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गंगा की गोद सूख रही और धरती का पानी

अपने आंचल में पौराणिक गाथाओं को संजोए पतित पावनी के तट पर बैठकर वाल्मीकि ने रामायण लिखी। क्रांतिकारियों के बलिदान की साक्षी गंगा के तट पर ही वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई, नानाराव पेशवा, तात्याटोपे, चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने रणनीति बनाकर देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई।

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Jun 2018 01:26 AM (IST)Updated: Mon, 11 Jun 2018 11:26 AM (IST)
गंगा की गोद सूख रही और धरती का पानी
गंगा की गोद सूख रही और धरती का पानी

जागरण संवाददाता, कानपुर :

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अपने आंचल में पौराणिक गाथाओं को संजोए पतित पावनी के तट पर बैठकर वाल्मीकि ने रामायण लिखी। क्रांतिकारियों के बलिदान की साक्षी गंगा के तट पर ही वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई, नानाराव पेशवा, तात्याटोपे, चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने रणनीति बनाकर देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई। वही गंगा आज उपेक्षा की शिकार होती जा रही है। पानी का भंडार सूखता जा रहा है। पीने के पानी के लिए शहरवासियों को जूझना पड़ रहा है। आलम यह है कि गंगा की गोद का सौभाग्य होने के बाद भी कानपुर आज 'जीरो डे' शहरों में शामिल हो गया है। अगर समय रहते नहीं चेते तो पीने के पानी की एक-एक बूंद के लिए जूझना पड़ेगा।

गंगा, नून और पांडु, तीन नदियों से घिरा शहर के भूगर्भ जल का पहला स्टेटा आज से दस साल पहले ही खत्म हो गया। अब दूसरे स्टेटा का पानी उपयोग में ला रहा है। दस साल मे ही दूसरे स्टेटा का चालीस फीसद से अधिक हिस्सा खत्म हो चुका है। रीचार्ज न होने से बचा हिस्सा भी जल्द खत्म होने की आशंका है लेकिन, धरती की गोद में पानी को बचाने की कोशिश करने के बजाए लोग उसमें कब्जा करने में जुट गए है। गंगा की गोद में मकान खड़े हो रहे हैं। वहीं सफाई नहीं होने से बालू, सिल्ट व झाड़ियों के बीच में जलधारा फंस कर रह गई है।

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गंगा में लगे बालू के ढेरों ने रोका जल

गंगा को निर्मल-अविरल करने को लेकर केवल कवायद ही चल रही है। गंगा में गिर रहे दूषित नालों को रोकने का काम भी चल रहा है लेकिन, गंगा की सफाई के लिए कोई तैयारी नहीं की जा रही है। बालू और सिल्ट एकत्र होने के कारण गंगा की गहराई कम होती जा रही है। इससे नदी बारिश के पानी को समेट नहीं पा रही है। गहराई कम होने और बालू के लगते ढेर ने अब घाटों से गंगा को दूर कर दिया है। घाट के निकट रहने वाले बुजुर्गो ने बताया कि दो दशक पहले गंगा घाट तक बहती थी लेकिन, नदी की सफाई के नाम पर केवल मजाक हो रहा है। रेत पर खड़े हो गए पक्के मकान

गंगा के किनारे कब्जों के साथ ही अब लोगों ने नदी क्षेत्र में भी कब्जे करना शुरू कर दिया है। रेत में पक्के मकान खड़े हो गए हैं। रानी घाट के पास गंगा के अंदर 50 मीटर अंदर तक बालू के ढेर लग गए हैं। इसके चलते बैराज से जलधारा भैरोघाट तक नहीं पहुंच पा रही है।

कब्जेदारों ने गायब कर दी पांडु नदी

पाडु नदी को भी कब्जेदारों ने लील लिया है। नदी को सीवर टैंक बना दिया है। कब्जा करने के साथ ही घरों का सीवर नदी में जोड़ दिया है। इसके अलावा नाले भी नदी में गिर रहे हैं। कब्जों के कारण नदी सकरी हो गई है और गंदगी के कारण गहराई कम हो गई है। इसी का नतीजा है कि बारिश का पानी ठहर नहीं पाता है। बारिश खत्म होने के बाद पांडु नदी गायब हो जाती है।

नून नदी फैक्ट्रियों का टैंक बनी

नून नदी चौबेपुर से बिठूर में आकर गंगा में मिल जाती है। क्षेत्र में पड़ने वाली फैक्ट्रियां ने इसका टैंक के रूप में प्रयोग करती हैं। फैक्ट्रियों का गंदा पानी सीधे नदी में डाला जा रहा है। इसके चलते नदी पूरी काली हो गई है। सफाई न होने के चलते गहराई भी कम होती जा रही है। ऐसे होने पर ही होगा सुधार

0 गंगा, पाडु व नून नदी में जमा सिल्ट व बालू की सफाई कराई जाए। गहराई में खोदाई कराई जाए ताकि नदियां बरसाती पानी को संजो सकें।

0 नदियों को कब्जों से मुक्त कराया जाए व भविष्य में कब्जे न हो, इसके लिए मानीट¨रग कराई जाए।

0 नदियों में गिर रहे नालों व फैक्ट्रियों के दूषित पानी को रोका जाए।

0 नदियों में सीवर लाइन व दूषित पानी डालने वालों पर कार्रवाई की जाए। प्यास बुझाती गंगा

- रोज 22 लाख को मिलता पानी हाल

घाटों से गंगा गायब हो गई हैं। करोड़ों रुपये से घाटों का सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है लेकिन, बिना गंगाजल सब बेकार है। बैराज की स्थिति

बैराज का जलस्तर - 111.85 मीटर

होना चाहिए- 113 मीटर

गंगा की गहराई - अपस्ट्रीम- साढ़े चार मीटर

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छोड़ा जा रहा पानी

नरोना बंधा से - 4380 क्यूसिक

बैराज से भैरोघाट की तरफ - 1427 क्यूसिक

भैराघाट की तरफ जलस्तर - 355.1 मीटर

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

गंगा में बालू के ढेर लगते जा रहे हैं। इसके चलते गहराई कम हो गई है। इस कारण बरसाती पानी समेटने की क्षमता कम होती जा रही है। लोगों को भी जागरूक होना होगा। अब पानी का महत्व समझना होगा। खुले स्थान खत्म होते जा रहे हैं और पार्को में भी पक्के निर्माण हो रहे हैं। पार्को में जलसंरक्षण की व्यवस्था की जाए।

डॉ संगीता अवस्थी, पर्यावरण विद


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