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डाक सेंसर ने रोक लिया था रासबिहारी बोस का टोकियो से नेताजी को भेजा पत्र, जानें- ऐसा क्या लिखा था उसमें

क्रांतिकारियों की कलम रासबिहारी बोस जब आल इंडिया नेशनल कांग्रेस के प्रधान चुने जाने गए तो उन्होंने टोकियो से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र भेजा था जिसे ब्रिटिश भारत के डाक सेंसर विभाग ने रोक लिया था। इस में कई परामर्श दिए गए थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 11:45 AM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 11:45 AM (IST)
डाक सेंसर ने रोक लिया था रासबिहारी बोस का टोकियो से नेताजी को भेजा पत्र, जानें- ऐसा क्या लिखा था उसमें
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दिए थे परामर्श।

कानपुर, फीचर डेस्क। आल इंडिया नेशनल कांग्रेस के प्रधान चुने जाने के बाद रासबिहारी बोस ने 24.1.1938 को सुभाष चंद्र बोस के नाम एक पत्र निप्पन, टोकियो से भेजा था। इस पत्र पर पता था-प्रेसीडेंट, इंडियन नेशनल, कांग्रेस स्वराज भवन, इलाहाबाद, भारत। इस रजिस्टर्ड पत्र को ब्रिटिश भारत के डाक सेंसर विभाग ने 11.2.1938 को रोक लिया और अधिकारियों को भेज दिया। इस पत्र में रासबिहारी बोस ने कांग्रेस के निर्वाचित राष्ट्रपति सुभाष चंद्र बोस को तमाम तरह के परामर्श दिए थे...।

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मेरे प्रिय सुभाष बाबू,

मुझे समाचार पत्रों से यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप आल इंडिया कांग्रेस के होने वाले अधिवेशन के लिए प्रेसीडेंट चुने गए हैं। आपके इस चुनाव पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए हार्दिक बधाई देता हूं। मैं एक बंगाली होते हुए आपके प्रति बड़ा गौरव अनुभव करता हूं। बंगालियों पर यह आरोप था कि उन्होंने अंग्रेजी शासकों को भारत में आने दिया था। इसलिए बंगालियों का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे अधिक से अधिक त्याग और बलिदान कर भारत को स्वतंत्र कराएं । बंगाली अपने त्याग व बलिदानों के साथ दृढ़ संकल्प लें कि वह भारत को, स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व देंगे तथा पथ प्रदर्शन करेंगे। यह मेरी आत्मा की आवाज है इसलिए मैं आपसे आशा करता हूं कि आप दृढ़ता के साथ कांग्रेस को स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य में लगाएंगे।

इस समय कांग्रेस एक संकट की घड़ी से गुजर रही है और वह विधानवाद की संस्था बन गई है और इसी आधार पर गवर्मेंट के साथ सहयोग कर रही है, जबकि किसी भी गुलाम देश से कोई विधानवादी संस्था आगे बढ़कर स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकती क्योंकि उनके सुनियोजित कानून शासकों के अपने लाभ और हितों में होते हैं। फिर ब्रिटिश शासकों की निगाह से जो दृष्टिकोण अवैधानिक होता है वही कांग्रेस के लिए स्वतंत्रता का पथ प्रदर्शक संस्था घोषित कर दिया गया। उस अवस्था में कांग्रेस ने बढ़-चढ़कर खळ्ले दिल से बहुत बड़ा कार्य किया परंतु वर्तमान में कांग्रेस अपनी पुरानी स्थिति पर वापस आ गई है और किसी को कोई आघात न पहुंचे, यही संस्था का लक्ष्य बना हुआ है।

अंहिसा के महत्व की अब खुले मंच पर चर्चा करनी चाहिए और र्अंहसा के ध्येय को संस्था से बदलना चाहिए। हमें अपनी आजादी की प्राप्ति के लिए सभी संभाविर्त ंहसक व र्अंहसक साधनों का पूरा प्रयोग करना चाहिए। वास्तव में प्रत्येक भारतीय को फौजी शिक्षा में निपुण होना चाहिए और यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार होना चाहिए कि वह अपने पास हथियार रख सके।

