गंगा मानीटरिंग टीम ने पूछा, गंगा में दूषित पानी गिर रहा तो फिर ट्रीटमेंट प्लांट से क्या फायदा
एनजीटी की ओर से गठित कमेटी ने निरीक्षण के बाद किया सवाल रूमा औद्योगिक क्षेत्र में सीईटीपी के निरीक्षण में मिली खामियां।
By AbhishekEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 11:55 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 10:23 AM (IST)
कानपुर, जागरण संवाददाता। गंगा में जब गंदा पानी गिर रहा है तो कॉमन इन्प्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) लगाने से क्या फायदा? यह सवाल एनजीटी की ओर से गठित गंगा मानीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष सेवानिवृत जज अरुण टंडन ने उठाया। गुरुवार को वे औद्योगिक क्षेत्र रूमा में प्लांट का निरीक्षण करने पहुंचे थे। इससे पहले उन्होंने टीम के साथ मंधना और भीमसेन पनकी में बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण को भी देखा। यहां खामियां मिलने पर नोटिस देने के निर्देश दिए।
महाराजपुर रूमा स्थित औद्योगिक क्षेत्र में गुरुवार दोपहर गंगा मानीटरिंग कमेटी निरीक्षण करने पहुंची। अध्यक्ष अरुण टंडन और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वैज्ञानिक अनीता राय ने सीईटीपी का बारीकी से निरीक्षण किया। इसका संचालन उद्यमी अपने खर्चे पर कर रहे हैं। इससे 13 टेक्सटाइल इकाइयां जुड़ी हैं। यहां ड्रेनेज सिस्टम की नालियों व रिएक्शन टैंक में गंदा पानी देख सेवानिवृत्त जज ने नाराजगी जताई। चार एजिटेटर में एक बंद मिला। कर्मचारियों ने बताया कि पंद्रह दिन पहले खराब हो गया था। टैंक में पानी की स्थिति देखकर टीम की सदस्य अनीता राय ने उद्यमियों से कहा कि कोई न कोई आर्गेनिक डाई का प्रयोग किया जा रहा है। टीम ने यहां बॉयोलॉजिकल प्लांट व आउटलेट भी देखा।
ऑनलाइन मानीटरिंग सिस्टम में बीओडी, सीओडी, टीएसएस, टीडीएस आदि पानी शोधन के लिए जरूरी सभी पैरामीटर्स की रीङ्क्षडग ली। यहां मल्टी ग्रेड फिल्टर और कार्बन फिल्टर के मीटर भी बंद मिले। कमेटी ने रिएक्शन टैंक, बायोलॉजिकल टैंक से पानी का नमूना लेकर जांच कराने के निर्देश दिए। इस दौरान यूपीएसआईडीसी (अब यूपीसीडा) के अधिशासी अभियंता संजय तिवारी, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी घनश्याम दास, विवेक गंगवार, रूमा इण्डस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष बद्री प्रसाद गुप्ता, प्रवीन सुराना, रोहित गुप्ता, विजय गुप्ता, कपिलदेव यादव आदि उद्यमी मौजूद रहे।
उद्यमियों को मिला धोखा
उद्यमियों ने आरोप लगाया कि सीईटीपी हैंडओवर करते समय यूपीएसआईडीसी (अब यूपीसीडा) ने ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 1.55 एमएलडी बताई थी, जबकि बाद में जांच कराई गई तो क्षमता आधी निकली। ऐसे में सीवरेज शोधन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। टीम ने लिखित शिकायत पर समस्या निवारण का आश्वासन दिया।
दोहरा दे रहे टैक्स फिर भी सुविधाओं से महरूम
उद्यमियों ने बताया कि हम लोग यूपीएसआईडीसी व नगर निगम दोनों को प्रतिमाह लाखों का टैक्स देते हैं, जबकि यूपीएसआईडीसी ने इसे नगर निगम को हैंडओवर ही नहीं किया है। सुविधाएं शून्य हैं सडकें टूटी हैं, नालियां चोक हैं और पानी की टंकी अभी तक शुरू नहीं हो सकी।
नहीं मिला रिकार्ड व लॉग बुक
मंधना में बिल्वर्ड कंपनी द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण प्लांट का संचालन किया जा रहा है। यहां कोई लेखा-जोखा नहीं मिला। लॉग बुक भी नहीं थी। इसी कड़ी में भीमसेन पनकी में एमपीसीसी कंपनी द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण प्लांट संचालित है। इसका धुआं हवा में जाने के बजाए प्लांट में फैल रहा था। इसको ठीक कराने को कहा।
