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    सिर्फ मेल नहीं, व्यापारी को रजिस्टर्ड डाक से भी नोटिस भेजें जीएसटी अफसर

    Updated: Tue, 02 Dec 2025 11:49 AM (IST)

    मद्रास हाई कोर्ट ने जीएसटी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे बकाया वसूली के लिए मेल के साथ रजिस्टर्ड डाक से भी नोटिस भेजें। इससे कारोबारियों को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। उत्तर प्रदेश में भी अधिकारी ई-मेल से नोटिस भेजकर खाते सीज कर रहे हैं। इस फैसले से कारोबारियों को राहत मिलने की उम्मीद है।

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    जागरण संवाददाता, कानपुर। मद्रास हाई कोर्ट ने चेन्नई की कंपनी टीवीएल एटी साबुथामस कांट्रेक्टर को मेल पर नोटिस देने के बाद जवाब नहीं मिलने पर अर्थदंड लगाने के मामले में अपील पर सुनवाई कर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।

    कोर्ट ने जीएसटी के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि बकाया वसूली के लिए सिर्फ मेल पर नोटिस भेजकर औपचारिकता पूरी करने की जगह कारोबारी के पास उसकी हार्डकापी भी भेजें। उन्हें बताएं उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इसके लिए रजिस्टर्ड डाक का प्रयोग हो। इससे कारोबारी बैंक खाता या दुकान सीज होने से पहले ही अपनी बात रख सकेंगे।

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    कुछ ऐसा उत्तर प्रदेश में भी हो रहा है जहां राज्य कर विभाग के अधिकारी जीएसटी के 20-20 वर्ष तक के पुराने बकाया को वसूलने के लिए ई-मेल भेज रहे हैं। नोटिस का जवाब न मिलने पर बैंक खाता, दुकानें तक सीज कर रहे हैं। टैक्स सलाहकारों के मुताबिक मद्रास हाई कोर्ट के इस निर्णय के आधार पर सभी कारोबारियों को राहत मिल सकती है।

    सामान्य तौर पर जीएसटी में पंजीयन कराने के दौरान ज्यादातर कारोबारी सीए या वकील की मेल आइडी लिखवा देते हैं। इस तरह कारोबारी से जुड़ी जो भी मेल विभाग से भेजी जाती है, वह सीए या वकील के पास ही आती है।

    तमाम क्लाइंट के मामलों में उलझे होने से वकील या सीए जिन कारोबारियों की मेल नहीं देख पाते, उन पर कार्रवाई हो जाती है। इसके अलावा बहुत से कारोबारी अपनी ही मेल होने के बाद भी कारोबार के दबाव में उन्हें नहीं देख पाते।

    पिछले एक वर्ष में राज्य कर विभाग के अधिकारी वैट और जीएसटी के काल के बकायों की वसूली कड़ाई से कर रही है। ज्यादातर मामलों में कारोबारियों का कहना था कि वे इन मामलों में की गई अपील में जीत चुके हैं। बाद में कारोबारियों की बात सही भी निकली। बस वे नोटिस का मेल पर जवाब नहीं दे पाए।

    मर्चेंट्स चैंबर की जीएसटी कमेटी के सलाहकार धर्मेन्द्र श्रीवास्तव के मुताबिक न्यायालय के निर्देश के आधार पर अगर विभागीय अधिकारी मेल भेजने के साथ ही अगर एक बार रजिस्टर्ड डाक से पत्र भी भेज दें तो यह तय हो जाएगा कि कारोबारी को सूचना पहुंच गई है।

    इससे बहुत से मामलों में न तो बैंक खाते सीज करने होंगे न ही दुकान। विभाग का उद्देश्य कारोबार को ईज आफ डूइंग के तहत बढ़ाने का होना चाहिए न कि सिर्फ ई-मेल भेजकर अपने हिस्से का काम पूरा कर देने का। ऐसे में अगर अधिकारियों ने वास्तव में कारोबारी तक सूचना पहुंचा दी तो वह खुद ही विभाग को उस नोटिस के बारे में जवाब दे देंगे। नोटिसों के सवालों, जवाबों का मामला खुद ही खत्म हो जाएगा।