बुंदेलखंड क्षेत्र में चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई कांग्रेस, 38 साल की बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का प्रयास
कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में खोयी जमीन वापस लाने के लिए कांग्रेस ने जालौन के बृजलाल बांदा के नसीमुद्दीन व इटावा के अनिल के भरोसे रणनीति बनाने का दांव खेला है। 1984 के बाद से बांदा हमीरपुर व जालौन-गरौठा लोकसभा क्षेत्र में पार्टी के हाथ खाली हैं।
कानपुर, [शिवा अवस्थी]। कांग्रेस ने अपनी नई कमेटी में बुंदेलों को महत्व देकर बुंदेलखंड की 38 साल से बंजर राजनीतिक जमीन पर फसल लहलहाने के प्रयास का संकेत दिया है। बांदा, हमीरपुर और जालौन-गरौठा लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी 1984 के बाद से खाली हाथ है। एक बार भी उसे इन सीटों पर जीत नहीं मिल सकी है।
अब जालौन के बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष, बांदा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी और इटावा के अनिल यादव को प्रांतीय अध्यक्ष जैसे अहम पदों पर बैठाकर बुंदेलखंड और आसपास के जिलों तक बेहतरी की आस से कदम बढ़ाए हैं। इसके नतीजे भले कुछ भी हों, लेकिन राजनीतिक रणनीतिकार इसे कांग्रेस की अपने परंपरागत मतदाताओं को अपने साथ लाने का बड़ा दांव बता रहे हैं।
बुंदेलखंड में चौथे नंबर की पार्टी बन गई कांग्रेस
कांग्रेस बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर और जालौन लोकसभा क्षेत्र में 1984 के बाद से लगातार कमजोर होने के साथ चौथे नंबर की पार्टी बन गई है। 2014 और 2019 में तो इन क्षेत्रों में पार्टी की हालत और पतली रही है। उसके प्रत्याशी कुछ खास नहीं कर सके। इसी तरह झांसी-ललितपुर लोकसभा सीट पर पार्टी 1999 और 2009 में जीती, लेकिन इसके बाद से हार ही रही है। कानपुर लोकसभा क्षेत्र में भी उसका यही हाल है।
विधानसभा चुनाव में भी खिसकी जमीन
विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2012 में कांग्रेस ने कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की पांच सीटें जीती थीं। 2017 में वह सिर्फ कानपुर के कैंट विधानसभा क्षेत्र को जीतकर एक सीट पर सिमट गई। 2022 में पार्टी के हाथ से यह सीट भी निकल गई। बृजलाल खाबरी कहते हैं कि पार्टी का भरोसा कायम करेंगे। वहीं, नसीमुद्दीन और अनिल यादव का दावा है कि कांग्रेस जनता के लिए लड़ रही है। इसके परिणाम सुखद होंगे।
2024 और 2027 के लिए रणनीति पर काम
कांग्रेस ने बुंदेलखंड और सपाई गढ़ कहे जाने वाले इटावा को नई कमेटी में प्रतिनिधित्व देकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। जालौन और बांदा में बृजलाल और नसीमुद्दीन के माध्यम से 2024 व 2027 में दलित-मुस्लिम जैसे अपने वर्षों पुराने परंपरागत मतदाताओं को साथ लाने की रणनीति पर काम शुरू किया है। वहीं, इटावा के अनिल यादव के माध्यम से मैनपुरी, कन्नौज के साथ ही उनसे जुड़े क्षेत्रों में यादव वोट बैंक को जोड़ने की तैयारी है। वहीं, नकुल दुबे, योगेश दीक्षित जैसे ब्राह्मण नेताओं को भी नई कमेटी में मौका देकर ब्राह्मणों में पैठ बनाने का रोडमैप तैयार किया है।