140 टेनरियों ने ही दिया था अंशदान
वाजिदपुर में वर्ष 1994 में बने 36 एमएलडी सीईटीपी के संचालन के लिए 175 टेनरियों में 140 ने अंशदान दिया था। जल निगम के परियोजना प्रबंधक घनश्याम द्विवेदी ने बताया कि दो करोड़ मांगे थे, लेकिन सिर्फ 1.39 करोड़ रुपये ही मिले थे। वर्तमान में 404 टेनरियां हैं। इसकी रिपोर्ट टीम को दी जा रही है। साथ ही गंगा में बंद हो रहे नालों और ट्रीटमेंट प्लांट का लेखा-जोखा भेजा जा रहा है। मई माह में फिर टीम आएगी।
महाराजपुर रूमा स्थित औद्योगिक क्षेत्र में गुरुवार दोपहर गंगा मानीटरिंग कमेटी निरीक्षण करने पहुंची। अध्यक्ष अरुण टंडन और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वैज्ञानिक अनीता राय ने सीईटीपी का बारीकी से निरीक्षण किया। इसका संचालन उद्यमी अपने खर्चे पर कर रहे हैं। इससे 13 टेक्सटाइल इकाइयां जुड़ी हैं। यहां ड्रेनेज सिस्टम की नालियों व रिएक्शन टैंक में गंदा पानी देख सेवानिवृत्त जज ने नाराजगी जताई। चार एजिटेटर में एक बंद मिला। कर्मचारियों ने बताया कि पंद्रह दिन पहले खराब हो गया था। टैंक में पानी की स्थिति देखकर टीम की सदस्य अनीता राय ने उद्यमियों से कहा कि कोई न कोई आर्गेनिक डाई का प्रयोग किया जा रहा है। टीम ने यहां बॉयोलॉजिकल प्लांट व आउटलेट भी देखा।
ऑनलाइन मानीटरिंग सिस्टम में बीओडी, सीओडी, टीएसएस, टीडीएस आदि पानी शोधन के लिए जरूरी सभी पैरामीटर्स की रीङ्क्षडग ली। यहां मल्टी ग्रेड फिल्टर और कार्बन फिल्टर के मीटर भी बंद मिले। कमेटी ने रिएक्शन टैंक, बायोलॉजिकल टैंक से पानी का नमूना लेकर जांच कराने के निर्देश दिए। इस दौरान यूपीएसआईडीसी (अब यूपीसीडा) के अधिशासी अभियंता संजय तिवारी, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी घनश्याम दास, विवेक गंगवार, रूमा इण्डस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष बद्री प्रसाद गुप्ता, प्रवीन सुराना, रोहित गुप्ता, विजय गुप्ता, कपिलदेव यादव आदि उद्यमी मौजूद रहे।
उद्यमियों को मिला धोखा
उद्यमियों ने आरोप लगाया कि सीईटीपी हैंडओवर करते समय यूपीएसआईडीसी (अब यूपीसीडा) ने ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 1.55 एमएलडी बताई थी, जबकि बाद में जांच कराई गई तो क्षमता आधी निकली। ऐसे में सीवरेज शोधन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। टीम ने लिखित शिकायत पर समस्या निवारण का आश्वासन दिया।
दोहरा दे रहे टैक्स फिर भी सुविधाओं से महरूम
उद्यमियों ने बताया कि हम लोग यूपीएसआईडीसी व नगर निगम दोनों को प्रतिमाह लाखों का टैक्स देते हैं, जबकि यूपीएसआईडीसी ने इसे नगर निगम को हैंडओवर ही नहीं किया है। सुविधाएं शून्य हैं सडकें टूटी हैं, नालियां चोक हैं और पानी की टंकी अभी तक शुरू नहीं हो सकी।
नहीं मिला रिकार्ड व लॉग बुक
मंधना में बिल्वर्ड कंपनी द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण प्लांट का संचालन किया जा रहा है। यहां कोई लेखा-जोखा नहीं मिला। लॉग बुक भी नहीं थी। इसी कड़ी में भीमसेन पनकी में एमपीसीसी कंपनी द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण प्लांट संचालित है। इसका धुआं हवा में जाने के बजाए प्लांट में फैल रहा था। इसको ठीक कराने को कहा।
140 टेनरियों ने ही दिया था अंशदान
वाजिदपुर में वर्ष 1994 में बने 36 एमएलडी सीईटीपी के संचालन के लिए 175 टेनरियों में 140 ने अंशदान दिया था। जल निगम के परियोजना प्रबंधक घनश्याम द्विवेदी ने बताया कि दो करोड़ मांगे थे, लेकिन सिर्फ 1.39 करोड़ रुपये ही मिले थे। वर्तमान में 404 टेनरियां हैं। इसकी रिपोर्ट टीम को दी जा रही है। साथ ही गंगा में बंद हो रहे नालों और ट्रीटमेंट प्लांट का लेखा-जोखा भेजा जा रहा है। मई माह में फिर टीम आएगी।
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