जिंदगी का सवाल था, तो तोडऩी पड़ी कोरोना इलाज की गाइडलाइन.., पढ़िए- एक डॉक्टर का अनुभव
कानपुर के एलएलआर अस्पताल के कोविड यूनिट में मरीजों की हालत गंभीर देखकर चिकित्सकों ने इलाज की व्यवस्था को ही बदल दिया। जीएसवीएम मेडिकल कॉलज के कोविड आइसीयू के डॉक्टरों ने अनुभव साझा किए। प्राथमिकता जिंदगी बचाना था तो उसके लिए सीमा से पार भी जाना पड़ा।
कानपुर, ऋषि दीक्षित। कोविड हास्पिटल से ड्यूटी के बाद उसी ड्रेस में सो रहा था। रात करीब एक बजे मोबाइल फोन की घंटी बजी और काल रिसीव करते ही सूचना मिलने पर वापस आइसीयू पहुंच गया। वहां स्ट्रेचर पर बांदा के तिंदवारी निवासी 65 वर्षीय डा. मोहम्मद रफीक लेटे थे। सांस बहुत बढ़ी थी और मेडिकल रिकार्ड चेक करने पर पता चला कि 10 लीटर आक्सीजन प्रतिमिनट देनी पड़ रही है। उनका सीटी स्कोर 14 था और फेफड़े पूरी तरह से संक्रमित थे। एसपीओटू (आक्सीजन स्तर) 78 था लेकिन संक्रमण बढऩे की वजह से वह कम होने की स्थिति में थी। उनके ब्लड के सभी पैरामीटर गड़बड़ थे। ऐसे में जीवन बचाने के लिए मुझे इलाज की कोरोना गाइडलाइन तोडऩी पड़ी। यह घटना बताते हुए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एलएलआर अस्पताल के न्यूरो सांइस सेंटर के लेवल-3 कोविड आइसीयू के नोडल अफसर एवं एनस्थेसिया के विभागाध्यक्ष डा. अनिल वर्मा ने अपने अनुभव साझा किए।
उन्होंने बताया कि आननफानन उन्हें वेंटिलेटर पर ले लिया। तेजी से आक्सीजन फेफड़े में जाने की वजह से दिक्कत होने से वह मास्क हटा देते थे। बच्चों की तरह जिद करते, कई बार गुस्सा भी करते। ऐसे में एक-एक घंटे पास खड़े होकर उन्हें समझाते थे कि ये जिंदगी बचाने की जंग है बस इसमें आपको मदद करनी है। तब वह हर आधा घंटे में मास्क हटाने की शर्त पर माने, आठ दिन कोविड आइसीयू में वेंटिलेटर पर रहे। उसके बाद मिलाकर 15 दिन अस्पताल में रहे। बाद में वह स्वस्थ हो गए तो दिल को बड़ा सुकून मिला। डा. अनिल वर्मा ने कुछ ऐसी ही प्रेक्टिस से बड़ी संख्या में मरीजों को नवजीवन दिया। वह बताते हैैं कि कोरोना काल में अधिकतर मरीज गंभीर स्थिति में आ रहे थे। आक्सीजन सेचुरेशन (एसपीओटू) 40 से 60 फीसद तक पहुंचने से हालत बिगड़ रही थी। प्राथमिकता जिंदगी बचाना था तो उसके लिए सीमा से पार भी जाना पड़ा।
ये थी कोरोना गाइडलाइन
डा.अनिल के मुताबिक कोविड में मरीजों के इलाज के लिए आइसीयू में गाइडलाइन बनाई गई थी। कोरोना के गंभीर मरीज की आने पर पहले ऑक्सीजन मास्क लगाएं। एनआरबीएम मास्क, उसके बाद हाईफ्लो नेजल कैनुला, बाईपैप और उसके बाद इंटूवेट करते हुए मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जाए। कई बार मरीजों की स्थिति बहुत खराब होती है। ऐसे में उनकी क्लीनिकल स्थिति के हिसाब से सीधे वेंटिलेटर पर लिया। उसके परिणाम अच्छे मिले।
डरते-डरते आए थे, यहां मिली जिंदगी
डा.रफीक की पत्नी डा.शबाना उन दिनों को याद करके सहम जाती हैैं। बताती हैैं कि सांस फूलने पर बांदा से रीजेंसी हास्पिटल लाए थे। एंटीजेन जांच में संक्रमण की पुष्टि हुई। उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। प्राइवेट हास्पिटल में बेड नहीं थे। एलएलआर अस्पताल के कोविड आइसीयू में बहुत डरते-डरते आए थे। यहां डा.अनिल एवं प्राचार्य प्रो.आरबी कमल का सहयोग रहा। बेहतर इलाज एवं देखभाल से पति को नया जीवन मिला।