नालों संग नदियां भी हैं मां गंगा की गुनहगार
पांडु और नून नदी के जरिए रोजाना गंगा में गिर रहा करोड़ों लीटर प्रदूषित पानी
जागरण संवाददाता, कानपुर : पतित पावनी मां गंगा के आंचल को मैला करने के गुनहगार सिर्फ नाले ही नहीं हैं, बल्कि पांडु और नून नदी भी औद्योगिक कचरा गंगा में उड़ेल रही हैं। फिलहाल सीसामऊ नाला समेत छह नालों को टैप करने का काम हो रहा है, जबकि अभी कई नालों का पानी किसी न किसी माध्यम से गंगा में समा रहा है। दक्षिण क्षेत्र की बात की जाए तो वहां के तमाम नाले सीधे गंगा में नहीं गिरते। मगर, पांडु नदी से होकर इन नालों की गंदगी में गंगा में जा रही है। दादानगर और पनकी औद्योगिक क्षेत्र का केमिकल युक्त कचरा नालों के जरिए पांडु नदी में जाता है और पांडु नदी यह गंदगी फतेहपुर में चौडगरा के पास गंगा में उड़ेल देती है। इसी तरह चौबेपुर का औद्योगिक कचरा नून नदी के जरिए बिठूर के पास गंगा में गिर रहा है। इन नदियों में गंदा पानी जाने से रोकने के लिए अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। जब शोधित पानी इन नदियों में जाएगा तभी गंगा अविरल और निर्मल हो सकेंगी।
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रोजाना 15 करोड़ लीटर गंदगी गंगा में उड़ेलती पांडु नदी
फर्रुखाबाद स्थित एक झील से निकलकर कन्नौज, कानपुर देहात होते हुए शहर आने वाली पांडु नदी पनकी से नालों का पानी लेकर गंगा की तरफ बढ़ती है। पहले यह नदी सिंचाई का प्रमुख साधन थी, लेकिन अब इसमें सीवर का पानी ज्यादा होता है। पनकी, शताब्दी नगर, मेहरबान सिंह का पुरवा, दादानगर, मर्दनपुर, बर्रा, तात्याटोपे नगर आदि इलाकों का 15 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी पांडु नदी में जा रहा है। पनकी और दादा नगर में तीन हजार से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं। साथ ही विभिन्न मोहल्लों में तमाम घरेलू उद्योग चल रहे हैं जिनमें केमिकल या कलर से जुड़े काम होते हैं। बैट्री से जुड़े उद्योग इनमें प्रमुख हैं। इन उद्योगों का केमिकल युक्त पानी पांडु नदी से होते हुए गंगा में समा रहा है। नून नदी भी मिटा रही पतित पावनी का अस्तित्व
नून नदी भी गंगा में औद्योगिक कचरा उड़ेलती है। चौबेपुर स्थित औद्योगिक क्षेत्र से कचरा लेकर यह नदी बिठूर के पास गंगा में गिरती है। इस नदी के जरिए रोजाना करीब एक करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा में गिरने का अनुमान है। पांडु में गिरने से रुकेगा 10 करोड़ लीटर गंदा पानी
बिनगवां में 210 एमएलडी के ट्रीटमेंट प्लांट में सीसामऊ नाले का आठ करोड़ लीटर दूषित पानी शोधित हो रहा है। करीब चार करोड़ लीटर पानी दक्षिण क्षेत्र के नालों का शोधित किया जा रहा है। 15 करोड़ लीटर और पानी जब शोधित होगा तो पांडु प्रदूषण से मुक्त होगी और गंगा को प्रदूषित करने से बचेगी। शताब्दी नगर में करीब सवा करोड़ लीटर क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है। सिर्फ दस मीटर पाइप लाइन डालने के बाद यह प्लांट चालू हो जाएगा। इसी तरह पनका में नौ करोड़ लीटर सीवर के शोधन के लिए प्लांट स्थापना का कार्य चल रहा है। ये दोनों प्लांट चलेंगे तो करीब सवा दस करोड़ लीटर पानी शोधित होगा। शेष पानी के शोधन के लिए एक और प्लांट की आवश्यकता होगी। बिठूर में ट्रीटमेंट प्लांट की जरूरत
बिठूर में तीन करोड़ लीटर से अधिक घरेलू सीवर गंगा में गिरता है। यहां आधा दर्जन नाले सीवर के साथ ही मल भी गंगा में उड़ेलते हैं। उन्हें टैप करने के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। ऐसे में अब यहां सीवर का शोधन जैविक विधि से करने की तैयारी है। यह कार्य जल्द हो तभी गंगाजल शुद्ध हो सकेगा। मैनावती मार्ग का नाला भी बढ़ा रहा मुसीबत
मैनावती मार्ग के समानांतर नाला और आसाराम बापू आश्रम के पीछे वाले नाला भी गंगा में ही गिरता है। इन दोनों नालों को टैप करने की सख्त जरूरत हैं। इनके जरिए रोजाना तीन करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी गंगा में जा रहा है। बनियापुरवा में ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना होनी है, लेकिन विवाद के कारण काम बंद है। विकास नगर, मकड़ीखेड़ा समेत कई जगहों पर कपड़ा रंगने, बैट्री बनाने समेत कई तरह के उद्योग चल रहे हैं। उनका केमिकलयुक्त पानी इन नालों के जरिए गंगा में जा रहा है। ''एक भी नाला गंगा में नहीं गिरेगा। सभी निर्माणाधीन ट्रीटमेंट प्लांट का कार्य समय से पूरा हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए व्यापक कार्ययोजना बनी है, उस पर अमल हो रहा है।
- विजय विश्वास पंत, जिलाधिकारी