उसी का जीवन सफल होता है, जो दूसरों की भलाई में रहता है लीन
कानपुर भलाई की ताकत समस्त सृष्टि में व्याप्त है। वास्तव में यही वह तत्व है जो वसुधा को संतुलि
कानपुर : भलाई की ताकत समस्त सृष्टि में व्याप्त है। वास्तव में यही वह तत्व है जो वसुधा को संतुलित करता है। फूल अपनी सुगंध बिखेरते हैं, पौधे स्वयं तपकर छाया प्रदान करते हैं। सूर्य स्वयं जलकर हमें जीवन प्रदान करता हैं। इसी तरह मनुष्य भी अपनी उदारता से सर्वश्रेष्ठ प्राणी के पद को प्राप्त करता है। वस्तुत: परोपकार ही सच्चा मानव धर्म है। अपने लिए तो पशु भी जीते हैं किन्तु श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो दूसरों की भलाई करते हुए अपना जीवन जिए। मेरे विचार से जो व्यक्ति दूसरों की भलाई करता है, उसका हृदय पवित्र हो जाता है। उसे एक ऐसी अलौकिक शक्ति की अनुभूति होती है, जो मन की सारी पीड़ा को हर लेती है। आत्मा को विचित्र आनंद व संतोष का अनुभव भी होता है। जो व्यक्ति दूसरों का भला करता है, उसके हृदय में विश्व-प्रेम की भावना का उदय होता है। विज्ञान और तकनीकी की उन्नति के साथ-साथ मौजूदा समय में मनुष्य भोग और स्वार्थ का दास बनता जा रहा है। मनुष्यता पर आज जैसा नैतिक संकट आया है वैसा पहले कभी नहीं था। वर्तमान समय में परोपकार की भावना संसार के अस्तित्व को बनाए रखने में अति आवश्यक हो गई है। लोकमंगल की पवित्र भावना ही मानव हृदय की दूरी को मिटा सकती है। स्वार्थ के गहन अंधकार में दूसरों की भलाई और परोपकार ही एकमात्र प्रकाश पुंज है। यही विश्व कल्याण का आधार भी है, और यही हमारी सनातन संस्कृति भी है। इसे हम सबको अपनाना चाहिए।
- शिखा बनर्जी, प्रधानाचार्य, सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल कैंट