विश्व नृत्य दिवस विशेष : केरल से कानपुर भरतनाट्यम लेकर आए थे गुरु श्रीधरन
1951 में शहर आए श्रीधरन को 1978 में प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया था।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली भरतनाट्यम बेहद लोकप्रिय है। कानपुर में करीब सौ केंद्रों पर इसकी शिक्षा दी जाती है। हजारों बच्चे ये शास्त्रीय नृत्य सीख कर नृत्यकला में प्रवीण हो रहे हैं। हालांकि ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि सुदूर दक्षिण से यह कला कानपुर तक पहुंचाने वाले गुरु श्रीधरन नायर हैं।
केरल के पालघाट में जन्मे थे श्रीधरन
केरल के पालघाट जिले में जन्मे श्रीधरन ने गुरु रवि उन्नी मेनन से नृत्य की शिक्षा प्राप्त की थी। उत्तर प्रदेश व कानपुर में इस कला के प्रसार का श्रेय उन्हीं को दिया जाता है। उनकी शिष्या चíचत नृत्यांगना निष्ठा शर्मा बताती हैं कि इस कला का प्रचार प्रसार करते हुए गुरु श्रीधरन 1951 में कानपुर पहुंचे थे। उसके बाद उन्होंने यहीं इस शास्त्रीय नृत्य की गंगा प्रवाहित की। उनके इस योगदान के लिए प्रदेश सरकार ने 1978 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी के रत्न से अलंकृत किया था। डॉ. निष्ठा शर्मा नृत्य की विशुद्ध पारंपरिक शैली, सूक्ष्म एवं कोमल भाव प्रदर्शन की अनूठी प्रतिभा हैं। उन्हें सारस्वत सम्मान व अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से सरोज साहित्य जैसे अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
क्या है भरतनाट्यम
भरतनाट्यम या सधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है। इसमें भाव, राग और ताल का समावेश होता है। इन्हीं तीनों के प्रारंभिक शब्दों से भरत अक्षर लेकर भरतनाट्यम नाम दिया गया है। इसके मुख्यत: दो भाग होते हैं पहला नृत्य व दूसरा अभिनय, जिसके माध्यम से रस, भाव और काल्पनिक अभिव्यक्ति की जाती है।
पीएचडी के बाद बच्चों को सिखाने में जुटीं सुचरिता
भरतनाट्यम का जिक्र होने पर शहर में डॉ. सुचरिता खन्ना का जिक्र भी जरूरी हो जाता है। जिन्होंने इस विधा में पीएचडी की है। 1991 से वे अपने संस्थान के माध्यम से बच्चों को नृत्य की शिक्षा दे रही हैं। उन्होंने रामानंद सागर की रामायण में हिस्सा लिया और देश विदेश में अनेक शो करके अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने एक पुस्तक भरतनाट्यम एक परिचय भी लिखी है। उनके अलावा शहर के श्रीया अग्रवाल, अपíणका साहू जैसे कई कलाकार भी इस कला की नई पीढ़ी को समृद्ध कर रहे हैं।