मुफलिसी ने इस कदर किया मजबूर कि एक मां ने पांच हजार रुपये में बेच दी अपनी कोख
दंपती ने कलेजे पर पत्थर रखकर उठाया कदम, पहले से 3 बेटे होने व पारिवारिक खर्च न चला पाने के हालात ने किया बेबस।
By AbhishekEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 02:07 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 10:31 AM (IST)
कानपुर, जेएनएन। बेरोजगारी और मुफलिसी ने इतना मजबूर किया कि कलेजे पर पत्थर रखकर माता-पिता ने उस संतान को दूसरे के सुपुर्द करने का फैसला ले लिया, जिसने दुनिया में आंख तक नहीं खोली थी। पहले ही तीन बेटों का पालन-पोषण ठीक से नहीं कर पा रही मजबूर मां ने जन्म लेने के बाद अपनी 'ममताÓ को दूसरे के हवाले कर दिया। बदले में उसकी डिलीवरी में खर्च हुए साढ़े पांच हजार रुपये मिले, जबकि परिवार को कपड़े और पांच हजार रुपये मिलने अभी बाकी हैं।
गंगाघाट कोतवाली अंतर्गत जाजमऊ चौकी क्षेत्र की अमरूद बाजार स्थित एक मकान में पांच सौ रुपये किराये पर रहने वाले मेराज आलम के मुताबिक वह मूलरूप से कानपुर के बकरमंडी के निवासी है। परिवार से मेलजोल न होने के चलते वह पत्नी व बच्चों के साथ यहां रहकर एक टेनरी में काम करते हैं। बीते दिनों टेनरियों की बंदी होने के बाद वह बेरोजगार हो गए। मजदूरी शुरू की लेकिन सप्ताह में एक-दो दिन ही काम मिल पा रहा था। उधर उनकी पत्नी यास्मीन गर्भवती थीं। ऐसे में उसे लगा कि उसके तीन बेटे बिलाल (11), निहाल (6) व रेहान (3) का पालन-पोषण नहीं कर पा रहे हैं तो आने वाले बच्चे को कैसे पालेंगे। इसी दौरान कानपुर के कर्नलगंज निवासी एक व्यक्ति जिसके यहां उसकी पत्नी महरी का काम करती थी उन्होंने वह बच्चा उन्हें देने को कहा।
बताया कि उनके कोई संतान नहीं है तो उन्होंने उसका बच्चा देने के बदले डिलीवरी में आने वाले खर्च, परिवार को कपड़े और पांच हजार रुपये देने का वादा किया। मुफलिसी से जूझते मेराज और उनकी पत्नी ने इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। सोमवार को जब उसकी पत्नी को बेटा हुआ तो उस व्यक्ति को उसे सौंप दिया। बताया कि उन्होंने डिलीवरी कराने वाली एक दाई को साढ़े तीन हजार और दूसरी को दो हजार रुपये दिए थे जबकि परिवार को कपड़े और पांच हजार रुपये मिलने अभी बाकी हैं।
गंगाघाट कोतवाली अंतर्गत जाजमऊ चौकी क्षेत्र की अमरूद बाजार स्थित एक मकान में पांच सौ रुपये किराये पर रहने वाले मेराज आलम के मुताबिक वह मूलरूप से कानपुर के बकरमंडी के निवासी है। परिवार से मेलजोल न होने के चलते वह पत्नी व बच्चों के साथ यहां रहकर एक टेनरी में काम करते हैं। बीते दिनों टेनरियों की बंदी होने के बाद वह बेरोजगार हो गए। मजदूरी शुरू की लेकिन सप्ताह में एक-दो दिन ही काम मिल पा रहा था। उधर उनकी पत्नी यास्मीन गर्भवती थीं। ऐसे में उसे लगा कि उसके तीन बेटे बिलाल (11), निहाल (6) व रेहान (3) का पालन-पोषण नहीं कर पा रहे हैं तो आने वाले बच्चे को कैसे पालेंगे। इसी दौरान कानपुर के कर्नलगंज निवासी एक व्यक्ति जिसके यहां उसकी पत्नी महरी का काम करती थी उन्होंने वह बच्चा उन्हें देने को कहा।
बताया कि उनके कोई संतान नहीं है तो उन्होंने उसका बच्चा देने के बदले डिलीवरी में आने वाले खर्च, परिवार को कपड़े और पांच हजार रुपये देने का वादा किया। मुफलिसी से जूझते मेराज और उनकी पत्नी ने इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। सोमवार को जब उसकी पत्नी को बेटा हुआ तो उस व्यक्ति को उसे सौंप दिया। बताया कि उन्होंने डिलीवरी कराने वाली एक दाई को साढ़े तीन हजार और दूसरी को दो हजार रुपये दिए थे जबकि परिवार को कपड़े और पांच हजार रुपये मिलने अभी बाकी हैं।
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