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आपातकाल के 45 साल: पैरों के नाखून खींचकर दी गई थीं यातनाएं, लोकतंत्र सेनानी ने बयां किया दर्द

26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी तब लोकगीत जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है... बहुत लोकप्रिय था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 07:20 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 07:20 PM (IST)
आपातकाल के 45 साल: पैरों के नाखून खींचकर दी गई थीं यातनाएं, लोकतंत्र सेनानी ने बयां किया दर्द
आपातकाल के 45 साल: पैरों के नाखून खींचकर दी गई थीं यातनाएं, लोकतंत्र सेनानी ने बयां किया दर्द

कन्नौज, [सचिन द्विवेदी]। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में जब आपातकाल की घोषणा की थी तब लोकतंत्र के सेनानी देश में आर्थिक और सामाजिक चेतना के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे। अहिंसात्मक आंदोलन करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को पकड़कर यातनाएं दी जाती रहीं, आंदोलन में शामिल रहे इंदरगढ़ कन्नौज निवासी शंभूदयाल आपातकाल का वो समय याद करते हैं तो दर्द ताजा हो जाते हैं।

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लोकतंत्र सेनानी शंभू दयाल बताते हैं कि सन 1967 में विनोबा भावे का भूदान आंदोलन चरम पर था। इसी समय जिला परिषद अध्यक्ष कालीचरण टंडन सर्वोदय आंदोलन में मैं जाता था। क्रांतिकारी गीतों के प्रस्तुतीकरण के लिए वे मुझे भी अपने साथ प्रदेश के अन्य जनपदों में ले जाते थे। सन 1974 में जयप्रकाश नारायण ने समग्र क्रांति मंच की स्थापना की। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक आंदोलन करना था। इस दौरान लोकगीत जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है... बहुत लोकप्रिय था। इससे प्रेरित होकर मैं भी सर्व सेवा संघ वाराणसी के बैनर तले आ गया। अध्यापन के साथ-साथ अवकाश मिलने पर संघ के मंत्री विनय अवस्थी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आंदोलन से जुड़कर पूर्वी यूपी से पश्चिमी यूपी तक पद यात्राएं की। लोगों को राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक चेतना के लिए जागृत किया। लेकिन, 26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।

शंभू दयाल ने बताया कि लोकनायक राजनारायण तथा जॉर्ज फर्नांडीज सहित अन्य क्रांतिकारी नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया। आठ सितंबर 1975 को शंभू दयाल जब पड़ोस के गांव देहपुरवा में बैठक कर लोगों को जागरूक कर रहे थे तो उसी समय पुलिस ने उन्हें राष्ट्र विरोधी ठहराते हुए कोतवाली फतेहगढ़ की तनहाई में डाल दिया। आनंद मार्गी संन्यासी मनोज कुमार के साथ तो पुलिस ने पाश्विक कृत्य किया। पहले उन्हें लाठी-डंडों, लात घूसों से पीटा। बाद में उनके पैरों के नाखून तक प्लास से खींचे गए।

इससे असहनीय पीड़ा हुई। नौ सितंबर 1975 को डीआइआर मीसा के अंतर्गत 33/36/43 आदि धाराएं लगाकर मुझे जेल भेज दिया गया। उनकी नौकरी भी चली गई। जेल में वह ब्रह्मदत्त द्विवेदी तथा ब्रज किशोर अवस्थी के साथ करीब डेढ़ माह तक रहे। तत्पश्चात जमानत पर बाहर आए और इमरजेंसी के खिलाफ लोगों को जागरूक करते रहे। 22 मार्च 1977 को मोरारजी भाई देसाई के प्रधानमंत्री बनने पर इमरजेंसी समाप्त की गई। तत्पश्चात अप्रैल माह में उन्हें भी नौकरी में फिर लिया गया। फिलहाल अपने पुत्र के साथ वे गांव में ही रह रहे हैं।


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