबित करने के लिए उन्होंने पढ़ाई के साथ खेलकूद में दौड़ को अपना साथी बनाया। गाइड के दिशा निर्देश पर प्रतिदिन छह से आठ घंटे अभ्यास करने लगे। नतीजतन, 2014 एशियन गेम्स में एक रजत व दो कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। वर्ष 2016 में हुए रियो पैरालंपिक में वह भारत के पहले नेत्र दिव्यांग एथलीट बने। इन उपलब्धियों ने उन्हें अर्जुन अवार्डी बनाया।
पढ़ाई के बिना कुछ भी संभव नहीं
अंकुर ने बताया कि बिना पढ़ाई के कुछ भी संभव नहीं है। अपनी कमी को ताकत बनाकर पहले डिग्री प्राप्त करें। इसके साथ खेलकूद व संगीत या फिर जिसमें रुचि हो, उसमें प्रशिक्षण लेते हुए आगे बढ़ें। निश्चित ही कामयाबी कदम चूमेगी। शिक्षा व खेल दोनों में आगे रहने के कारण स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने उन्हें हाल ही में असिस्टेंट कोच बनाया है।
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ट्रेनिंग के बाद 14 हजार दिव्यांगों को मिली नौकरी
आइआइटी में दिव्यांगों को रोजगार से जोड़ने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बताया गया। सार्थक एजुकेशनल ट्रस्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर मो. असद ने बताया कि उनकी टीम 14 हजार दिव्यांगों को नौकरी दिलवा चुकी है। नेत्र, आर्थोपेडिक व श्रव्य दिव्यांगों को तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद आइटी, रिटेल व हॉस्पिटैलिटी में रोजगार दिलाया जाता है। उनकी ट्रेनिंग मुख्य रूप से कंप्यूटर, अंग्रेजी व सॉफ्ट स्किल तीन प्रकार की होती है। इस मौके पर उप निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल के अलावा ज्योति मूक बधिर विद्यालय के छात्र-छात्राएं व शिक्षक मौजूद रहे।
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वैज्ञानिक बनकर देश को नई तकनीक देने की ख्वाहिश
मेधावी यश श्रीवास्तव वैज्ञानिक बनकर देश को नई तकनीक देने की ख्वाहिश रखते हैं। सेरेब्रल पाल्सी के कारण आइआइटी के इस छात्र को फिजिकल एक्टिविटी करने में कुछ समस्या जरूर होती है लेकिन उन्हें इसके स्क्राइब यानि लिखने वाला दिया गया है। बीटेक प्रथम वर्ष में उन्होंने 7.6 सीपीआइ अंक प्राप्त किए हैं। 12वीं में 96 फीसद व 10वीं में 94 फीसद अंक मिले। उन्होंने हौसलों की उड़ान से आइआइटी तक का सफर तय किया है।