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...और इस तरह दो साल की मासूम को मिल गई नई जिंदगी

हृदय रोग संस्थान के चिकित्सकों ने बगैर सर्जरी बंद किया बच्ची के दिल का छेद। बाईपास सर्जरी के बजाए एएसडी डिवाइस क्लोजर प्रोसीजर का इस्तेमाल।

By AbhishekEdited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 12:49 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 12:49 PM (IST)
...और इस तरह दो साल की मासूम को मिल गई नई जिंदगी
...और इस तरह दो साल की मासूम को मिल गई नई जिंदगी
कानपुर (जागरण संवाददाता)। नन्ही सी जान और दिल में इतना बड़ा दर्द कि जानने वाले भी घबरा जाएं। दो साल की मासूम जन्म से जिंदगी की जंग से जूझ रही थी और माता पिता भी काफी चिंतित थे, हो भी क्यों न मासूम के दिल में छेद जो था। आखिर लक्ष्मीपत सिंहानिया हृदय रोग संस्थान (कार्डियोलॉजी) के चिकित्सकों ने मासूम को नई जिंदगी दी और बगैर बाईपास सर्जरी के उसके दिल के सुराख को बंद कर दिया है। दिल में क्लोजर डिवाइस लगाई है, जिसका इस्तेमाल पहली बार किसी छोटे बच्चे में किया है।
बार-बार हो जाता था फेफड़ों का संक्रमण
हृदय रोग संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उमेश्वर पांडेय ने बताया कि मंगला विहार (चकेरी) निवासी आलमगीर अहमद की पुत्री अलीशा (2) को बार-बार फेफड़ों में संक्रमण होने पर माता-पिता ने कई डॉक्टरों को दिखाया। आराम नहीं मिलने पर बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाया। उन्हें दिल में छेद का संदेह हुआ तो हृदय रोग संस्थान भेजा। यहां ईको जांच में दिल में 1.6 सेंटीमीटर छेद की जानकारी हुई, जिसे एट्रीयल सेप्टल डिफेक्ट (एएसडी) कहते हैं। इसमें गंदा खून सीधे हार्ट में जाता है इसलिए तुरंत बंद करना जरूरी होता है।
बटन आकार की एटेनॉल की डिवाइस से बंद किया छेद
मंगलवार को बिना आपरेशन के दूरबीन विधि से बच्ची को बगैर बहोश किए सुन्न करके इलाज किया। बच्ची के पैर की नस (फेमोरल आर्टरी और वेन) के जरिए बटन के आकार की एटेनॉल की क्लोजर डिवाइस कैथेटर ट्यूब डालकर हृदय तक पहुंचाई गई। एटेनॉल की खासियत है, अंदर जाकर पहले जैसा आकार ले लेता है, जिससे नस का छेद बंद हो गया। आधा घंटेे का पूरा प्रोसीजर ईको गाइडेड रहा, जिसमें डॉ. आरएन पांडेय एवं डॉ.एमएम रजी का सहयोग रहा। बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है। गुरुवार को उसकी छुट्टी कर दी जाएगी। अभी संस्थान में एएसडी डिवाइस क्लोजर तकनीक से वयस्कों का इलाज होता था। संस्थान के निदेशक डॉ. विनय कृष्ण एवं कार्डियोलॉजी के हेड डॉ. रमेश ठाकुर ने डॉक्टर्स को बधाई दी है।
60 हजार रुपये आता है खर्च
संस्थान में पूरे प्रोसीजर में 60 हजार रुपये खर्च आया है। लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान और निजी अस्पतालों में ढाई से तीन लाख रुपये खर्च आता है। सूबे की आबादी के .5 फीसद बच्चों में जन्मजात दिल में छेद होता है। इसमें गंदा रक्त हार्ट में जाता है, इससे हार्ट में लोड अधिक पड़ता है। ऐसे में हार्ट फेल्योर का चांस बढ़ जाता है।
यह हैं लक्षण, इस तरह पकड़ सकते डॉक्टर
5-10 साल के बच्चों में सांस लेने में दिक्कत, अचानक धड़कन बढऩा, हार्ट फैलना और घबराहट होना। जन्म के समय बाल रोग विशेषज्ञ अगर ठीक ढंग से आला लगाकर चेक करें। अगर हार्ट से मर्मर (अलग तरह की) की आवाज आए तो ईको कराने से समस्या पकड़ में आ जाएगी।

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