कुंभ में गंगा मोक्षदायिनी तो मोहर्रम में नियामत, इस तरह जुड़ी है मुसलमानों की आस्था
शब-ए-बरआत में शिया अरीजा लगाते हैं और मोहर्रम पर सुन्नी समुदाय गंगा से प्रसाद निकालते हैं।
By AbhishekEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 04:17 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 12:03 PM (IST)
जमीर सिद्दीकी, कानपुर। गंगा केवल हिंदुओं के लिए ही पतितपावनी, मोक्षदायिनी और पूजनीय नहीं है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लिए भी उतनी ही पवित्र है। शिया समुदाय हो या सुन्नी, उनकी आस्था ही है कि मोहर्रम में गंगा, नियामत का जरिया बनती हैं तो शबे-बरआत में मन्नत पूरी करने का।
गंगा की नियामत पाने को रहते हैं बेताब
कानपुर, उप्र में मोहर्रम की पांच तारीख को हजारों की संख्या में सुन्नी समुदाय के लोग, करबला में शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन का पैकी यानी दूत बनकर इमामबाड़े में फातिहा पढऩे जाते हैं। मोहर्रम की नौ तारीख को निशान-ए-पैक कासिद-ए-हुसैन के खलीफा शकील अहमद की कयादत में डेढ़ लाख से अधिक पैकी हीरामन पुरवा स्थित इमामबाड़ा पर फातिहा पढऩे के बाद निशान-ए-पैक के साथ दौड़ते हैं। पैकियों का यह हुजूम सुबह करीब चार बजे गंगा किनारे स्थित नवाबगंज करबला पहुंचता है। यहां निशान-ए-पैक को बालू में खड़ा कर दिया जाता है। खलीफा की टीम चारों ओर से पहरे लगाती है और निशान-ए-पैक की परिक्रमा शुरू होती है। परिक्रमा के बाद निशान-ए-पैक गंगा में ले जाकर, उसके जरिए नियामत यानी प्रसाद निकाला जाता है और पैकियों में बांटा जाता है। यह नियामत पाने के लिए लोग बेताब रहते हैं।
गंगा में लगाते अर्जी...
शब-ए-बरआत की रात करीब तीन बजे शिया समुदाय की महिलाएं, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी गंगा बैराज, जाजमऊ गंगापुल, मैस्कर घाट समेत अन्य घाटों के पास गंगा किनारे पहुंचते हैं। इनके पास कागज में मन्नत लिखी अरीजा यानी अर्जी होती है। इसे आटे की लोई में लपेटकर गंगा में इमाम जमाना के नाम से डालते हैं। इनमें वह भी शख्स शामिल होते हैं, जो पिछले साल की मुराद पूरी होने पर मन्नत उतारने आते हैं। वह गंगा किनारे फातिहा पढ़ते हैं। दुआ करते हैं कि उनकी मुराद पूरी हो जाए। कानपुर ही नहीं, उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे ऐसा नजारा बहुत जगहों पर देखा जा सकता है। फर्रुखाबाद में गंगाजल से वजू कर नमाज पढ़ी जाती है।
इनका ये है कहना
खलीफा, निशान-ए-पैक, कासिद-ए-हुसैन शकील अहमद का कहना है कि गंगा में पूरी आस्था है, क्योंकि करबला में जिस दरिया-ए-फरआत के पानी के लिए हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के लिए यजीद ने पानी बंद किया, वह भी नदी है और ये भी। हम निशान-ए-पैक के जरिए यहां से नियामत भी पाते हैं। विरासत प्रबंधन एवं इस्लामी इतिहासकार डॉ. मजहर नकवी कहते हैं गंगा में अरीजा (अर्जी) डाली जाती है। ऐसी मान्यता है कि इमाम जमाना के पास मछली के माध्यम से उनकी बात पहुंच जाती है।
गंगा की नियामत पाने को रहते हैं बेताब
कानपुर, उप्र में मोहर्रम की पांच तारीख को हजारों की संख्या में सुन्नी समुदाय के लोग, करबला में शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन का पैकी यानी दूत बनकर इमामबाड़े में फातिहा पढऩे जाते हैं। मोहर्रम की नौ तारीख को निशान-ए-पैक कासिद-ए-हुसैन के खलीफा शकील अहमद की कयादत में डेढ़ लाख से अधिक पैकी हीरामन पुरवा स्थित इमामबाड़ा पर फातिहा पढऩे के बाद निशान-ए-पैक के साथ दौड़ते हैं। पैकियों का यह हुजूम सुबह करीब चार बजे गंगा किनारे स्थित नवाबगंज करबला पहुंचता है। यहां निशान-ए-पैक को बालू में खड़ा कर दिया जाता है। खलीफा की टीम चारों ओर से पहरे लगाती है और निशान-ए-पैक की परिक्रमा शुरू होती है। परिक्रमा के बाद निशान-ए-पैक गंगा में ले जाकर, उसके जरिए नियामत यानी प्रसाद निकाला जाता है और पैकियों में बांटा जाता है। यह नियामत पाने के लिए लोग बेताब रहते हैं।
गंगा में लगाते अर्जी...
शब-ए-बरआत की रात करीब तीन बजे शिया समुदाय की महिलाएं, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी गंगा बैराज, जाजमऊ गंगापुल, मैस्कर घाट समेत अन्य घाटों के पास गंगा किनारे पहुंचते हैं। इनके पास कागज में मन्नत लिखी अरीजा यानी अर्जी होती है। इसे आटे की लोई में लपेटकर गंगा में इमाम जमाना के नाम से डालते हैं। इनमें वह भी शख्स शामिल होते हैं, जो पिछले साल की मुराद पूरी होने पर मन्नत उतारने आते हैं। वह गंगा किनारे फातिहा पढ़ते हैं। दुआ करते हैं कि उनकी मुराद पूरी हो जाए। कानपुर ही नहीं, उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे ऐसा नजारा बहुत जगहों पर देखा जा सकता है। फर्रुखाबाद में गंगाजल से वजू कर नमाज पढ़ी जाती है।
इनका ये है कहना
खलीफा, निशान-ए-पैक, कासिद-ए-हुसैन शकील अहमद का कहना है कि गंगा में पूरी आस्था है, क्योंकि करबला में जिस दरिया-ए-फरआत के पानी के लिए हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के लिए यजीद ने पानी बंद किया, वह भी नदी है और ये भी। हम निशान-ए-पैक के जरिए यहां से नियामत भी पाते हैं। विरासत प्रबंधन एवं इस्लामी इतिहासकार डॉ. मजहर नकवी कहते हैं गंगा में अरीजा (अर्जी) डाली जाती है। ऐसी मान्यता है कि इमाम जमाना के पास मछली के माध्यम से उनकी बात पहुंच जाती है।
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