अगर आप हिंदी प्रेमी हैं तो यहां जरूर जाना चाहेंगे
शहर में इन पुस्तक प्रेमियों के संग्रहालय में पाठक को नहीं मिलेगी मायूसी, हिंदी के साहित्यकारों के लेख और पुस्तकों का अनूठा संग्रह है । पुस्तकालय अब साहित्य संग्रहालय है।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। हिंदी हमारी मातृ भाषा है और हर कोई अपनी मां की तरह इससे प्रेम करता है। हिंदी पर बात शुरू होते ही साहित्यकारों और प्रमुख पुस्तकों का नाम चर्चा में आना लाजमी है। ऐसे में कोई विशेष पुस्तक पढऩे की इच्छा जागती है तो अक्सर हिंदी प्रेमी को मायूसी हाथ लगती है क्योंकि उसे वह पुस्तक न तो दुकान में मिल पाती है और न ही परिचित के पास। इसपर अब परेशान होने की जरूरत नहीं है, शहर में ऐसे भी पुस्तक प्रेमी हैं जिनके पुस्कालय का संग्रह आपको शायद मायूस न होने दे।
साहित्य का कितना संजोया है
शहर के अरुण प्रकाश अग्निहोत्री और श्याम सुंदर निगम साहित्य के खजाने को संजो रहे हैं। संकलन को तैयार करने के लिए श्याम सुंदर दिन भर काम करते हैं और ढाई साल में लगभग एक लाख किताबें खंगाल चुके हैं। इसी तरह अरुण प्रकाश ने बत्तीस हजार साहित्यिक पुस्तकें, सात हजार साहित्य पत्रिकाएं, दो सौ बारह साहित्यकारों के दुर्लभ चित्र, मुंशी प्रेमचंद और हरिवंश राय बच्चन जैसे 118 लेखकों की संपूर्ण रचनावली, चार हजार इतिहास की किताबें, दुनिया भर के खास फाउंटेन पेन का संकलन अपने पुस्तकालय में संजोया है।
जो कहीं नहीं मिलेगा, यहां मिलना संभव है
आजाद नगर नवाबगंज निवासी अरुण प्रकाश अग्निहोत्री को लोग इसलिए भी खास तौर पर जानते हैं कि जो कृति कहीं नहीं मिलेगी, उनके पास मिलना संभव है। साहित्य और साहित्यकारों के चित्र सहेजने का जुनून अब उनके सरयू नारायण बाल विद्यालय इंटर कॉलेज का पुस्तकालय अब साहित्य संग्रहालय की शक्ल ले चुका है। अब वह सभी पुस्तकों की कोडिंग और कम्प्यूटर फीडिंग करा रहे हैं। व्यवस्थित पुस्तकालय बनाकर इसे जनता के लिए खोल देंगे। उनका मानना है कि साहित्य और इतिहास पर शोध करने वालों के लिए यह प्रदेश स्तर की लाइब्रेरी होगी, जहां 99 फीसद किताबें हिंदी में हैं।
दादाजी के बुक सेल्फ की सभी किताबें पढ़ डालीं
साहित्य से एमए अरुण बताते हैं कि दादाजी सरयू नारायण अग्निहोत्री पढऩे के शौकीन थे। घर में किताबें लाते रहते थे। देख-देखकर उन्हें भी पुस्तकें पढऩे में दिलचस्पी हो गई। आठवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने दादाजी के बुक सेल्फ की सभी किताबें पढ़ डालीं। फिर हाईस्कूल में आए तो किताबों का संग्रह भी शुरू कर दिया। स्नातक होते-होते उन्होंने देश के प्रसिद्ध साहित्यकारों की लगभग चार हजार किताबें संग्रहित कर लीं। बारह साहित्यकारों की संपूर्ण रचनावली भी खरीद लाए। देश भर में घूमकर उन्होंने साहित्यकारों के घर जाकर उनके चित्र भी जुटाने शुरू कर दिए।
...ताकि गुमनाम न रहे कोई हिंदी सेवी
हिंदी के प्रति प्रेम का यह भी एक अनूठा उदाहरण है। एक साहित्यकार की उपेक्षा से उठी टीस प्रेरणा बनी और रतनलाल नगर के श्याम सुंदर निगम दुनिया भर के ङ्क्षहदी सृजनकर्ताओं के जीवन परिचय सहेजने में जुट गए ताकि कोई साहित्यकार गुमनाम न रह जाए। भारतीय रिजर्व बैंक से सेवानिवृत्त 72 वर्षीय श्यामसुंदर आपको कहीं किसी भी पुस्तकालय में पुस्तकें पलटते मिल जाएंगे। वह ऐसा कोष तैयार कर रहे हैं, जिसमें दुनिया के हर उस साहित्यसेवी के जीवन संबंधी संक्षिप्त जानकारी हो, जिसने कम से कम कोई एक किताब लिखी हो।
श्यामसुंदर कहते हैं कि मेरा पैमाना यह नहीं कि अच्छा लिखा या बुरा, नाम बड़ा है या छोटा। शर्त एक ही है कि शख्स ने सृजन किया हो। उन्होंने बताया कि देश के ख्यातिनाम रचनाकार क्षेमचंद सुमन ने करीब चौदह सौ दिवंगत साहित्यकारों के जीवन परिचय की पुस्तक प्रकाशित की थी। उसकी प्रस्तावना में जिक्र था कि एक बार एक वरिष्ठ कविवर की शोकसभा में किसी वक्ता ने कह दिया था कि फलां व्यक्ति कविता भी लिखते थे।
इसका मतलब लोग इतने बड़ी शख्सियत से भी अनभिज्ञ थे। ये वाकया करीब चार वर्ष पहले का है। वहीं से प्रेरणा मिली कि एक ऐसा संकलन तैयार किया जाए, जिसमें यथासंभव सभी साहित्य सेवियों से संबंधित जानकारी हो।बताया कि ढाई साल में लगभग एक लाख किताबें वह खंगाल चुके हैं। उम्मीद है कि यह संकलन कम से कम एक लाख साहित्यकारों के जीवन परिचय से परिपूर्ण होगा, जिसमें नौ-दस संस्करण होंगे।