दांव पर सैकड़ों करोड़ के ऑर्डर और साख
जागरण संवाददाता कानपुर नौ महीने बाद किसी तरह टेनरियां खोली गई उद्यमियों ने नए सिरे से
जागरण संवाददाता, कानपुर : नौ महीने बाद किसी तरह टेनरियां खोली गई, उद्यमियों ने नए सिरे से हाथ-पैर मारे। नाराज ग्राहकों को, आयातकों को मनाया। कसमें खाई कि अब सही वक्त पर ऑर्डर पूरा करेंगे, टेनरियां अब चलती रहेंगी। इस तरह सैकड़ों करोड़ के ऑर्डर जुटाए। मशीनें दुरुस्त करने में पचासों करोड़ रुपये खर्च कर डाले। मगर एक महीने बाद ही जलनिगम की गलती से टेनरियां फिर बंद कर दी गई। इस एक फैसले से हर माह 400 करोड़ के फिनिश लेदर की सप्लाई करने वाली टेनरियों के सैकड़ों करोड़ रुपये के ऑर्डर दांव पर लगे हैं, वहीं हजारों करोड़ की वह साख भी दांव पर है। जो बरसों की मशक्कत के बाद कानपुर के चर्म उद्योग ने देश-विदेश में बनाई है। आठ हजार करोड़ निर्यात करने वाले चमड़ा उद्योग को जिंदा रखने के लिए सरकारी संस्थान कतई गंभीर नहीं हैं। अफसरों के पास कोई ठोस जवाब नहीं है कि आखिर वे इन्हें कब तक चालू करवा पाएंगे। इससे चर्म उद्योग में सन्नाटा है। कुल मिलाकर नवंबर 2018 में कुंभ के चलते टेनरियां बंद होने के बाद से संकट खत्म नहीं हो पा रहा है।
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लगता है सरकार ही टेनरियों को चलने नहीं देना चाहती। वर्ना जलनिगम अफसर इतनी हिम्मत कहां से लाते? सरकार सचमुच ऐसा चाहती है तो बता दे। हम कारोबार समेट कर कुछ और सोचें।
मोहम्मद हसन, उपाध्यक्ष, लेदर इंडस्ट्रीज वेलफेयर एसोसिएशन
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चमड़ा उद्योग की साख ही खत्म कर दी गई है। जिनसे तमाम गुजारिश करके आर्डर लिए अब उन्हें क्या जवाब दें? सरकार चाहे तो सारी समस्या मिनटों में खत्म हो जाएगी लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा है।
- नैयर जमाल, टेनरी संचालक
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सवाल केवल सैकड़ों करोड़ रुपये के ऑर्डर की आपूर्ति नहीं हो पाने का नहीं है। विश्व बाजार में हम जो साख गंवा रहे हैं, उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे आगे जा रहे हैं।
जफर फिरोज, आयात-निर्यात विशेषज्ञ
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अब मोदी के दरबार में लगाएंगे गुहार
लेदर इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव असद के. ईराकी कहते हैं कि नवंबर 2018 से अब तक चमड़ा उद्योग ने जो खो दिया है उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। इसलिए हम सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि उनका विजन बहुत स्पष्ट है। उम्मीद है कि इसी महीने संपर्क हो जाएगा यदि वहां से सहयोग मिलेगा, तभी चमड़ा उद्योग आगे चल पाएगा। वर्ना भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा है।
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