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बच्चों के वायरस का बड़ों पर हमला, अस्पताल पहुंच रहे मरीज

मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से करते सिंकाइसियल वायरस करते हमला

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 04:06 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 04:06 PM (IST)
बच्चों के वायरस का बड़ों पर हमला, अस्पताल पहुंच रहे मरीज
बच्चों के वायरस का बड़ों पर हमला, अस्पताल पहुंच रहे मरीज

जागरण संवाददाता, कानपुर : बच्चों का वायरस अब बड़ों पर हमलावर हो गया है। इसलिए वायरल बुखार में मरीज बदले लक्षणों के साथ अस्पताल आ रहे हैं। तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ के साथ खांसी-जुकाम हो रहा है। इसमें जरा भी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है। एलएलआर अस्पताल (हैलट) के मेडिसिन विभाग की ओपीडी में रोज बड़ी संख्या में मरीज आ रहे हैं।

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जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विशाल गुप्ता का कहना है कि वायरस भी अपनी प्रकृति बदल रहे हैं। कहा कि सिंकाइसियल वायरस का संक्रमण आमतौर पर बच्चों में होता है, जिससे बच्चों को बुखार, खांसी-जुकाम, चेस्ट इंफेक्शन होता था। इस बार ऐसे लक्षण बड़ों में भी देखने को मिल रहे हैं। इसमें खासकर डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग एवं किडनी के संक्रमण वाले मरीज हैं। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि इसकी वजह ऐसे मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना है। इन्हें वायरस का संक्रमण होने पर लक्षण भी बदल जाते हैं। तेज बुखार 103-105 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है। इसके अलावा चेस्ट में संक्रमण, सांस लेने में तकलीफ शुरू हो जाती है। हाथ-पैर व अन्य जोड़ों पर भीषण दर्द भी होता है। ऐसे कुछ मरीजों ने बाहर जांच कराई तो वायरस के बदलाव की पुष्टि हुई है। मेडिकल कॉलेज में वायरस जांच की सुविधा ही नहीं है।

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वायरल इंफेक्शन में लक्षणों पर इलाज

डॉ. गुप्ता का कहना है कि वायरल इंफेक्शन होने पर लक्षणों के आधार पर इलाज होता है। दवाएं बहुत समझदारी से दी जाती हैं। एहतियात बरतना जरूरी है। इसमें लापरवाही से किडनी, लंग्स, हार्ट पर असर पड़ सकता है।

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पुणे में होती है वायरस की जांच

महाराष्ट्र के पुणे में नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट में सभी प्रकार के वायरस की जांच होती है। सूबे में भी वायरोलॉजी लैब खोलने के प्रयास हुए थे। कुछ विंग केजीएमयू में चल रही हैं, जबकि एईएस जेई के लिए एक यूनिट बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में भी चल रही है।

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वायरल इंफेक्शन की वजह

प्रदूषण, मौसम में बदलाव, वातावरण में नमी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, खानपान।


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