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    कानुपर में गंगा सफाई के नाम पर 28 साल में अधिकारी डकार गए 9 अरब

    By amal chowdhuryEdited By:
    Updated: Wed, 03 May 2017 10:24 AM (IST)

    किसी न किसी योजना के नाम पर सरकारें पानी की तरह पैसा बहाती रहीं और अधिकारी उसमें भ्रष्टाचार की नाव चलाते रहे।

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    कानुपर में गंगा सफाई के नाम पर 28 साल में अधिकारी डकार गए 9 अरब

    कानपुर (जागरण संवाददाता)। पावन गंगा को साफ करने के नाम पर जिम्मेदार अफसर 'पाप' ही करते रहे हैं। गंगा स्वच्छता के प्रति सरकारी तंत्र की बदनीयती को इन आंकड़ों से बेहतर कौन समझा सकता है। किसी न किसी योजना के नाम पर सरकारें पानी की तरह पैसा बहाती रहीं और अधिकारी उसमें भ्रष्टाचार की नाव चलाते रहे। कागज पर चली कसरत का ही नतीजा है कि 28 साल में गंगा सफाई पर नौ अरब खर्च होने के बाद स्थिति 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की' वाली है।

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    शहर में मोक्षदायिनी गंगा की सफाई का सफर वर्ष 1989 में शुरू हुआ। नीदरलैंड सरकार की मदद से गंगा एक्शन प्लान चलाया गया। दो चरण में गंगा एक्शन प्लान शुरू हुआ। इसमें 166 करोड़ रुपये खर्च किए गए। उस समय शहर से गंगा में 200 एमएलडी (20 करोड़ लीटर) गंदा पानी गिरता था, लेकिन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट 162 एमएलडी (16.2 करोड़ लीटर) का बनाया गया।

    इस तरह 38 (3.8 करोड़ लीटर) एमएलडी गंदा प्रदूषित पानी गंगा में ही गिरता रहा। बीते 28 सालों में शहर का विस्तार होने के साथ गंदे पानी की मात्र भी बढ़ती गई। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में शहर से 460 एमएलडी (46 करोड़ लीटर) सीवेज रोज निकलता है। इस दौरान गंगा एक्शन प्लान से जाजमऊ में बने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता सिर्फ 162 एमएलडी पानी ही ट्रीट करने की है। रखरखाव के चलते 100 एमएलडी (दस करोड़ लीटर) ही ट्रीट हो पा रहा है। 36 करोड़ लीटर दूषित पानी सीधे गंगा में गिर रहा है।

    फिर गंगा को साफ करने के लिए वर्ष 2005 में जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन योजना लाई गई। इसके तहत तीन फेज में योजना बनाई गई। 7.50 अरब रुपये खर्च हो चुके हैं। इसके तहत कुल 31 करोड़ लीटर क्षमता के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बने हैं। इसमें से अभी तक बिनगवां में बना 21 करोड़ लीटर का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू हो पाया है। वह भी सिर्फ सात करोड़ लीटर पानी ट्रीट कर रहा है। वह भी रोज नहीं हो पाता है। बाकी अनियोजित प्लानिंग में लटके हुए हैं।

    आचमन लायक भी नहीं पानी: गंगा के घाटों पर नाले खुलेआम गिर रहे हैं। हालत यह है कि बैराज से कम पानी छोड़े जाने के कारण गंगा घाटों से रूठकर दूसरी तरफ चली गई है। घाटों के पास नाले व बस्ती का पानी गिरने के कारण आचमन लायक भी पानी नहीं है। आचमन करने या स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं को पांच-पांच सौ मीटर दूर बालू व गंदे पानी के बीच से गुजर कर दूसरी तरफ जाना पड़ता है।

    गंगा की गोद में अवैध निर्माण: गंगा की गोद में मकान बनते जा रहे हैं। रेत में बस रही अवैध बस्तियां मुसीबत बनती जा रही हैं। अवैध बस्तियों पर अफसरों की नजर ही नहीं है। मंत्री से लेकर अफसर तक बैराज से सिद्धनाथ घाट तक नाव में बैठकर सफर कर चुके हैं, लेकिन गंगा की रेत पर हो रहे कब्जे नहीं दिख रहे हैं।

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    घरों की भी गंदगी नदी में: रानी घाट व भैरोघाट पंपिंग स्टेशन के पास भी लगे बालू के ढेर में पक्के निर्माण होते जा रहे हैं। घरों की गंदगी सीधे गंगा में डाली जा रही है। साथ ही कब्जेदारों ने जानवर पाल रखे हैं। इनकी गंदगी भी गंगा में जा रही है। साथ ही कब्जेदारों ने रेत के मैदान खेत में बदल दिए हैं, जबकि गंगा में खेती पर रोक है।

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