अगली महत्वपूर्ण बात र्है ंहदुओं का संगठित होना। मुसलमान वास्तव र्में ंहदू हैं। जब उनका जन्र्म ंहदुस्तान में हुआ और उनकी धार्मिक प्रवृत्तियां रीति-रिवाज टर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान के मुसलमानों से रीति-रिवाजों से भिन्न हैं और्र ंहदुत्व में बहुत बड़ी लचक है, जिसमें मुसलमान र्भी ंहदुओं में समा सकते हैं और ऐसा पहले भी हो चुका है।

जिस प्रकार तमाम जापानी पहले जापानी हैं, चाहे उनमें से कोई बुद्धिस्ट हो और चाहे ईसाई हो। कांग्रेस को भी इसी प्रकार के देशव्यापी आंदोलन का समर्थन करना चाहिए और जापान की निंदा नहीं करनी चाहिए। जापान का केवल एक ही लक्ष्य- ‘ब्रिटिश प्रभाव को एशिया से मिटा देना’ है। कांग्रेस का भी यही दृष्टिकोण होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का अध्ययन करके भारत के हित और लाभ में इनका प्रयोग करना चाहिए। हमें ब्रिटेन से दुश्मनी रखने वालों की कद्र करनी चाहिए और मैत्रीपूर्वक उन्हें स्थान देना चाहिए। यही हमारी विदेश नीति बननी चाहिए। व्यावहारिक राजनीति में भावनाओं को कोई स्थान नहीं देना चाहिए।

जापान वर्तमान में कई कारणों से इंग्लैंड, रशिया व अमेरिका आदि देशों की आंख का कांटा बना हुआ है और ये लोग जापान को किसी भी ढंग से और हथकंडों से डुबा देना चाहते हैं परंतु जापानियों के गिर जाने से भी संतति के दिलों में जो स्वतंत्र एशिया की भावना है, वह कभी समाप्त नहीं होगी। कांग्रेस ने जापानियों के विरुद्ध आंदोलन छेड़कर एक बहुत बड़ी भूल की है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वह समय भी आने वाला है, जब जापान, इंग्लैंड के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाएगा और भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करेगा। तब इंग्लैंड, जापान को बताएगा कि परीक्षा की घड़ी के समय भारतीयों की क्या गतिविधियां जापानियों के साथ हुईं। इस समय भारतीयों के हित में है कि वह जापान का समर्थन करें और जापान की मदद कर इस मौके का फायदा उठाएं, जिससे संसार की नीतियों र्में ंहदुस्तान भी अपना प्रभावी स्थान रख सके और ब्रिटेन से, जो भी अधिक से अधिक संभव हो, वह लाभ उठा सके।

हम जानते हैं और अपने जीवन में अनुभव करते हैं कि कितनी भी कठिनाइयां हों, हम अपने जीवन का बलिदान कर देते हैं। इसी भावना के साथ हमें जापान का अनुसरण करना चाहिए। इस समय जापानी प्रसन्नतापूर्वक अपने देश की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए हजारों की संख्या में जीवन बलिदान कर रहे हैं। हमें भी इस त्याग की भावना से सीखना चाहिए कि आदमी कैसे मरता है। भारत की आजादी के संदर्भ में भारत की स्वतंत्रता का प्रश्न स्वयमेव हल हो जाएगा।

सुभाष बाबू, हमें आपमें पूर्ण विश्वास है और आप बिना रुकावटों और आलोचनाओं की परवाह किए आगे बढ़ते जाएंगे। रुकावटें किसी राष्ट्र को सही मार्ग पर ले जाने के लिए ही आती हैं। अब ये सफलता आपकी और भारत की होगी। मेरी हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!

-आपका स्नेही, रासबिहारी बोस (‘स्वतंत्रता सेनानी ग्रंथमाला-7’ से साभार)


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