दो वर्ष पहले थीं मंत्री, आज अपने ही गढ़ में सिर्फ 671 वोट में सिमट गईं
सपा के शासन काल में सांस्कृति मंत्री रहीं अरुणा कुमारी कोरी ने प्रसपा के टिकट पर मिश्रिख संसदीय सीट से चुनाव लड़ा।
कानपुर, जेएनएन। राजनीति का ऊंट कब, किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता। इस बात को फिलहाल दो वर्ष पहले बिल्हौर की विधायक और प्रदेश में सांस्कृतिक मंत्री रहीं अरुणा कुमारी कोरी से अच्छा कोई नहीं बता सकता। 87,804 वोट हासिल कर 2012 में बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनीं सपा प्रत्याशी अरुणा कुमारी कोरी आज उसी विधानसभा क्षेत्र में मात्र 671 वोट ही हासिल कर सकीं।
अभी दो वर्ष तक शहर में लाल बत्ती से घूमने वालीं अरुणा कुमारी कोरी को समाजवादी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया था। इससे नाराज अरुणा कुमारी कोरी शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से जुड़ गई थीं। उन्हें मिश्रिख संसदीय सीट से टिकट भी मिल गया था। मिश्रिख संसदीय सीट में ही बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र भी आता है। नौबस्ता स्थित गल्ला मंडी में जब बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र की मतगणना हुई तो उनको मात्र 671 वोट ही हासिल हुए। हालत यह रही कि विधानसभा क्षेत्र के 442 बूथों में से डेढ़ सौ से ज्यादा बूथों पर उन्हें एक वोट भी नहीं मिला। इसके साथ ही बड़ी संख्या में बूथों में उन्हें एक-एक ही वोट मिला। अंगुली पर गिनने लायक बूथों में ही वह दहाई की संख्या हासिल कर सकीं।
खुद को वोट कटवा भी साबित न कर सकी प्रसपा
सपा, बसपा गठबंधन के प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे महेंद्र सिंह यादव को अकबरपुर संसदीय सीट पर प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वह खुद को वोट कटवा भी साबित नहीं कर सके। पौने तीन लाख करीब वोटों की जीत में महेंद्र सिंह मात्र दो हजार के करीब वोट पा सके। कई अन्य निर्दलीय प्रत्याशी तक उनसे ज्यादा वोट पा गए। समाजवादी पार्टी के कुनबे में शुरू हुई लड़ाई इस लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा खुलकर सामने आई थी। शिवपाल सिंह यादव ने अपनी अलग पार्टी बनाकर प्रदेश में तमाम सीटों से अपने प्रत्याशी उतारे थे।
सपा अध्यक्ष और शिवपाल सिंह यादव के बीच का यह विवाद इस चुनाव में भी पूरी तरह खुल कर सामने आया। सपा को कमजोर करने के लिए शिवपाल सिंह यादव ने सपा के जिलाध्यक्ष रहे महेंद्र सिंह को टिकट दिया था। वह उनके समर्थन में सभा भी करने आए थे और मंच पर वह काफी भावुक भी दिखे थे, लेकिन चुनाव में उनका दांव बहुत ही कमजोर साबित हुआ। खुद देवेंद्र सिंह भोले ने निशा सचान से इतनी लंबी लीड हासिल कर ली कि उनका मतलब नहीं रह गया।
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