सड़क हादसा होने पर घायलों को नई जिंदगी देगी ये फ्लाइंग 'एंबुलेंस' Kanpur News
आइआइटी के हैकाथॉन में ओडिशा से आए छात्रों ने तैयार की है अस्पताल व पुलिस को दुर्घटना की सूचना देने में सक्षम।
By AbhishekEdited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 05:08 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 10:54 AM (IST)
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। सड़क हादसे में घायलों और रास्ते में फंसे गंभीर मरीजों को अक्सर समय पर प्राथमिक उपचार न मिलने जान गंवानी पड़ती है। डॉक्टरों की मानें तो शुरुआती एक घंटे के अंदर इलाज मिलने से जान बचाई जा सकती है। इसकी गंभीरता को देखते हुए आइआइटी छात्रों ने ऐसे घायलों को जिंदगी देने का रास्ता खोज निकाला है। उनकी मदद के लिए ऐसी फ्लाइंग 'एंबुलेंस' तैयार की है, जो न केवल मिनटों में मौके पर पहुंचेगी बल्कि प्राथमिक चिकित्सा दिलाने के साथ पुलिस और अस्पताल को भी सूचना भेजेगी।
गोल्डन ऑवर में उपचार से बच सकती जान
डॉक्टरों की भाषा में कहा जाए तो किसी हादसे में घायल हुए व्यक्ति के लिए पहला एक घंटा गोल्डन ऑवर होता है। इस दौरान यदि घायल को प्राथमिक चिकित्सा मिल जाए तो अस्सी से नब्बे फीसद तक उसकी जान बचाना संभव हो सकता है। अक्सर देखने में आया है कि घायल को अधिक रक्तस्राव हो रहा होता है, ऐसे में प्राथमिक चिकित्सा न मिलने और अस्पताल पहुंचने में देरी के चलते उसकी जान चली जाती है। अब ऐसे घायलों और गंभीर मरीजों के लिए फ्लाइंग 'एंबुलेंस' संजीवनी का काम करेगी।
ओडिशा के छात्रों ने तैयार किया ड्रोन
आइआइटी के हैकाथॉन में ओडिशा के सीवी रमन कॉलेज ऑफ इंजीनियङ्क्षरग से आए छात्रों ने फ्लाइंग एंबुलेंस के रूप में काम करने वाला ड्रोन विकसित किया है। ये पूरी तरह मोबाइल एप पर काम करेगा। साल भर तक शोध कार्य करने के बाद इसे तैयार करने वाली छात्रों की टीम में बीटेक के छात्र राजशेखर सिंह, प्रतीक प्रकाश, मदन साहू, रोहित कुमार, राजा राम कारक व दीपाली सिन्हा शामिल हैं।
इस तरह काम करेगा ये ड्रोन
एप से ही घायल व्यक्ति और मरीज की सूचना देनी होगी। कुछ ही मिनटों में यह मरीज तक पहुंच जाएगा। इसमें एंटीबायोटिक और टिटनेस इंजेक्शन, पेन किलर व फस्र्ट एड किट होगी। इसे कैसे प्रयोग करना है यह निर्देश देने के लिए ड्रोन में वीडियो और फोटो भी होंगे। घायल के साथ व उसके समीप होने वाला व्यक्ति इस किट का आसानी से इस्तेमाल कर साथी की जान बचा सकेगा। खास बात ये है कि इसमें लगा कैमरा ऑटोमैटिक तकनीक से हादसे की फोटो खींचकर मोबाइल एप के माध्यम से पास के अस्पताल व पुलिस स्टेशन को जानकारी देगा।
पांच सेंसर व फ्लाइट कंट्रोलर पहुंचाते हैं मरीज तक
छात्र राजशेखर सिंह के मुताबिक फ्लाइंग एंबुलेंस में अल्ट्रासाउंड, एक्सलरोमीटर, गायरोस्कोप, कंपास व जीपीएस यह पांच सेंसर लगे हैं। इसमें इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल किया गया है जो कंप्यूटर से कंट्रोल होगा। हवा में इसको नियंत्रित करने के लिए फ्लाइट कंट्रोलर लगाया गया है। इसके अलावा एक कैमरा भी है। गंभीर मरीज की सूचना पर एप के माध्यम से यह लोकेशन ट्रेस कर लेगा।
