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18 दिन और दो कमरों में कैसे बनी फिल्म चिंटू का बर्थडे, जानें किस तरह हुआ फिल्म का निर्माण Kanpur News

बिहार के रहने वाले हैं डायरेक्टर देवांशु सिंह बड़े भाई ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ फिल्म बनाने में दिया साथ।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 10:53 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 03:35 PM (IST)
18 दिन और दो कमरों में कैसे बनी फिल्म चिंटू का बर्थडे, जानें किस तरह हुआ फिल्म का निर्माण Kanpur News
18 दिन और दो कमरों में कैसे बनी फिल्म चिंटू का बर्थडे, जानें किस तरह हुआ फिल्म का निर्माण Kanpur News

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। फिल्म 'चिंटू का बर्थडे' के डायरेक्टर देवांशु सिंह की जिंदगी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। बिहार के मुंगेर से मुंबई तक के फिल्मी सफर में आई अड़चनों को पार कर उन्होंने इतनी उम्दा फिल्म का निर्माण किया। भले ही इस फिल्म के निर्माण में 18 दिन का समय और सेट के रूप में दो कमरों का इस्तेमाल हुआ हो पर इसमें हुए काम और रिसर्च को जानकर आप महसूस करेंगे कि ख्वाहिशें पूरी करने की इच्छाशक्ति हो तो मुमकिन कुछ भी नहीं।

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देवांशु स्वीकारते हैं कि फिल्मी दुनिया में दखल रखने का गुण मेरे अंदर जेनेटिक है। नाना जी उदय सिंह थिएटर में सक्रिय रहे, हालांकि वह बहुत आगे नहीं बढ़ पाए लेकिन दादी-नानी से सुनी कहानियों और उनके असर से मैं अछूता नहीं रहा। मैं जहां से हूं, वहां फिल्म क्या, थियेटर का भी स्कोप नहीं बचा। जब बड़े भाई सत्यांशु का आम्र्डफोर्स मेडिकल कॉलेज में चयन हुआ तो घरवालों ने मुझे फिल्मों में काम करने की छूट दे दी लेकिन भैया का मन मेडिकल की पढ़ाई में नहीं लगा। जबकि फिल्म मेकिंग हमारी बचपन की हसरत थी। एक दिन अखबार पढ़ते हुए भैया के मन में विचार आया कि ऐसे विषय पर फिल्म बनाई जा सकती है लेकिन मैं सहमत नहीं था पर जब इसकी कहानी को एक बच्चे की बर्थ-डे पार्टी से जोड़कर फिल्म बनाने की बात आई तो मैं अपने बारे में सोचने लगा कि बिहार में होने वाली बारिश के चलते दो-तीन साल बीत जाते थे और हम लोग अपना बर्थडे न मना पाने के कारण मायूस हो जाते थे।

वास्तव में जिंदादिली से जीने के लिए एक दिन भी काफी होता है। इसके बाद 2007 में मैंने इसकी कहानी लिखी और भैया ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी, जिसके लिए 15 लाख रुपये की पेनाल्टी भी भरनी पड़ी। कहानी ऐसी थी इराक युद्ध का पूरा तानाबाना बुनना था, इसलिए 1600 लोगों की स्क्रीनिंग में से दो कलाकारों को अमेरिकी फौजी के रूप में दर्शाया। इसमें मेरे एक दोस्त के जीजा जी, जो कि इस युद्ध में शामिल थे, उन्होंने बहुत मदद की। जिससे फिल्म में दिखाए गए दोनों अमेरिकी फौजी बखूबी अपना किरदार निभा पाए। फिल्म इराक युद्ध से जुड़ी थी, इसलिए भाषाई अड़चन भी थी।

इसके लिए जिस घर में चिंटू का परिवार रहता है, उसके मुखिया के किरदार के लिए मैंने येरूशलम के प्रसिद्ध अभिनेता खालिद मसू को लिया, जिन्होंने किरदारों को इराकी बोलना सिखाया। मैंने अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की है लेकिन कुछ न कुछ कमी तो रह ही जाती है। मैं गीता पर विश्वास करता हूं कि कर्म करते रहना चाहिए, इसलिए मैंने अपना काम किया। आपने फिल्म में चिंटू के बर्थडे लुत्फ उठाया और इस फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा मेरी फिल्म बनी, इसलिए मुझे लग रहा है कि आप लोगों के बीच मेरा बर्थडे मनाया गया। देवांशु ने वादा किया कि अब अगली फिल्म कानपुर में बनाऊंगा और इस पर काम जनवरी माह से शुरू हो जाएगा। 

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