जंगली घास की खेती भी देगी खूब मुनाफा, अब इससे चलेंगे वाहन Kanpur news
ब्राजील और कनाडा की तरह भारत में भी वाहन चलाने के लिए सौ फीसद एथेनॉल का इस्तेमाल होगा जो जंगली घास (कांस) से सस्ते में तैयार होगा।
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। अभी तक खेतों में जंगली घास किसानों के लिए परेशानी का सबब बनती थी लेकिन बहुत जल्द यही घास उन्हें मुनाफा देगी। इतना ही नहीं खेत के खाली समय में घास की खेती करके लाखों रुपये की कमाई भी कर सकेंगे। क्योंकि अब यही घास वाहनों के लिए ईंधन बनाने में काम आने वाली है। इस दिशा में हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एचबीटीयू), कानपुर के बायो केमिकल इंजीनियरिंग विïभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललित कुमार सिंह ने बड़ी सफलता हासिल की है।
भारत में भी वाहनों में सौ फीसद एथेनॉल का इस्तेमाल जल्द
ब्राजील और कनाडा की तरह भारत में भी जल्द ही वाहन चलाने के लिए सौ फीसद एथेनॉल का इस्तेमाल होगा। एचबीटीयू के डॉ. ललित कुमार सिंह ने जंगली घास (कांस) से सस्ता एथेनॉल बनाने में सफलता प्राप्त की है। डॉ. सिंह ने तीन चरणों में कांस घास से एथेनॉल बनाने की प्रक्रिया विकसित की है। उनके शोध पत्र को अमेरिका के बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी और बायो केमिकल इंजीनियङ्क्षरग जर्नल ने प्रकाशित किया है। इस तकनीक पर लिखी उनकी पुस्तक को अमेरिकी प्रकाशक जॉन बिले एंड संस पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। डॉ. सिंह ने तकनीक का पेटेंट भी फाइल कर दिया है।
एक किलो घास से 300 मिली एथेनॉल
डॉ. सिंह के मुताबिक दुनिया भर में इस दिशा में शोध चल रहा है और अमेरिका, जापान और जर्मनी जैसे देश ही तीन चरण में कांस घास से एथेनॉल निकाल पा रहे हैं। एथेनॉल की मांग बढऩे पर अधिक उत्पादन होगा और तब इसकी लागत और कम आएगी। अभी सीमित मात्रा में उत्पादन के कारण यह शीरे से बनाए जाने वाले एथेनॉल से थोड़ा महंगा पड़ रहा है। कांस घास में 40 फीसद सेलूलोज, 24 फीसद हेमी सेलूलोज और बाकी लिगनिन तत्व होते हैं। इसी से ग्लूकोज और जायलोज बनता है। जाइमो मोनाज मुबलिस नामक बैक्टीरिया की ग्लूकोज से और जायलोज की क्रिया पीशिया स्टीपिटिस ईस्ट नामक बैक्टीरिया से कराने पर इथेनॉल बन जाता है। एक किलो कांस घास से 300 मिली एथेनॉल प्राप्त किया जा सकता है।
एथेनॉल से कम होगा प्रदूषण
पेट्रोल से निकलने वाले धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड होता है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है। लेकिन एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने पर यह हानिकारक तत्व कम निकलेंगे। फिलहाल पेट्रोल में दस फीसद एथेनॉल मिलाया जा रहा है। कांस घास से उत्पादन होने पर इसकी मात्रा बढ़ाई जा सकेगी। कांस घास के लिए लागत शून्य होगी। यह हमारे देश में खेतों में खुद ही उग जाती है, इससे किसानों को भी लाभ हो सकता है।
भारत सरकार दे रही एथेनॉल पर जोर
भारत सरकार घरेलू बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एथेनॉल पर जोर दे रही है। इसके आयात पर निर्भरता को कम किया जाना है। गन्ना सहित अन्य कृषि उपजों से निकलने वाले पदार्थों से इस जरूरत को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 2022 तक पेट्रोल में 10 प्रतिशत तक एथेनॉल मिलाने और 2030 तक इसे 20 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है। इस तरह जैव-ईंधन के अधिकाधिक इस्तेमाल से वर्ष 2022 तक पेट्रोलियम आयात बिल में 10 प्रतिशत कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है।