कंपनियों से करार की तैयारी
इसका परीक्षण सफल होने के बाद अब इसे कमर्शियल करने की तैयारी की जा रही है। छात्रों ने बताया कि इसके निर्माण के लिए कई कंपनियों से बात हुई है। उन्होंने इसमें रुचि भी दिखाई है। जल्द ही करार किया जाएगा और यह सुविधा मरीजों को मिल सकेगी।
गोल्डन ऑवर में उपचार से बच सकती जान
डॉक्टरों की भाषा में कहा जाए तो किसी हादसे में घायल हुए व्यक्ति के लिए पहला एक घंटा गोल्डन ऑवर होता है। इस दौरान यदि घायल को प्राथमिक चिकित्सा मिल जाए तो अस्सी से नब्बे फीसद तक उसकी जान बचाना संभव हो सकता है। अक्सर देखने में आया है कि घायल को अधिक रक्तस्राव हो रहा होता है, ऐसे में प्राथमिक चिकित्सा न मिलने और अस्पताल पहुंचने में देरी के चलते उसकी जान चली जाती है। अब ऐसे घायलों और गंभीर मरीजों के लिए फ्लाइंग 'एंबुलेंस' संजीवनी का काम करेगी।
ओडिशा के छात्रों ने तैयार किया ड्रोन
आइआइटी के हैकाथॉन में ओडिशा के सीवी रमन कॉलेज ऑफ इंजीनियङ्क्षरग से आए छात्रों ने फ्लाइंग एंबुलेंस के रूप में काम करने वाला ड्रोन विकसित किया है। ये पूरी तरह मोबाइल एप पर काम करेगा। साल भर तक शोध कार्य करने के बाद इसे तैयार करने वाली छात्रों की टीम में बीटेक के छात्र राजशेखर सिंह, प्रतीक प्रकाश, मदन साहू, रोहित कुमार, राजा राम कारक व दीपाली सिन्हा शामिल हैं।
इस तरह काम करेगा ये ड्रोन
एप से ही घायल व्यक्ति और मरीज की सूचना देनी होगी। कुछ ही मिनटों में यह मरीज तक पहुंच जाएगा। इसमें एंटीबायोटिक और टिटनेस इंजेक्शन, पेन किलर व फस्र्ट एड किट होगी। इसे कैसे प्रयोग करना है यह निर्देश देने के लिए ड्रोन में वीडियो और फोटो भी होंगे। घायल के साथ व उसके समीप होने वाला व्यक्ति इस किट का आसानी से इस्तेमाल कर साथी की जान बचा सकेगा। खास बात ये है कि इसमें लगा कैमरा ऑटोमैटिक तकनीक से हादसे की फोटो खींचकर मोबाइल एप के माध्यम से पास के अस्पताल व पुलिस स्टेशन को जानकारी देगा।
पांच सेंसर व फ्लाइट कंट्रोलर पहुंचाते हैं मरीज तक
छात्र राजशेखर सिंह के मुताबिक फ्लाइंग एंबुलेंस में अल्ट्रासाउंड, एक्सलरोमीटर, गायरोस्कोप, कंपास व जीपीएस यह पांच सेंसर लगे हैं। इसमें इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल किया गया है जो कंप्यूटर से कंट्रोल होगा। हवा में इसको नियंत्रित करने के लिए फ्लाइट कंट्रोलर लगाया गया है। इसके अलावा एक कैमरा भी है। गंभीर मरीज की सूचना पर एप के माध्यम से यह लोकेशन ट्रेस कर लेगा।
कंपनियों से करार की तैयारी
इसका परीक्षण सफल होने के बाद अब इसे कमर्शियल करने की तैयारी की जा रही है। छात्रों ने बताया कि इसके निर्माण के लिए कई कंपनियों से बात हुई है। उन्होंने इसमें रुचि भी दिखाई है। जल्द ही करार किया जाएगा और यह सुविधा मरीजों को मिल सकेगी।
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