अगर बच्चे को मोबाइल दे रहे हैं तो हो जाएं सावधान, नहीं तो कम उम्र में लगवाना पड़ेगा चश्मा
जंक व फास्ट फूड भी बच्चों की आंखों के लिए घातक एलएलआर ओपीडी में रोज आ रहे आंखों की समस्या लेकर।
कानपुर, जेएनएन। अगर अपने बच्चे को बहलाने के लिए मोबाइल फोन देते हैं तो सतर्क हो जाएं। मोबाइल फोन का बेजा इस्तेमाल उनकी आंखों पर असर डाल रहा है। अधिक जंक फूड खिलाना भी उनकी आंखों की सेहत के लिए घातक है। समय रहते नहीं चेते तो कम उम्र में चश्मा पहनने की नौबत आ जाएगी। इस समय एलएलआर अस्पताल (हैलट) की ओपीडी में रोजाना अभिभावक बच्चों में आंखों की समस्या लेकर आ रहे हैं।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग के प्रो. एके आर्या का कहना है कि पहले की तुलना में बच्चों में आंखों की समस्या तेजी से बढ़ी है। इसलिए हाई स्कूल या इंटरमीडिएट तक पहुंचते-पहुंचते बच्चे को चश्मा लगाना पड़ जाता है। ओपीडी में रोज 6-7 बच्चों के माता-पिता आंखों की समस्या लेकर आते हैं। इनमें अधिकतर दंपती कामकाजी हैं। बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल एवं टीवी या वीडियो गेम मुहैया करा देते हैं। उनकी हर डिमांड पूरी करने लगते हैं।
लगातार मोबाइल या वीडियो गेम खेलना या टीवी देखने की छूट आंखों को प्रभावित कर रही है। जंक एवं फास्ट फूड पर निर्भरता बढ़ रही है। उनकी हरी सब्जी, मौसमी फलों से दूरी बढ़ रही है। नतीजतन विटामिन ए एवं विटामिन ई की कमी से आंख की रोशनी कम हो रही है।
चिकित्सक की राय
बच्चों की आंखों का विकास पांच साल की उम्र तक होता है। इसलिए उन्हें मोबाइल कतई खेलने के लिए न दें। लगातार मोबाइल या टीवी देखने से आंखों की सेल डैमेज होती है। पांच साल से अधिक उम्र के बच्चे को 24 घंटे में सिर्फ एक घंटा मोबाइल या टीवी देखने की अनुमति दें। उन्हें बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें। यही वजह से 13-14 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते चश्मा लगाने की नौबत आ जाती है।
-प्रो. परवेज खान, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
यह होती समस्या
आंख लाल होना, नीली रोशनी से आंख में घाव, आंखों में थकान, आंखों की मसल्स में कमजोरी, चिड़चिड़ापन।
ऐसे संभव है बचाव
- आंखों की नियमित जांच कराएं।
- स्कूलों में बच्चों का हेल्थ रिपोर्ट कार्ड बनाया जाए।
- स्कूलों में बच्चों की आंख, नाक एवं दांत की जांच जरूर कराएं।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप