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236 वर्षो में पहली बार गुलजार नहीं हुआ पैकियों का निशान

कोरोना वायरस के चलते इस साल मुहर्रम पर 236 वर्षो में पहली बार न तो पैकियों का निशान गुलजार हुआ और न जुलूस निकला।

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 Aug 2020 06:38 AM (IST)Updated: Wed, 26 Aug 2020 06:38 AM (IST)
236 वर्षो में पहली बार गुलजार नहीं हुआ पैकियों का निशान
236 वर्षो में पहली बार गुलजार नहीं हुआ पैकियों का निशान

जागरण संवाददाता, कानपुर : कोरोना वायरस के चलते इस साल मुहर्रम पर 236 वर्षो में पहली बार न तो पैकियों का निशान गुलजार हुआ और न ही जुलूस निकाला गया। निशान-ए-पैक कासिद ए हुसैन के दफ्तर के बाहर मंगलवार को फोर्स तैनात रही। पैकियों के खलीफा ने भी साफ कर दिया कि इस वर्ष न तो निशान उठाया जाएगा और न ही किसी पैकी की कमर बांधी जाएगी। अपने आप जो भी पैकी बनेगा खलीफा उसके जिम्मेदार नहीं होंगे।

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मुहर्रम की पांच तारीख को पैकियों का निशान गुलजार होता है। यह सिलसिला सन् 1784 से चला आ रहा है। इसकी शुरुआत दायम खान ने की थी। अब उनकी पांचवीं पीढ़ी पैकियों का नेतृत्व कर रही है। वर्तमान में तकरीबन डेढ़ लाख लोग पैकी बनते हैं। ये विशेष पोशाक पहनकर, कमर में घंटी बांधकर मुहर्रम की पांच तारीख को निशान के पीछे दौड़ लगाते हैं। चौराहों पर निशान का तवाफ (परिक्रमा) करते हैं। नौ तारीख को लाखों पैकी बड़ी कर्बला से नवाबगंज तक दौड़ते हैं और दस तारीख को पैकियों की कमर खोलकर नियामत बांटी जाती है। मंगलवार को 236 वर्षो में पहली बार न तो पैकियों का निशान गुलजार हुआ और न ही खलीफा शकील अहमद खान ने पैकियों की कमर बांधी। उन्होंने कील वाला हाता स्थित अपने घर में बने निशान-ए-पैक कासिद ए हुसैन के दफ्तर में ही इजरत इमाम हुसैन की नजर दिलाई। इस दौरान कील वाला हाता व आसपास के इलाकों में फोर्स तैनात रही। इसलिए बनते हैं पैकी

जासं, कानपुर: कर्बला रवाना होते वक्त हजरत इमाम हुसैन अपनी बेटी जनाब ए सुगरा को मदीना में छोड़ गए थे। उस वक्त जनाब ए सुगरा कासिद (संदेशवाहक) के जरिए हजरत इमाम हुसैन तक खत भेजती थीं। ये कासिद जंगलों व बियाबानों से गुजरते थे। जंगली जानवरों व अन्य खतरों को देखते हुए वे हथियार लिए रहते थे। बाद में उनको कासिद ए हुसैन ( हजरत इमाम हुसैन तक संदेश पहुंचाने वाले) कहा जाने लगा। जनाब ए सुगरा के कासिद की याद में लोग पैकी बनते हैं। कई लोग मन्नत पूरी होने पर भी पैकी बनते हैं। कलावा बांध बच्चों को बनाया इमाम हुसैन का फकीर

जासं, कानपुर: हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम की पांच तारीख पर शहर के सभी इमाम बारगाहों में मजलिस हुई। महिलाओं ने बच्चों को मन्नती हरा-लाल कलावा बांधकर इमाम हुसैन का फकीर बनाया। इमाम बारगाह हादी बेगम में हुई मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना सईद अब्बास ने कहा कि इमाम हुसैन पैगम्बर ए इस्लाम के नवासे और जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं। अन्य इमाम बारगाहों में हुई मजलिसों को हुसैनी वक्ता, मौलाना बशीर हैदर, मौलाना मोहम्मद मेहंदी रिजवी, मौलाना इंतखाब आलम काजमी, मौलाना मुनव्वर हुसैन ने संबोधित किया। मजिलसों में जामी नकवी, हाजी मुंसिफ अली रिजवी, डा.जुल्फिकार अली रिजवी, हाजी वाजिद रिजवी, नवाब नादिर हुसैन, पप्पू मिर्जा आदि रहे। उधर तंजीम बरेलवी उलमा ए अहले सुन्नत ने किदवई नगर में जलसा आयोजित किया। मौलाना जुनैद अहमद मिस्बाही ने हजरत अली की जिदगी पर रोशनी डाली। हाफिज फैसल जाफरी, हाफिज इमरान रजा कादरी, मोहम्मद जुबैर आदि रहे। खानकाहे हुसैनी कर्नलगंज में जिक्र शोहदा ए कर्बला हुआ।


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