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पुर्तगालियों ने मसालों के बहाने भारत में की थी एक बड़ी लूट, जानिए - क्या है वो अनमोल चीज और उसका महत्व

भारत पर हुए हमलों में लूट सिर्फ धन-संपदा या शासन की नहीं हुई थी बल्कि यह लूटÓ पुर्तगालियों द्वारा की गई स्थानीय ज्ञान की लूट थी। उनकी गहरी दिलचस्पी भारत के मसाले औषधीय ज्ञान और यहां की जैव विविधता में भी थी।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Wed, 12 Jan 2022 12:20 PM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 12:20 PM (IST)
पुर्तगालियों ने मसालों के बहाने भारत में की थी एक बड़ी लूट, जानिए - क्या है वो अनमोल चीज और उसका महत्व
भारत में पुर्तगालियों के आगमन की खबर से संबंधित प्रतीकात्मक फोटो।

कानपुर, [फीचर डेस्क]। भारत में अंग्रेजों का शासन प्राकृतिक संसाधनों की लूट और शोषण का शासन था, लेकिन अंग्रेजों के शासन से पहले एक बड़ी 'लूट' हुई थी। यह 'लूट' पुर्तगालियों द्वारा की गई स्थानीय ज्ञान की लूट थी। इतिहास बताता है कि पुर्तगाली भारत में मसालों के व्यापार के उद्देश्य से आए थे, लेकिन मसालों के अलावा उनकी गहरी दिलचस्पी भारत के औषधीय ज्ञान और यहां की जैव विविधता में भी थी। यही वजह है कि 1602 में जब एम्सटर्डम से पुर्तगालियों का जहाजी बेड़ा भारत के लिए रवाना हुआ, तब औषध विज्ञानियों को यूरोप के वनस्पति विज्ञानी कैरोलस क्लूसियस द्वारा निर्देशित किया गया कि लौटते वक्त व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मसालों और फलों के अलावा विचित्र दिखने वाले पेड़ों को लेकर आएं।

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'एनवायरमेंट हिस्ट्री रीडरÓ पुस्तक के अनुसार, क्लूसियस के निर्देश के करीब 100 साल बाद वर्ष 1703 में मालाबार के डच गवर्नर हेंड्रिक एड्रियन वान रीडे ने 12 खंडों का संकलन पूर्ण किया। इस संकलन का नाम था 'हार्टस मालाबारिकस (गार्डन आफ मालाबार)।' इस संकलन में मालाबार में 17वीं शताब्दी के 740 पौधों की विस्तृत जानकारी थी। रीडे को इस संकलन को तैयार करने में 25 साल लग गए। इसका पहला खंड 1678 में और अंतिम खंड 1703 में प्रकाशित हुआ।

'एंसिएंट साइंसेस आफ लाइफ जर्नल' में 1984 में प्रकाशित के.एस. मणिलाल का अध्ययन बताता है कि हार्टस मालाबारिकस भारत के औषधीय पौधों पर मुद्रित सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक में दी गई औषधीय पौधों और उनके उपयोग की अधिकांश जानकारी चार आयुर्वेदिक चिकित्सकों- इट्टी अचुदन, रंग भट्ट, विनायक पंडित और अप्पू भट्ट द्वारा रीडे को उपलब्ध कराई गई थी। इन चिकित्सकों का अधिकांश ज्ञान आयुर्वेद पर आधारित था। इन्होंने मलयालम और कोंकणी भाषाओं में जानकारियां दीं, जिनका अनुवाद पुर्तगाली और लैटिन भाषा में किया गया। मणिलाल लिखते हैं कि 17वीं शताब्दी में जब पुस्तक का पहला खंड प्रकाशित हुआ तो यूरोप के वैज्ञानिकों ने इसे मील का पत्थर कहा।

वनस्पति विज्ञान के पुनर्जागरण (रेनेसां) के 75 साल बाद आधुनिक वनस्पति विज्ञान के जनक कार्ल लीनियस ने कई मौकों पर इस किताब के महत्व को रेखांकित किया है।

'एनवायरमेंट हिस्ट्री रीडर' के अनुसार, कुछ हद तक यह पुस्तक रीडे और जनरल राइक्लोफ वेन गोएंस के बीच चल रही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का भी नतीजा थी। गोएंस कोचीन के बजाय डच उपनिवेश की राजधानी कोलंबो को बनाना चाहते थे। वहीं दूसरी तरफ रीडे मसालों, कपास और लकड़ी की आपूर्ति में मालाबार की श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे। रीडे ने यह भी साबित किया कि यूरोपीय शहरों में बिकने वाली और डच सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बहुत सी महत्वपूर्ण दवाएं मालाबार के पौधों से ही बनी हैं। रीडे के तर्कों को देखते हुए डच सरकार ने उन्हीं का पक्ष लिया और कोचीन राजधानी बनी रही।

हार्टस मालाबारिकस को रीडे ने भले पुर्तगालियों के लाभ के लिए संकलित किया हो और उनके इस प्रयास को जैविक ज्ञान की चोरी अथवा बायो पाइरेसी के रूप में देखा जाता हो, लेकिन यह पुस्तक वर्तमान में सबके लिए उपलब्ध है। इसे वनस्पति विज्ञान की महान पुस्तक का गौरव हासिल है।

(साभार: डाउन टू अर्थ )


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