coronavirus : शरीर के हितैषी को ही दुश्मन बना रहा कोरोना
वायरस के चलते इम्यून सिस्टम को संक्रमित कर स्वस्थ कोशिकाएं भी नष्ट करने लगता है कोशिकाओं में उथल-पुथल से दूसरे अंग प्रभावित होने पर संक्रमित की मौत हो जाती है
(केस-एक)
पनकी निवासी 39 वर्षीय पूर्ण रूप से स्वस्थ महिला की कोरोना संक्रमण के चलते 10 दिन अस्पताल में संघर्ष करने के बाद 12 अगस्त को मौत हो गई। उनके फेफड़ों की रक्त नलिकाओं में खून के थक्के जमने से सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। जिससे हार्ट, ब्रेन और किडनी पर असर पड़ा। अंतत: हार्ट फेल हो गया।
(केस-दो)
काकादेव निवासी 53 वर्षीय व्यक्ति की हैलट में नौ अगस्त को कोरोना से मौत हो गई। उन्हें भी पहले से कोई बीमारी नहीं थी। संक्रमण के तीन दिन बाद सांस लेने में तकलीफ होने लगी। सात दिनों के अंदर उनके फेफड़े पूरी तरह बेकार हो गए। शरीर का रक्त संचार प्रभावित होने से हार्ट और ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया।
जागरण संवाददाता, कानपुर : रोग प्रतिरक्षण तंत्र (इम्यून सिस्टम) ही बैक्टीरिया या वायरस के हमले से हमें बचाता है। यह गंभीर बीमारियों से संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट भी करता है। लेकिन अब कोरोना वायरस शरीर में चुपके से प्रवेश कर प्रतिरक्षण तंत्र को ही प्रभावित कर रहा है। संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने वाले साइटोकाइन हार्मोन के स्राव को अनियंत्रित कर स्वस्थ यानी हितैषी कोशिकाएं ही नष्ट करने लगता है। कोशिकाओं में उथल-पुथल से दूसरे अंग प्रभावित होने पर मौत हो जाती है।
शुरूआत सांस लेने में तकलीफ से
सबसे पहले सांस में तकलीफ होती है। खून को सही ढंग से ऑक्सीजन न मिलने से लिवर, किडनी, हार्ट और ब्रेन की कार्य क्षमता कम होने लगती है।
ऐसे कसता है शिकंजा
मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो. रिचा गिरी बताती हैं, शरीर में किसी बाहरी तत्व के प्रवेश करते ही सुरक्षा तंत्र सक्रिय होकर प्रतिरक्षण तंत्र को तत्काल संदेश देता है। उससे लडऩे के लिए साइटोकाइन हार्मोन का रिसाव करते हैं, जो वायरस समेत संक्रमित कोशिकाएं (सेल) को नष्ट करता है। वायरस सुरक्षातंत्र को चकमा देकर शरीर के डीएनए से जुड़कर अपने हिसाब से नियंत्रित करने लगता है।
कोरोना वायरस के फेफड़े में पहुंचने की जानकारी जब तक सुरक्षा तंत्र को होती है, संक्रमण पूरी तरह फैल जाता है। वायरस साइटोकाइन हार्मोन के स्राव की मात्रा को नियंत्रित करने लगता है। इसलिए कोरोना संक्रमित सामान्य से अचानक गंभीर हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। कई बार अस्पताल ले जाने का भी समय नहीं मिलता है। इसलिए हर गंभीर मरीज की आइएल-6 जांच जरूर कराई जाए।
- डॉ. चंद्रशेखर एसोसिएट प्रोफेसर एवं क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।