नामचीन ब्रांड को दे रही टक्कर और खूब कमाई करा रही घर की बनी हर्बल टी और चॉकलेट
कानपुर के घाटमपुर में महिलाअों के समूह ने स्वरोजगार की मिसाल कायम की है। अचार पापड़ मुरब्बा के साथ मल्टीग्रेन आटा और वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के साथ हर्बल टी चॉकलेट और सोया मिल्क भी बनाकर कमाई कर रही हैं।
कानपुर, जागरण संवाददाता। घाटमपुर की महिलाओं और युवतियों ने रोजगार के क्षेत्र में नए आयाम गढ़ दिए हैं। वे न सिर्फ एक मिसाल बन गई हैं बल्कि बेरोजगारों की प्रेरणा बनकर सामने आई हैं। यहां घर बैठे महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर प्रतिमाह हजारों की कमाई कर रही हैं और घर-परिवार के लिए भी बड़ा सहारा साबित हो रही हैं। उन्हें देखकर आसपास क्षेत्र की महिलाएं और युवतियां भी अब अपने पैरों पर खड़े होने लगी हैं। अब समूहों में अचार, पापड़, मुरब्बा के साथ मल्टीग्रेन आटा और वर्मी कम्पोस्ट भी तैयार की जा रही है। इतना ही नहीं युवतियां हर्बल टी, चॉकलेट और सोया मिल्क बनाकर नामचीन ब्रांड को टक्कर दे रही हैं।
वर्मी कम्पोस्ट बना रासायनिक खाद से छुटकारा : घाटमपुर में युवतियों और महिलाओं ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है। घाटमपुर के सरगांव की युवतियों ने नारी सशक्तीकरण की अलख जलाते हुए कुछ अलग करने की चाह जगाई और खेती-किसानी जैसे कठिन क्षेत्र में भी खुद को साबित कर दिखाया। उन्होंने प्राकृतिक तरीके से घर पर उगाई गई चीजों से आचार, पापड़, मुरब्बा, मल्टीग्रेन आटा का स्वरोजगार शुरू किया। इसके साथ ही रासायनिक उर्वरक मुक्त खेती को बढ़ावा देते हुए वर्मी कम्पोस्ट खाद भी बनाई। सरगांव की कीर्ति त्रिपाठी ने गांव में ही महिलाओं को जोड़कर 'जय कामतानाथ वर्मी महिला स्वयं सहायता समूह' की स्थापना की थी। इरादा था कि रासायनिक उर्वरकों से छुटकारा पाने के लिए केंचुआ खाद तैयार की जाएगी। खाद तैयार हुई तो फिर खेती भी शुरू हो गई।
अचार, मुरब्बा के साथ मल्टीग्रेन आटा : समूह की महिलाओं ने बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थ को देखते हुए उन्होंने प्राकृतिक तरीके से उगाया गेहूं का आटा, बेसन, सरसों का तेल और मल्टीग्रेन आटा मार्केट में बेचना शुरू किया। इसके बाद अचार, मुरब्बा और पापड़ भी बनाने शुरू किए। मौजूदा हालत यह है कानपुर की कई कंपनियां उनके पास से थोक में सामान उठाती हैं। इसके बाद उन्होंने डेयरी फार्म भी खोला और दूध, पनीर, घी, खोया भी बेचना शुरू किया। नेयवेली पावर प्लांट में उनकी थोक सप्लाई होती है। कानपुर विकास भवन में उनका खुद का स्टाल भी है। कीर्ति के साथ इस काम में सुधा देवी, साधना, सुंदरी, अंजुल, गीता, सुशीला, भगवती, उर्मिला, पुष्पा, सावित्री, पूनम जुड़ी हुई हैं।
आरसेटी की ट्रेनर भी हैं कीर्ति : कीर्ति त्रिपाठी ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) की ट्रेनर और आब्जर्वर भी हैं। वह आरसेटी के प्रशिक्षण शिविरों में युवाओं को आचार, पापड़ और मुरब्बा बनाने की ट्रेनिंग देती हैं। इसके साथ ही वह आब्जर्वर की भूमिका भी निभाती हैं। कीर्ति ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई शहरों में जाकर ट्रेनिंग दे चुकी हैं।
हर्बल टी, चॉकलेट और सोया मिल्क भी बनाया : पतारा में भी युवतियों और महिलाओं ने स्वरोजगार की नई मिसाल कायम की है। यहां की रितिका श्रीवास्तव ने गांव की ही दीपिका, निधि, पिंकी, अंकिता, सरोज, रंजना और मंजूसा को साथ लेकर करीब चार साल पहले 'हैप्पी लाइफ स्वयं सहायता समूह' की स्थापना की थी। उन्होंने घर पर ही अर्जुन की छाल, गुलाब, अश्वगंधा और अन्य जड़ी बूटियां मिलाकर हर्बल टी की शुरुआत की थी। कोरोना काल में हर्बल टी की मांग प्रदेश के बाहर मध्यप्रदेश तक से होने लगी।
इस काम में रितिका के भाई आशीष श्रीवास्तव का भी सहयोग मिला। उन्होंने दुकान-दुकान जाकर प्रोडक्ट की मार्केटिंग करनी शुरू की। सहायता समूह की लगन को देखते हुए पिछले साल उन्हें राष्ट्रीय आजीविका मिशन से एक लाख 10 हजार रुपये की मदद मिली। रितिका ने बताया कि उन्होंने लैक्टोज इंटॉलरेंस (दूध से एलर्जी) लोगों के लिए सोया का दूध तैयार किया है। अभी दो दिन पहले ही अपनी चॉकलेट भी लांच की है।