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कोरोना को और घातक बना सकता प्रदूषण, काफी देर वातावरण में रहते हैं धूल के गुबार में चिपके ड्रॉपलेट

अनलॉक के बाद शहर में निर्माण के कामों ने गति पकड़ ली है तो बेतहाशा वाहन भी सड़कों पर दौड़ने लगे हैं जिससे वातावरण प्रदूषण की मात्रा फिर से बढ़ गई है। धूल के कण में मिलने वाले ड्रापलेट सांस लेने के साथ शरीर में जाने का खतरा रहता है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 03:49 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 03:49 PM (IST)
कोरोना को और घातक बना सकता प्रदूषण, काफी देर वातावरण में रहते हैं धूल के गुबार में चिपके ड्रॉपलेट
कानपुर शहर में फिर बढ़ने लगी प्रदूषण की मात्रा।

कानपुर, जेएनएन। अनलॉक के बाद से शहर के निर्माण कार्यों ने गति पकड़ ली है। स्मार्ट सिटी, मेट्रो परियोजना व आवासीय निर्माण कार्य फिर से शुरू होने के बाद शहर में धूल के गुबार छाने लगे हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच बढ़ता प्रदूषण मनुष्य के लिए और घातक साबित हो सकता है। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अवधेश शर्मा बताते हैं कि तापमान गिरने के साथ ही सांस की बीमारियां बढऩे लगती हैं। कोरोना भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। प्रदूषण बढऩे से फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाएगा।

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शहर का प्रदूषण सामान्य से ऊपर पहुंचा

शहर में निर्माण कार्यों के चलते रावतपुर से लेकर आइआइटी के बीच चौराहों की स्थिति दयनीय हो गई है। आलम यह है कि धूल के बीच वाहनों के जाम से कई बार दृश्यता शून्य तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि कोरोना से बचाव के लिए हुए लॉकडाउन में घटकर नीचे पहुंचने वाला प्रदूषण फिर सामान्य से ऊपर पहुंच गया है। इस हफ्ते पीएम-2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) सौ से ऊपर दर्ज किया गया, जबकि बुधवार को तो इसकी मात्रा 199 माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब पहुंच गई जो बेहद खतरनाक है।

धूल के साथ मिलकर ड्रापलेट हो सकती हैं खतरनाक

आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर व पर्यावरणविद् प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बताया कि थूक, कफ व छींक में आधे से तीन माइक्रोन तक ड्रापलेट रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण है और उसके ड्रापलेट धूल के कण के साथ चिपक गए हैं तो वह काफी देर तक वातावरण में रहते हैं। सांस लेने पर यह कण शरीर के अंदर जाकर मनुष्य को संक्रमित कर सकते हैं। आइआइटी में किए गए अध्ययन में पाया गया है छोटे छोटे प्रदूषक कणों से बनने वाली धुंध व कोहरे से फेफड़ों के संक्रमण का खतरा भी बढ़ रहा है। धूप निकलने के बाद भी पानी की बूंदों से मिलकर बने प्रदूषण के यह कण नहीं खत्म होते। दोबारा जैसे ही ओस व कोहरा गिरना शुरू होता है, ये फिर से सक्रिय होकर वायु प्रदूषण बढ़ाने लगते हैं।

मनुष्य पर पीएम-2.5 की मात्रा का स्वास्थ्य पर प्रभाव

-0-50 : कोई दुष्प्रभाव नहीं

-51-100 : संवेदनशील लोगों को सांस लेने में हल्की तकलीफ हो सकती है

-101-150: सांस व दिल के मरीजों के लिए खतरनाक हो सकती है

-151-200 : मध्यम प्रदूषित, आंखों में जलन, सांस में तकलीफ हो सकती है

-201-300: ज्यादा प्रदूषित, दिल के मरीजों को परेशानी, सांस की बीमारी पैदा कर सकती है

-300 : अति प्रदूषित, मरीजों को घर से बाहर न निकलने की चेतावनी

इस हफ्ते पीएम-2.5 की स्थिति

सात अक्टूबर: 199

छह अक्टूबर: 162

पांच अक्टूबर: 157

चार अक्टूबर: 166

तीन अक्टूबर: 150

दो अक्टूबर: 156

एक अक्टूबर: 129

(सभी माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब में)

इनकी भी सुनिए

  • निर्माण कार्य के दौरान धूल उडऩे से रोकने के लिए एक्शन प्लान बनाया जा रहा है। ऐसी सड़कों को चिह्नित करके उस पर सुबह व शाम टैंकर से पानी का छिड़काव कराया जाएगा। इसके अलावा कूड़ा जलाने वालों का चालान भी होगा। -अक्षय त्रिपाठी, नगर आयुक्त
  • शहर में चल रहे निर्माण कार्य को इस तरीके से कराए जाने के निर्देश दिए गए हैं कि धूल न उड़े। कवर करके निर्माण कार्य करें। इसकी मॉनीटरिंग की जा रही है। जरूरत पडऩे पर विभागों की रिपोर्ट तैयार करके उन्हें निर्देशित भी किया जाएगा। -आनंद कुमार, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी
  • प्रदूषण बढ़ाने के कारकों में वाहन सबसे आगे हैं। निर्माण कार्य के कारण धूल भी उड़ रही है। दोनों के मिलने से प्रदूषण का खतरा कई गुना बढ़ गया है। वाहनों के धुएं से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें वातावरण को नुकसान पहुंचाती हैं जबकि धूल के कण फेफड़ों के लिए हानिकारक होते हैं। -डॉ. जीएल श्रीवास्तव, पर्यावरणविद् व भूगोल विभागाध्यक्ष डीएवी कॉलेज
  • प्रदूषण बढऩे से प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। वायु प्रदूषण सीधे फेफड़ों को प्रभावित करता है। कोरोना भी फेफड़ों को ही संक्रमित करता है। प्रदूषण बढऩे से यह और घातक हो जाएगा। कोरोना रोकथाम के उपाय ऐसे में सख्ती से लागू करने की जरूरत है। -प्रो. प्रदीप कुमार, विभागाध्यक्ष एचबीटीयू सिविल इंजीनियरिंग विभाग

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