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कानपुर के बिधनू में गांव वालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता के आगे कोरोना ने टेके घुटने, जानिए यहां के लोगों की खासियत

ग्रामीण गोरखनाथ सिंह प्रतीक सिंह ने बताया कि गांव में अधिकांश ग्रामीण कड़ी धूप में हाड़तोड़ मेहनत करके पसीना बहाते रहते है। साथ ही हल्दी दूध सोंठ लौंग कालीमिर्च दालचीनी तुलसी आंवला मुलेठी हर्र बहेड़ा से लेकर दूसरे रोग प्रतिरोधक पदार्थ खाते रहते हैं।

By Akash DwivediEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 12:38 PM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 12:38 PM (IST)
कानपुर के बिधनू में गांव वालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता के आगे कोरोना ने टेके घुटने, जानिए यहां के लोगों की खासियत
सरी लहर तक अभी कोरोना का वायरस गांव में दाखिल नहीं हो सका

कानपुर (सर्वेश पांडेय)। कोरोना संक्रमण के खतरे को लेकर डरने, दहशत में जीने की नहीं बल्कि सजग और सतर्क रहने की जरूरत है। यही सजगता, शहर से गांव तक लोगों की शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के सामने कोरोना को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर सकती है। कुछ ऐसा मिशाल के रूप में सामने आया बिधनू ब्लाक का पसिकपुरवा गांव। करीब दो हजार आबादी वाले गांव में अभि तक कोरोना के घुसने की हिम्मत नहीं हुई। जिसका कारण है ग्रामीणों की मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता और बीमारी के प्रति सतर्कता।

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हर ग्रामीण ने खुद उठाया सेनीट्राईजेशन का जिम्मा : ग्रामीण शुभम सिंह बताते हैं कि गांव में अधिकांश घरों में किसानी होने की वजह से दवा छिड़कने की मशीन है, जिससे ग्रामीण किसी के भरोसे न रहकर खुद अपनी मशीनों से घर से बाहर तक सेनीट्राईजेशन करते रहते है। सप्ताह में दो बार हर घर का एक सदस्य छिड़काव का काम करता है। जिसका परिणाम कोरोना की पहली लहर से लेकर दूसरी लहर तक अभी कोरोना का वायरस गांव में दाखिल नहीं हो सका।

बढ़ा रहे रोग प्रतिरोधक क्षमता, किसी बीमारी से नहीं हुई मौत : किसान लाखन सिंह एलोपैथ की दवा से ज्यादा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में जुटे हुए है। जिसके लिए प्रति खानपान में अदरक, नींबू, कालीमिर्च, तुलसी, गिलोह, लहसून, सत्तू, संतरा, खीरा, पालक, लौकी, तरोई समेत तमाम विटामिन और प्रोटीन युक्त सब्जी और फलों का प्रयोग करके रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा रहे हैं। जिसका करण है कि बीते तीन माह में कोरोना ही नहीं गांव में किसी भी बीमारी से एक मौत नहीं हुई।

मानसिक नहीं शारीरिक मेहनत से डरता है कोरोना : ग्रामीण गोरखनाथ, सिंह, प्रतीक सिंह ने बताया कि गांव में अधिकांश ग्रामीण कड़ी धूप में हाड़तोड़ मेहनत करके पसीना बहाते रहते है। साथ ही हल्दी, दूध, सोंठ, लौंग, कालीमिर्च, दालचीनी, तुलसी, आंवला, मुलेठी, हर्र, बहेड़ा से लेकर दूसरे रोग प्रतिरोधक पदार्थ खाते रहते हैं। जिसकी वजह से शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को कोरोना क्या कोई भी बीमारी छू नहीं पाती। कोरोना महामारी कब फैलाव को देख गांव के लोग पहले से सजग होकर सतर्कता बढ़ा दी हैं। 

हरे पेड़ों से गिरा है गांव, मिलती शुद्ध हवा : गांव के महेश सिंह कहते है कि पसिकपुरवा गांव हरे पेड़ों से घिरा हुआ है। गांव के चारो तरफ करीब एक से तीन किलोमीटर दूरी तक कोई दूसरा गांव नहीं है। चारो तरफ खेत और हरे पेड़ ही दिखाई देते है। क्षेत्र में पीपल, बरगद, आम, नीम और आंवले के पेड़ अधिक होने से वातावरण में शुद्ध हवा का संचार बना रहता है। गांव की बस्ती के अंदर भी ऐसा कोई घर नहीं जिसके दरवाजे हरा पेड़ न हो, जिससे गांव के लोगों का मानना है कि यहां की शुद्ध हवा ही उनकी बीमारी से रक्षा करती है।


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