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आइंस्टीन, टॉम क्रूज और ग्राहम बेल जैसी हस्तियों की बीमारी का IIT कानपुर में इलाज!

कानपुर आइआइटी के इंजीनियरों ने अब इस बीमारी का निदान खोज लिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 27 Jun 2018 08:48 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jun 2018 11:54 AM (IST)
आइंस्टीन, टॉम क्रूज और ग्राहम बेल जैसी हस्तियों की बीमारी का IIT कानपुर में इलाज!
आइंस्टीन, टॉम क्रूज और ग्राहम बेल जैसी हस्तियों की बीमारी का IIT कानपुर में इलाज!

कानपुर [शशांक शेखर भारद्वाज]। आपको आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीन पर’ का बाल कलाकर ईशान अवस्थी याद ही होगा। वह डिस्लेक्सिया की बीमारी से पीड़ित था। यही बीमारी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन, टेलीफोन के जनक एलेक्जेंडर ग्राहम बेल और अभिनेता टॉम क्रूज जैसी कळ्छ हस्तियों को भी थी। सामाजिक सरोकार की दिशा में शोध कर रहे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर के इंजीनियरों ने अब इस बीमारी का निदान खोज लिया है।

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अक्षर और अंक को उल्टा-पुल्टा पढ़ने की इस बीमारी को दूर करने के लिए आइआइटी के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग ने सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन बनाया है। इससे डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह पढ़ाई कर सकेंगे। जियोमेट्री विधि की तकनीक पर आधारित ये एप्लीकेशन और सॉफ्टवेयर सरल तरीके से अक्षर बनाना और पहचानना सिखाएंगे। हर कसौटी पर सफल परख के बाद आइआइटी की इस विशेष तकनीक को अब जुलाई में लांच करने की तैयारी है।

टेबलेट जैसी डिवाइस बता देगी गलती
आइआइटी की यह डिवाइस टेबलेट जैसी होगी। इसमें सॉफ्टवेयर इंस्टॉल होगा। डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चा उस पर गलत लिखता है तो तुरंत पता चल जाएगा। यह डिवाइस गलत अक्षर को दिखाने के साथ ज्यामितीय विधि यानी गोला, लकीर, आधा गोला आदि के प्रयोग से सही अक्षर बनाकर दिखाएगी।

पहले चरण में हिंदी पर काम
पहले चरण में हिंदी के अक्षरों पर काम हो रहा है। अंग्रेजी के अक्षर और गणित के अंकों पर सॉफ्टवेयर की लांचिंग के बाद काम शुरू होगा। नए सैंपल लिए जाएंगे।

क्या है डिस्लेक्सिया
डिस्लेक्सिया अंक और अक्षर पढ़ने में आने वाली कठिनाई की समस्या है। बच्चे इन्हें उलट-पुलट कर पढ़ते हैं। उच्चारण में भी कठिनाई आती है। इसे मानसिक बीमारी कतई न मानें।

ऐसे हुआ अध्ययन
शहर के सरकारी और मॉडल स्कूलों के कक्षा एक से पांच तक के 70 डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चों की हिंदी, अंग्रेजी और गणित की हैंडराइटिंग बतौर सैंपल ली गई। मात्रा, बिंदी, पूर्ण विराम, कॉमा की दिक्कतों पर अध्ययन किया। बच्चे कहां अटक रहे हैं, कौन से शब्द नहीं पहचान पा रहे, ब्लैक बोर्ड पर लिखा अक्षर कॉपी में कैसे उतार रहे, हर परेशानी की कोडिंग की गई। फिर सॉफ्टवेयर तैयार हुआ।

जुलाई में लांच होगा सॉफ्टवेयर
सॉफ्टवेयर की लांचिंग से डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों की पढ़ाई काफी आसान हो जाएगी। अभिभावक खुद बच्चे की परेशानी दूर कर सकेंगे। ऐसे बच्चों की बौद्धिक क्षमता काफी अच्छी होती है, लेकिन कुछ अक्षरों के कारण परीक्षा में नंबर कट जाते हैं।

प्रो. बृजभूषण, ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज,

आइआइटी कानपुर  


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