पुरानी जमीं से नए सफर पर कदम बढ़ाएगी कांग्रेस
वर्ष 1978 के बाद फिर कानपुर पर पार्टी का ऐतबार, इंदिरा ने किया था राष्ट्रीय अधिवेशन, जिला कार्यकर्ता सम्मेलनों की होगी शुरुआत, पुराना गढ़ रहा है यह शहर
जागरण संवाददाता, कानपुर : यह राजनीति है, जहां सियासी समीकरणों के साथ-साथ शगुन-अपशगुन जैसी मान्यताओं के लिए भी पर्याप्त स्थान है। कांग्रेस की ताजा कोशिशों में इसकी झलक दिखाई भी दे रही है। स्थानीय संगठन की मजबूती से मुतमईन कांग्रेस हाईकमान कानपुर को पुराना गढ़ ही नहीं बल्कि 'शुभ' भी मानती है। वर्ष 1978 में यहां से बढ़ाए कदम ने सफलता दिलाई और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन की शुरुआत भी यहीं से की जा रही है।
प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस लगभग तीन दशक से बाहर है लेकिन, कांग्रेस से इस शहर का गहरा नाता है। क्रांतिकारियों की इस धरती से कांग्रेस की यादें स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ी हैं। सिलसिला अब भी टूटा नहीं है। चुनावों में भले ही पार्टी को लगातार हार मिल रही हो लेकिन, कानपुर के संगठन की स्थिति आसपास के अन्य क्षेत्रों से बेहतर मानी जाती है। महापौर के चुनाव में भी कांग्रेस ने कानपुर में ही सबसे अधिक वोट हासिल किए। अब कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। इसके लिए हाईकमान ने कार्यकर्ता सम्मेलन की रूपरेखा बनाई है। इसकी शुरुआत कानपुर से हो रही है। 12 मई को रागेंद्र स्वरूप सभागार में होने जा रहे सम्मेलन में राष्ट्रीय महासचिव गुलाम नबी आजाद और प्रदेशाध्यक्ष राज बब्बर भी आ रहे हैं।
महानगर कांग्रेस अध्यक्ष हरप्रकाश अग्निहोत्री का कहना है कि कानपुर और कांग्रेस का गहरा नाता है। यह पार्टी का पुराना गढ़ है। 70 के दशक में जब कांग्रेस लोकसभा चुनाव हारी थी, तब उसके बाद 1978 में चुनाव अभियान की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कानपुर में राष्ट्रीय अधिवेशन से की थी। अगले ही चुनाव में फिर कांग्रेस को जीत मिली। समय-समय पर कई बार पार्टी ने कानपुर को अहमियत दी है। अब कार्यकर्ता सम्मेलन की शुरुआत यहां से हो रही है।
संगठन के स्तर से चुनावी शंखनाद
पूर्व प्रदेश सचिव कृपेश त्रिपाठी का कहना है कि लोकसभा चुनाव की रणनीतिक तैयारी हाईकमान पर लंबे समय से चल रही है। मगर, जमीनी स्तर से संगठन का चुनावी शंखनाद इस कार्यकर्ता सम्मेलन से होने जा रहा है।